कर्तव्यनिष्ठता सत्यता और सादगी की प्रतिमूर्ति जननायक शास्त्री जी के जीवन के अद्भुत मर्मस्पर्शी प्रेरणादायक संस्मरण Part 4

आत्मसम्मान के धनी आजादी के दिवाने शास्त्री जी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में थे तब की घटना।

j k garg
आत्मसम्मान के धनी आजादी के दिवाने शास्त्री जी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में थे तब घर पर उनकी पुत्री गम्भीर रूप बीमार थी,उनके साथियों ने उन्हें जेल से बाहर आकर पुत्री को देखने और उसकी देखभाल करने लिये आग्रह किया, शास्त्री की पैरोल भी स्वीकृत हो गई, परन्तु शास्त्री जी ने पैरोल पर छूटकर जेल से बाहर आना अपने आत्मसम्मान के विरुद्ध समझा ! क्योंकि वे यह लिखकर देने को तैयार नथे कि बाहर निकलकर वे स्वतन्त्रता आन्दोलन में कोई काम नहीं करेंगे। अंत मेंमजिस्ट्रेट को शास्त्रीजी को पन्द्रह दिनों के लिए बिना शर्त छोड़ना पड़ा। वे घर पहुँचे, लेकिन उसी दिन बालिका के प्राण-पखेरू उड़ गए। शास्त्री जी ने कहा, “जिस काम के लिए मैं आया था, वहपूरा हो गया है। अब मुझे जेल वापस जाना चाहिये।” और उसी दिन वो जेल वापस चले गये।

शास्त्रीजी नहीं चाहते थे कि उनका नाम अख़बारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा करें

लाला लाजपत राय से लोक सेवामंडल के सदस्य की दीक्षा लेने के बाद लाला लाजपत राय ने उनसे कहा “लालबहादुर ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं यथा सफेद सगंमरमर और नीव में लगाये गयेसाधारण पत्थर, संगमरमर के पत्थरों को दुनिया देखती है और उनकी प्रसंसा भी करती हैवहीं दूसरे तरह के पत्थर नीव में लगे जिनके जीवन में सिर्फ अँधेरा-अँधेरा ही है लेकिन ताजमहल को उन्होंने खड़ा रक्खा हुआ है, इसलिए तुम नीव के पत्थर बनने की कोशिश करना”| शास्त्रीजीने कहा मुझे लालाजी के वो शब्द आज भी याद है इसीलिए में नीव का पत्थर बना रहना चाहता हूँ | इसीलिए शास्त्रीजी जीवन पर्यन्त नीवं का मजबूत पत्थर काम करते रहेऔर कभी भी नहीं चाह कि उनका नाम अख़बारों की सुर्खियाँ बने और लोग उनकी प्रशंसाकरें |

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