जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है उसके स्थान पर उनकी शिक्षाओं और सद्गुणों को अपनायें
एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखाथा कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमेंरोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे।उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इसपर उनका एक समर्थक बोला, ‘बापूजी, यदिकोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।’ उसव्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले, ‘भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।’ इसपर वहां मौजूद लोगों ने कहा, ‘बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। गांधीजी बोले ”आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?’ यहसुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, ‘बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देतेहैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।’गांधीजीने कहा, ‘यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों सेप्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए।
तोते की तरह गीता-रामायण कापाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है। इसतरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।