जीवित्पुत्रिका यानी जितिया व्रत आज

जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
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आज यानी 22 सितम्बर को महिलाएं जीवित्पुत्रिका यानी जितिया व्रत रखेंगी। वैसे यह व्रत तीन का होता है। इस बार यह दो दिन ही है। व्रत का मुख्य दिन अष्टमी 22 सितंबर को ही है। इसलिए सिर्फ 22 सितम्बर की तिथि ही मुख्य रहेगी।
जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं। यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है। व्रत के दूसरे दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है। यह व्रत उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। पड़ोसी देश नेपाल में भी महिलाएं बढ़-चढ़ कर इस व्रत को करती हैं।
कब है जितिया व्रत?
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इस बार यह दो दिन का हो गया है। बनारस पंचांग के अनुसार 22 सितंबर को जितिया व्रत रखा जाएगा और 23 सितंबर की सुबह पारण होगा। वहीं विश्वविद्यालय पंचांग को मानने वाले भक्त 21 सितंबर को व्रत रखेंगे और 22 सितंबर की अपराह्न तीन बजे व्रत का पारण करेंगे। वैसे व्रत का मुख्य दिन अष्टमी 22 सितंबर को है।

जितिया व्रत की पूजा विधि
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जितिया में तीन दिन तक उपवास किया जाता है।
पहला दिन : जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं।
– दूसरा दिन : व्रत में दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है। यही व्रत का विशेष व मुख्य दिन है जो कि अष्टमी को पड़ता है। इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं। यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है।
– तीसरा दिन : व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।

जितिया व्रत की कथा
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इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उन्हें मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्यमणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की साजिश रची। उसने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा। आगे चलकर यही बच्चा राजा परीक्षित बना।

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