मेनेजमेंट के देवता देवों के देव गणेश Part 2

डा. जे.के.गर्ग
चूहे की सवारी: मन में सवाल पैदा होता है कि भगवान गणेशजी ने निक्रष्ट माने जाने वाले चूहे (मूषक) को ही अपना वाहन क्यों चुना ? सभी देवी-देवता गणेशजी की बुद्धीमता के कायल हैं, तर्क-वितर्क में हर देवी-देवता गणेशजी से हार जाते थे | प्रत्येक समस्या के मूल में जाकर उसकी मीमांसा एवम् विवेचना कर उसका तर्कसंगत हल खोजना उनकी विशेषता है | इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि चूहा भी तर्क-वितर्क में किसी से पिछे नहीं रहता है, चूहे का काम हर किसी भी वस्तु को कुतर डालना है | जो भी वस्तु या चीज चूहे को दिखाई देती है, चूहे महाराज उसकी चीर फाड़ करके उसके प्रत्येक अंगो का विस्तृत विश्लेष्ण सा कर देता है,अत: संभवत गणेशजी ने चूहे के इन्हीं गुणों को देख कर चूहे को अपना वाहन चुना होगा |

गणेशजी की चूहे की सवारी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जैसे चूहे की इच्छा कभी पुरी नहीं होती, उसे कितना मिले हमेशा खाता रहता है वैसे ही मनुष्य की इच्छायें भी कितना भी मिले कभी पुरी नहीं होती | गणेश हमेशा चूहे की सवारी करते हैं इसका अर्थ है कि बेकाबू इच्छायें हमेशा विध्वंस का कारण बनती है | इनको काबू में रखते हुए इन पर राज करो, न कि इन इच्छाओं के मुताबिक खुद को बहाओ क्योंकि मनुष्य की इच्छायें और कामनाएं कभी भी पूरी नहीं होती है वरन आदमी इच्छाओं के मकड जाल में फसं कर असंतुष्ट और तनावग्रस्त रह कर जीवन को बर्बादी के कगार पर ले आता है | अत: निसंदेह गणेशजी की चूहे की सवारी इन्सान की कभी भी पूरी नहीं होने वाली इच्छाओं का परिचायक है |

खड़े होने का भाव: गणेशजी की यह अवस्था बताती है कि हालाँकि दुनियाँ में रहते हुए मुनष्य को सांसारिक कर्म भी करने जरूरी है | वस्तुतः इन सबमें एक संतुलन बनाये रखते हुए उसे अपने सभी अनुभवों को परे रखते हुए अपनी आत्मा से जुडाव रखना चाहिए और आध्यात्मिक होना चाहिए |

प्रस्तुतिकरण—डा.जे. के. गर्ग, सन्दर्भ—- मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्र पत्रिकाये संतो के प्रवर्चन आदि ,Visit our Blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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