हरियाली तीज आज, सुहागिनें पति की दीर्घायु के लिए रखेंगी व्रत

राजेन्द्र गुप्ता
पंचांग के अनुसार 11 अगस्त 2021, बुधवार को श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। श्रावण शुक्ल की तृतीया तिथि को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। हरियाली तीज का पर्व महिलाओं के सबसे प्रिय पर्वों में से एक है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। हरियाली तीज पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।

हरियाली तीज का महत्व
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हरियाली तीज पर व्रत रखने का विधान है। इस व्रत को निर्जला व्रत भी कहते हैं। हरियाली तीज का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है। इस व्रत का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। ये व्रत दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सावन के महीने का ये विशेष पर्व है, जो सुहागिन स्त्रियों को समर्पित है।

हरियाली तीज व्रत का शुभ मुहूर्त
हरियाली तीज का व्रत विधि पूर्वक करना चाहिए, तभी इस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस व्रत की पूजा में शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पंचांग के मुताबिक हरियाली तीज का पर्व 11 अगस्त 2021, बुधवार के दिन मनाया जाएगा। लेकिन तृतीया की तिथि 10 अगस्त, मंगलवार की शाम 06 बजकर 11 मिनट से ही आरंभ हो जाएगी। तृतीया तिथि 11 अगस्त 2021, बुधवार को शाम 04 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी।

पूजा विधि
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हरियाली तीज का पर्व 11 अगस्त, बुधवार को रखा जाएगा। इस दिन प्रात: काल उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन मायके से आए हुए वस्त्र धारण करने की परंपरा है। इसकेबाद व्रत का संकल्प लें। हरियाली तीज पर सोलह श्रृंगार का भी विशेष महत्व है। इस दिन घर की साफ-सफाई कर अच्छे से सजाना चाहिए। पूजा शुरू करने से पहले एक चौकी पर मिट्टी में गंगा जल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं। इसके बाद एक थाली में सुहाग की सामग्री जिसमें बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी, नेल पॉलिश, अक्षत, धूप, दीप, गंधक आदि सजाकर अर्पित करें। भगवान शिव को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाना चाहिए। भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।

हरियाली तीज कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था। तब उन्होंने शिव को पति के रूप में पाने की कामना की थीं। लेकिन तभी नारद मुनि राजा हिमालय से मिलने उनके पास गए और माता पार्वती से शादी के लिए भगवान विष्णु का नाम सुझाया। इससे हिमालयराज बहुत प्रसन्न हुए और पार्वती का विवाह विष्णु जी से कराने को तैयार हो गए।

जब माता पार्वती को ये पता चला कि उनका विवाह विष्णु भगवान से तय कर दिया गया है तो वो काफी निराश हो गईं।दुख में आकर वो एकांत जंगल में चली गईं। उन्होंने वहां रेत से शिवलिंग बनाया और महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए अनेक वर्षों तक कठोर तप किया था। उन्होंने तपस्या के दौरान अन्न जल त्याग दिया था। उस समय माता पार्वती सूखे पत्ते चबाकर अपना दिन व्यतीत करती थीं।

उस समय माता पार्वती के सामने कई तरह की चुनौतियां आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह नहीं की। जब गिरिराज को अचानक पार्वती जी के गुम होने की सूचना मिली तो उन्होंने उनकी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन वो नहीं मिलीं। उस समय माता पार्वती वन में एक गुफा के अंदर शिव की आराधना में लीन थीं।

आखिरकार माता पार्वती के तप के आगे शिवजी को विवश होना पड़ा और वो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करते हुए इच्छा पूर्ति का वरदान दे दिया।इसके बाद उनके पिता जब उन्हें ढूंढते हुए वन में पहुंचे तो पार्वती जी ने साथ जाने से इंकार कर दिया और एक शर्त रखी कि मैं आपके साथ तभी चलूंगी जब आप मेरा विवाह महादेव के साथ करेंगे। हारकर पर्वतराज को पुत्री पार्वती हठ माननी पड़ी और वे उन्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद पूरे विधि-विधान के साथ शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

इस लिए श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महादेव और माता पार्वती के मिलन का दिन कहा जाता है। शिव जी ने इस दिन माता पार्वती के तप से प्रसन्न होकर कहा था कि इस दिन तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। आज के बाद जो भी स्त्री इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करेगी उसे मैं मन वांछित फल दूंगा। उस स्त्री को तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा। इसलिए ये दिन सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं दोनों के लिए सौभाग्य का दिन माना जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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