अनंत चतुर्दशी आज

क्या है 14 गांठों का रहस्य?
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राजेन्द्र गुप्ता
आज यानी 19 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं, इस दिन 14 गांठों वाला अनंत सूत्र भी बांधा जाता है।
अनंत चतुर्दशी के दिन होती है भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा, हाथ में बांधते हैं 14 गांठ, जानें 14 गांठों का रहस्य।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। इस साल अनंत चौदस 19 सितंबर को मनाई जाएगी इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं, इस दिन 14 गांठों वाला अनंत सूत्र भी बांधा जाता है।

14 गांठों का रहस्य
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अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करने के बाद अनंत सूत्र को हाथ में बांधा जाता है। इस अनंत सूत्र में 14 गांठें लगाई जाती है। 14 गांठें इसलिए लगाई जाती हैं क्योंकि 14 गांठ को 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भौतिक जगत में 14 लोक बनाए जिनमें भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक शामिल है। बता दें कि अनंत सूत्र में लगने वाली हर एक गांठ एक लोक का प्रतिनिधित्व करती है। अनंत सूत्र को हाथ में बांधा जाता है।

अनंत सूत्र बांधने के नियम
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अनंत सूत्र हाथ में बांधने के कई नियम भी होते हैं। इसलिए इन्हें हमेशा ध्यान में रखना जरूरी होता है। कहते हैं अनंत सूत्र कपड़े या रेशम का होता है। मान्यता है कि अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने और महिलाओं को अपने बाएं हाथ में पहने। इस दिन व्रत रखने का भी विधान है। कहते हैं इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की उपासना करनी चाहिए। व्रत रखने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनका आर्शीवाद प्राप्त होता है।

अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
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इस साल अनंत चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त 19 सितंबर 2021 सुबह 6:07 मिनट से शुरू होकर, अगले दिन यानि 20 सितंबर 2021 को सुबह 5:30 मिनट तक होगा। इस दिन शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 23 घंटे और 22 मिनट होगी।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
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एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय यज्ञ मंडप का निर्माण सुंदर तो था ही, अद्भुत भी था वह यज्ञ मंडप इतना मनोरम था कि जल व थल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं होती थी। जल में स्थल तथा स्थल में जल की भांति प्रतीत होती थी। बहुत सावधानी करने पर भी बहुत से व्यक्ति उस अद्भुत मंडप में धोखा खा चुके थे।

एक बार कहीं से टहलते-टहलते दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आ गया और एक तालाब को स्थल समझ उसमें गिर गया। द्रौपदी ने यह देखकर ‘अंधों की संतान अंधी’ कह कर उनका उपहास किया। इससे दुर्योधन चिढ़ गया।

यह बात उसके हृदय में बाण समान लगी। उसके मन में द्वेष उत्पन्न हो गया और उसने पांडवों से बदला लेने की ठान ली। उसके मस्तिष्क में उस अपमान का बदला लेने के लिए विचार उपजने लगे। उसने बदला लेने के लिए पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा कर उस अपमान का बदला लेने की सोची। उसने पांडवों को जुए में पराजित कर दिया।

पराजित होने पर प्रतिज्ञानुसार पांडवों को बारह वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडव अनेक कष्ट सहते रहे। एक दिन भगवान कृष्ण जब मिलने आए, तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना दुख कहा और दुख दूर करने का उपाय पूछा।

तब श्रीकृष्ण ने कहा- ‘हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा और तुम्हारा खोया राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा।’

इस संदर्भ में श्रीकृष्ण ने उन्हें एक कथा सुनाई –

प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई।

पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।

कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे।
सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।

पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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