अपना वादा पूरा करने के लिये तेजा जी नाग राज के पास जाकर उस डसने के लिय अपने को प्रस्तुत कर दिया | लहूलुहान तेजाजी देख कर नागराज बोले तेजा तुम्हारे रोम रोम से तो खून टपक रहा है, में तुम्हें कहाँ डसू | तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली व जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें | नागराज बोला तुम शूरवीर होनेके साथ साथ अपने वचन के पक्के भी हो तुम्हारी सच्चाई के सामने में हार गया हूँ | में तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अपने कुल के एक मात्र देवता बनोगे | आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका जहर उतर जायेगा | तेजाजी ने कहा “ नागराज आपको मुझें डसंना ही होगा | आखिर तेजाजी की जिद्द से हारकर तेजाजी की जीभ पर डस लिया | अपने जीवन का अंत नजदीक देखकर सत्यवादी तेजा जी ने पास मे खडी ऊंट चराने वाले रबारी आसू देवासी को कहा “भाई मेरा प्रभु के परम धाम जाने का समय आ गया है | मेरी पत्नीं पेमल को मेरा रुमाल देकर कहना कि मेरे डे भगवान शिव मुझे बुला रहे है | तेजाजी की हालत को देख कर उनकी घोड़ी लीलण की आँखों से आंसू की गंगा बहने लगी उसे तेजा जी ने आदेश दिया के गंगा जल से परिवार के लोग और पेमल को मेरा हाल बता देना | “तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल की आँखें पथरा गई उसने मां से नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई लेकर सुरसुरा ( किशनगढ़ के समीप ) जाकर अपने सत्यवादी पति के साथ सती होने का निश्चय कर लिया | कहते हैं कि चिता की अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई थी लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब और कैसे करें तब सती पेमल ने बोला भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना ऐसा करने से आप की सारी मनोकामनाये पुरी होगी |