वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई।नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तभी ही पेमल की सहेली लाछा गूजरी पेमल का संदेश लेकर तेजाजी मिली और बोली कि पेमल ने बोला कि अगर वो मुझे खरनाल नहीं ले जाएगें तो मे जहर खा कर मर जाऊंगी मैंने इतने वर्ष आपके इंतजार में निकले है मैं आपके चरणों में रह कर आपकी सेवा करुगी | रूपवती पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी उसे अपने साथ ले जाने को राजी हो गये और उससे बात करके अपने साथ चलने को कहा तभी यकायक वहां लाछां ने आकर कहा कि“मेर के मेणा डाकू उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं, इसलिए तेजा जी आप मेरी गायों को डाकुओं से छुड़ा कर लायें | तेजाजी गायों को लाने के अपने पांचों हथियार लेकर अपनी घोडी लीलण पर सवार हए |
तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण पर बैठ करके डाकुओं का पीछा करने को चल दिए किया, रास्ते में उन्हें एक इच्छाधारी काला नाग आग में जलता हुआ दिखाई दिया तेजाजी ने तुरंत अपने भाले से नाग को आग से बाहर निकाला | नाग उन्हें धन्यवाद देने बोला क्योंकि तुम मेरी मुक्ति में बाधक बने हो इसलिए मे तुमको डसूंगा | तेजाजी बोले नागराज मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है, | तेजाजी ने प्रायश्चित स्वरूप नागराज की बात मान ली और नागराज को वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचें जहाँ मंदारिया की पहाड़ियों में डाकुओं के साथ उनका भंयकर संघर्ष जिसमें तेजाजी के शरीर पर अंको गहरे घाव हो गये और वो लहूलुहान हो गये लडाई मे अनेको डाकू मारे गये इव बाकी के डाकू भाग गये | तेजाजी सारी गायों को लेकर उन्हें पनेर में किन्तु इन गयो मे उसका काणां केरडा नहीं था , उसने तेजा जी को केरडा को लाने के लिए प्राथना की | तेजा जी वापस चलेगये और बचे हुए डाकुओं को मार कर लच्छा को उसका केवड़ा डे दिया |