मोक्षदा एकादशी आज, व्रत करने से खुलता है मोक्ष का द्वार

राजेन्द्र गुप्ता
आज यानी 8 दिसंबर को मोक्षदायिनी एकादशी मनाई जाएगी। मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदायिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व पितरों को मोक्ष दिलानेवाली एकादशी के रूप में भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती के साथ ही उसके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा
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मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। एक समय की बात है गोकुल नगर पर वैखानस नाम के राजा राज किया करते थे। ये बहुत ही धार्मिक प्रकृति के राजा थे। प्रजा भी सुखचैन से अपने दिन बिता रही थी। राज्य में किसी भी तरह का कोई संकट नहीं था। एक दिन क्या हुआ कि राजा वैखानस अपने शयनकक्ष में आराम फरमा रहे थे। तभी क्या हुआ कि उन्होंने एक विचित्र स्वप्न देखा जिसमें वे देख रहे हैं कि उनके पिता (जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे) नरक में बहुत कष्टों को झेल रहे हैं। अपने पिता को इन कष्टों में देखकर राजा बेचैन हो गये और उनकी निंद्रा भंग हो गई। अपने स्वप्न के बारे में रात भर राजा विचार करते रहे लेकिन कुछ समझ नहीं आया। तब उन्होंने प्रात: ही ब्राह्मणों को बुलवा भेजा। ब्राह्मणों के आने पर राजा ने उन्हें अपने स्वप्न से अवगत करवाया। ब्राह्मणों को राजा के स्वप्न से यह तो आभास हुआ कि उनके पिता को मृत्युपर्यन्त कष्ट झेलने पड़ रहे हैं लेकिन इनसे वे कैसे मुक्त हो सकते हैं इस बारे में कोई उपाय सुझाने में अपनी असमर्थता जताई। उन्होंने राजा वैसानख को सुझाव दिया। आपकी इस शंका का समाधान पर्वत नामक मुनि कर सकते हैं। वे बहुत पहुंचे हुए मुनि हैं। इसलिए आप अतिशीघ्र उनके पास जाकर इसका उद्धार पूछें। अब राजा वैसानख ने वैसा ही किया और अपनी शंका को लेकर पर्वत मुनि के आश्रम में पहुंच गये। मुनि ने राजा के स्वप्न की बात सुनी तो वे भी एक बार तो अनिष्ट के डर से चिंतित हुए। फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा। वे सचमुच नरक में पीड़ाओं को झेल रहे थे। उन्हें इसका कारण भी भान हो गया। तब उन्होंनें राजा से कहा कि हे राजन आपके पिता को अपने पूर्वजन्म पापकर्मों की सजा काटनी पड़ रही है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को सम्मान नहीं दिया, उन्होंने रतिदान का निषेध किया था। तब राजा ने उनसे पूछा हे मुनिवर मेरे पिता को इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब पर्वत मुनि ने उनसे कहा कि राजन यदि आप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिनुसार व्रत करें और उसके पुण्य को अपने पिता को दान कर दें तो उन्हें मोक्ष मिल सकता है। राजा ने ऐसा ही किया। विधिपूर्वक मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य को अपने पिता को दान करते ही आकाश से मंगल गान होने लगा। राजा ने प्रत्यक्ष देखा कि उसके पिता बैकुंठ में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा। यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ, तुमने नारकीय जीवन से मुझे छुटकारा दिला कर सच्चे अर्थों में पुत्र होने का धर्म निभाया है। तुम्हारा कल्याण हो पुत्र।
राजा द्वारा एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के पापों का क्षय हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा गया। चूंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था इसलिये यह एकादशी और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाती है।

होती है पुण्य की प्राप्ति
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पौराणिक ग्रंथों में मोक्षदा एकादशी को बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने व रात्रि में जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। यह एकादशी मुक्तिदायिनी तो है ही साथ ही इसे समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली भी माना जाता है। मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रतकथा पढऩे-सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

मोक्षदा एकादशी का श्रीकृष्‍ण से है संबंध:-
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पद्मपुराण में वर्णित है कि भगवान श्री कृष्‍ण धर्मराज युधिष्ठिर को इस दिन का महत्‍व समझाते हैं। वह बताते हैं कि यह मोक्षदा एकादशी बहुत ही पुण्‍य फलों वाली है। इस दिन सच्‍चे मन से पूजा-आराधना करने से व्‍यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।
इसके अलावा यह भी जिक्र मिलता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कथा मिलती है कि जब द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन अपने सगे- संबंधियों पर बाण चलाने से घबराने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, आत्मा और कर्तव्य के बारे में विस्तार से समझाया था। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के नाम से भी जानते हैं।

मोक्षदा एकादशी व्रत और पूजन:-
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मोक्षदा एकादशी के व्रत की विधि बहुत सरल है। इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।
– इसके बाद पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं या उनकी तस्वीर पर गंगाजल के छींटे दें। उन्हें वस्त्र अर्पित करें।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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