नैतिकता के आधार पर छोड़ दिया था मंत्री पद
1956 में तमिलनाडू के अरियालपुर में हुई रेल दुर्घटना की नेतिक जिम्मेवारी लेते हुए शास्त्रीजी ने रेलवे मंत्री का पद छोड़ दिया था | क्या हम वर्तमान समय मंत्रियों से ऐसे आचरण की अपेक्षा रख सकते हैं? कदापि नहीं | सहनशीलता में महानता सन्निहित है 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सुरक्षा कारणों से हवाई हमले की घंटी बज सकती थी | उन दिनों सुरक्षा के लिये प्रधान मंत्री भवन मे भी खाई बनवाई गई थी। सुरक्षा कर्मियों ने प्रधान मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री से अनुरोध किया ”आज हमले की आशंका अधिक है आप घंटी बजते ही तुरंत खाई में चले जायें।” किंतु दैवयोग से हमला नहीं हुआ। अगले दिन सुबह देखा गया कि बिना बमबारी के खाई गिरकर पट गई है। खाई बनाने वालों तथा उसे पास करने वालों की यह अक्षम्य लापरवाही थी। यदि वे उस रात खाई के अंदर होते तो क्या होता सोचकर राँगेटे खडे हो जाते हैं। देश के प्रधानमंत्री का जीवन कितना मूल्यवान् होता है? वह भी युद्धकाल में? अन्य व्यवस्था अधिकारियों ने भले ही इस प्रसंग पर कोई कार्यवाही की हो, किन्तु शास्त्रीजी ने संबंधित व्यक्तियों के प्रति कोई कठोरता नहीं बरती अपितु बालकों की भाँति क्षमा कर दिया। प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग