दशहरे को मनाये स्नेह,विनम्रता,सोहार्द के संकल्प पर्व के रूप में पार्ट 2

dr. j k garg
कई सालों से दशहरे के दिन विशालकाय रावण, मेघनाथ एवं कुंभकर्ण के पुतलों को जलाते हैं | इन पुतलों को जलाते वक्त कुछ पलों के लिये हमारे मन के अंदर भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाकर सभी प्रकार दुष्कर्मों एवं तामसी प्रव्रत्तियों यानि काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा एवं चोरी को त्यागने का विचार आता है,किन्तु हमारा यह विचार श्मशानी वैराग्य की तरह ही क्षणिक होता है क्योंकि कुछ ही समय बाद हम सभी अपने सांसारिकता के प्रपंचों में तल्लीन हो कर तामसी प्रव्रतियों के चंगुल में फंस जाते हैं | काश ! अगर हम हम इस सात्विक सोच को अमली जामा पहना पाते तो हमारा जीवन एक अलग ही किस्म का बन जाता यानि हमारे समाज में झूठ, फरेब ,धोखाधडी, लूटकचोट ,चोरी-चकारी, हिंसा, मारकूट, अपहरण-बलात्कार की भयावह घटनायें घटित ही नहीं होती | जरा सोचिये और चिन्तन-मनन कीजिये कि क्या ऐसा हो रहा है? अगर नहीं तो रावण-मेघनाथ और कुमंकर्ण के पुतलों को जलाने, भव्य रामलीलायें आयोजित करने और जय श्रीराम के जयकारें बोलने का क्या औचित्य है ? क्यों हम लाखों करोड़ो रूपये पुतले बनाकर उन्हें जलाने में व्यर्थ खर्च करते हैं ? क्यों हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मद , मोह, आलस्य की जड़ें दिन प्रति दिन मजबूत बनती जा रही है ? क्यों हम परनिंदा करने में सबसे आगे रहते हैं? क्यों हमारी बहन बेटियां अपहरणकर्ताओं के हाथों रोजाना बेइज्जत होती है क्यों भ्रष्टाचार का विषाणु हममें आत्मसात हो गया है ? क्यों हमारी कथनी और कथनी में अंतर बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों हमारी जुबान पर राम किन्तु बगल में छुरी होती है? क्यों जरासी सत्ता मिलते ही हम अहंकारी बन जाते हैं ?

प्रस्तुतिकरण—डा जे. के. गर्ग

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