हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका कोई साधारण स्त्री नहीं थी किन्तु वह तो ईर्ष्या, राग-द्वेष, अनाचार तथा समस्त दुष्कर्मों की प्रतिमुर्ती एवं घोर नास्तिक थी | दस्युराज हिरण्यकश्यप की अपार शक्ति के आगे नन्हे प्रहलाद की क्या बिसात थी ? लेकिन अंत में जीत तो भक्ति, विश्वास एवं सत्य की ही हुई | ईर्ष्या,अनाचार,दुर्भावना एवं, अभिमान, असहिष्णुता,अविश्वास रूपी होलिका को होली की दिव्य अग्नि में भस्म कर देना ही सच्चा ‘होलिका दहन’ है। परमात्मा में श्रदा रखते हुए सात्विक विचार, “सकारात्मकता,स्नेह, प्रेम, सोहार्द, सहिष्णुता,सह्रदयता और करुणा के रंग में अपनी अंतरात्मा को रँगना ही सच्चे मायने में होली मनाने और खेलने का सही तरीका है | इन्हीं विचारों के साथ होली को HOLY के रूप में मनाएँ |
होलीका दहन का वैज्ञानिक महत्व भी अनूठा है क्योंकि होलिका दहन के समय उत्त्पन वातावरण हमारे लिये सुरक्षा कवच का काम भी करता है | सर्दी के मोसम में कई तरह के वायरस और बैक्ट्रिया वातावरण में रहते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिये हानि कारक होते हैं | पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन की प्रक्रिया से वातावरण का तापमान 145 डिग्री फारेनहाइट या इससे अधिक तक बढ़ जाता है जो बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक कीटों को नष्ट करने में प्रभावी भूमिका निभाता है। होलिकादहन के वक्त सभी नर नारी घेरा बना कर जलती हुयी होली को देखते हैं,जहाँ गर्मी की वजह से तापक्रम 145 डिग्री फेरनाइट से ज्यादा हो जाता है जिससे वातावरण के सारे वायरस और बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं | होलिकादहन के बाद लोग वहां की राख जिसे विभूति कहते हैं को चन्दन और आम के पत्तों के साथ मिला कर अपने मस्तष्क पर लगा कर उसका लेप करते हैं |
डा. जे. के. गर्ग