कालभैरव अष्टमी आज

राजेन्द्र गुप्ता
कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 27 नवंबर, शनिवार को है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान कालभैरव की पूजा करने का विधान है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।

काल भैरव को उग्र स्वरुप के लिए जाना जाता है। ये आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक हैं। भगवान भैरव के विषय में कहा जाता है कि अगर कोई इनके भक्त का अहित करता है तो उसे तीनों लोकों में कहीं शरण प्राप्त नहीं होती है। कालभैरव अष्टमी पर इनकी पूजा करने और व्रत करने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं।

कालाष्टमी, शुभ मुहूर्त
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अष्टमी तिथि प्रारम्भ: 27 नवम्बर 2021, 05:43 a.m

अष्टमी तिथि समापन: 28 नवम्बर 2021, 06:00 a.m

कालभैरव अष्टमी का महत्व
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कालभैरव अष्टमी के दिन भगवान भैरव का व्रत और पूजन करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान भैरव हर संकट से अपने भक्त की रक्षा करते हैं। उनके भय से सभी नकारात्क शक्तियां दूर हो जाती हैं। कालाष्टमी के व्रत की पूजा रात्रि में की जाती है इसलिए जिस रात्रि में अष्टमी तिथि बलवान हो उसी दिन व्रत किया जाना चाहिए।

जब भैरव ने काटा ब्रह्मा का पांचवां सिर
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शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्माजी स्वयं को अन्य देवताओं से श्रेष्ठ मानने लगे। तब शिवजी के क्रोध से कालभैरव उत्पन्न हुए। उन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। बाद में ब्रह्माजी ने शिवजी को श्रेष्ठ देव माना। ब्रह्मा का सिर काटने के कारण कालभैरव पर ब्रह्महत्या का दोष लगा। शिवजी के कहने पर कालभैरव काशी आए और यहां आकर तपस्या करने से उनको ब्रह्महत्य के दोष से मुक्ति मिली।

कालभैरव पूजा विधि
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– कालभैरव अष्टमी यानी 27 नवंबर को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद नजदीक के किसी मंदिर में जाकर भगवान कालभैरव, भगवान शिव और देवी दुर्गा की पूजा करें। भगवान भैरव की पूजा रात में करने का विधान है, इसलिए रात में एक बार फिर भगवान कालभैरव की पूजा करनी चाहिए।
– अर्ध रात्रि यानी 12 बजे के लगभग धूप, दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से भगवान कालभैरव की विधिवत् पूजन और आरती करें। भैरव महाराज को गुलगुले (गुड़ आटें आदि से बनी हुई मीठी पूरी), हलवा या जलेबी का भोग लगाना चाहिए।
– भोग लगाने के बाद वहीं बैठकर भैरव चालीसा का पाठ करें। पूजन संपन्न हो जाए तो जिन चीजों का भोग आपने भैरवजी को लगाया है, वे सभी काले कुत्ते को भी खिलाना चाहिए या फिर कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं, क्योंकि कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना गया है। इस प्रकार विधिवत पूजा करने से भगवान कालभैरव की कृपा आप पर बनी रहेगी।

कालाष्टमी पौराणिक कथा
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एक बार त्रिमूर्ति देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव में बहस हो रही थी कि उनमें से कौन अधिक श्रेष्ठ है। इस बहस में एक बार ब्रह्माजी ने शिव का अपमान कर दिया और तब शिवजी इतने क्रोधित हो गए कि भैरव बाबा उनके माथे से प्रकट हो गए और ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक को अलग कर दिया।

ब्रह्मा का कटा हुआ सिर भैरव की बाईं हथेली पर लग गया। भैरव बाबा को इस पाप के भुगतान के लिए भिखारी के रूप में ब्रह्मा जी की खोपड़ी के साथ नग्न अवस्था में भटकना पड़ा। भटकते हुए वह शिव नगरी वाराणसी पहुंचे तब उनके पापों का अंत हुआ। यही कारण है कि वह काशी के कोतवाल माने जाते हैं। उनके दर्शन के बिना कोई काशी वास नहीं कर सकता।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076

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