गौरी तृतीया व्रत आज

राजेन्द्र गुप्ता
माघ माह का धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही खास महत्व है, माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि का भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि को गौरा तृतीया पर्व के रूप में मनाते हैं। इस पर्व का उतना ही महत्व है, जितना तीज पर्व का है। इस तिथि को माता गौरी की जन्मतिथि के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन माता गौरी की विशेष पूजा और व्रत का रखने का विधान है, शास्त्रों में इस व्रत महिमा का बखान मिलता है। इस साल 14 फरवरी के दिन गौरी तृतीय व्रत रखा जाएगा। मां पार्वती की कृपा करने के लिए गौरी तृतीया व्रत अवश्य करना चाहिए, ऐसा शास्त्रों में बताया गया है।

मिलती है शिव-पार्वती की आसीम कृपा
**********************************
शिव और माता पार्वती की आसीम कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत रखा जाता है। शास्त्रों में इस व्रत की महिमा के बारे में उल्लेख मिलता है कि विभिन्न कष्टों और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है स्त्रियों को दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है गौरी व्रत कथा के संबंध में पुराणों में लिखा है कि इसी व्रत की महिमा के कारण दक्ष को पुत्री रूप में सती प्राप्त हुई थी। सती माता ने भगवान शिव को पाने हेतु जप और तप किया था जिसका फल उन्हें प्राप्त हुआ था। माता सती के अनेकों नाम हैं जिसमें गौरी भी उन्हीं का एक नाम है ऐसा माना जाता है कि शुक्लपक्ष की तृतीय तिथि पर ही भगवान शंकर के साथ देवी सती का विवाह हुआ था इसलिए माघ शुक्ल तृतीया के दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत रखा जाता है।

गौरी तृतीय व्रत की पूजनविधि
*************************
इस दिन सुबह नहा-धोकर देवी सती के साथ-साथ भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए। पंचगव्य तथा चंदन मिले जल से देवी सती और भगवान शिव की प्रतिमा को स्नान कराएं। धूप, दीप, नैवेद्य तथा नाना प्रकार के फल अर्पित कर पूजा करनी चाहिए। इस दिन इन व्रत का संकल्प सहित प्रारंभ करना चाहिए। पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चंदन, सिंदूर, लौंग, पान, चावल, सुपारी, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा चढ़ाएं। माता गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिंदूर, मेहंदी लगाते हैं। माता को श्रृंगार की वस्तुओं से सजाएं। शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन करके गौरी तृतीया की कथा सुनी जाती है तथा गौरी माता को सुहाग की सामग्री चढ़ाई जाती है।

गौरी तृतीया है सौभाग्यदायिनी
*************************
माता गौरी का पूजन एवं व्रत रखने से सुखों में वृद्धि होती है विधिपूर्वक अनुष्ठान करके भक्ति के साथ पूजन करके व्रत की समाप्ति के समय दान करें। इस व्रत का जो स्त्री इस प्रकार उत्तम व्रत का अनुष्ठान करती है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। निष्काम भाव से इस व्रत को करने से नित्यपद की प्राप्ति होती है। यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। स्त्रियों के लिए यह तिथि सौभाग्यदायिनी मानी गई है। सुहागिन स्त्रियां इस दिन पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए व्रत और पूजा करती हैं। अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती देखी जा सकती हैं। और कन्याओं का शीघ्र विवाह होता है, इस दिन व्रत करने से महिलाओं को लाभ मिलता है। मनचाहा वर मिलता है और महिलाएं संतान और पति सुख प्राप्त करती हैं। कन्याओं को मनचाहा पति मिलता है। कन्याओं की शादी अच्छे घर में हो जाती है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।

error: Content is protected !!