राष्ट्रपति भवन वे अत्यंत सादगी से रहते थे अपने विदाई समारोह में उन्होंने कहां मेरे लिये राष्ट्रपति भवन की भव्यता और सदाकत आश्रम की सादगी एक समान है , यह उनकी सादगी नैतिकता आदर्श और सज्जनता का सटीक प्रमाण है | सरोजनी नायडू ने सही ही कहा था” राजेन्द्र बाबू की असाधारण प्रतिभा,उनके स्वभाव को अनोखा माधुर्य,उनके चरित्र की विशेषता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है | गांधीजी के निकटतम शिष्यों में उनका वो ही स्थान है जो ईसा मसीह के निकट सेंट जाॅन का था |
किसने नेहरू को 1955 में भारत रत्न पुरस्कार दिया और क्यों ?भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की विरासत पर वर्तमान सरकार के तहत एक व्यवस्थित हमला हुआ है । यह हमला बहुआयामी रहा है, जिसमें इतिहास के निराधार प्रचार किया जा रहा है कि नेहरू ने 1955 में खुद को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया था | विवाद का मूल बिंदु पुरस्कार की नामांकन प्रक्रिया है। भारत रत्न देने की प्रथा रही है:कि प्रधानमंत्री भारत के राष्ट्रपति को नामों की सिफारिश करते हैं, जो राष्ट्रपति स्वीकार करते हैं। प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू ने 15 जुलाई 1955 को प्रधानमंत्री नेहरु की अत्याधिक सफल सोवियत रूस और यूरोप के कई देशों की सफल विदेश यात्रा के बाद शीत युद्ध के वातावरण में शांति स्थापित करने में उनके योगदान को देखते हुए परंपराओं का उल्लंघन करते हुए हवाईअड्डे पर स्वागत करने खुद स्वागत करने गये थे और उसी शाम नेहरू के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में राजकीय भोज आयोजित किया था | इस भोज में राजेंद्र बाबू ने भारत रत्न दिए जाने वाली परंपरा की अवहेलना करते हुए खुद ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर बिना मंत्रिमंडल एवं प्रधानमंत्री की अनुशंसा के नेहरू को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी थी | इस बात का उल्लेख भी बाद में किया था और यह समाचार उस वक्त सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुआ था | इस तथ्य से नेहरू के खिलाफ किये जाने दुष्प्रचार का पर्दाफाश भी हो जाता है |