पारिवारिक कर्तव्य के वनिस्पत राष्ट्रीय कर्तव्य ही था सर्वोच्च
राजेन्द्र बाबू की दिनचर्या पर गांधीजी की छाप
समाज के बदलने से पहले अपने को बदलने का साहस होना चाहिये। “यह बात सच थी,” बापूजी की इस बात को राजेन्द्र बाबू ने अंतर्मन से स्वीकार किया वे कहते थे कि “मैं ब्राह्मण के अलावा किसी का छुआ भोजन नहीं खाता था। चम्पारन में गांधीजी ने उन्हें अपने पुराने विचारों को छोड़ देने के लिये कहा। आख़िरकार उन्होंने समझाया कि जब वे साथ-साथ एक ध्येय के लिये कार्य करते हैं तो उन सबकी केवल एक जाति होती है अर्थात वे सब साथी कार्यकर्ता हैं | राष्ट्रपति बनने पर भी उनका जनसाधारण एवं गरीब ग्रामीणों से निरंतर संपर्क बना रहा। वह वर्ष में से 150 दिन रेलगाड़ी द्वारा यात्रा करते और आमतौर पर छोटे-छोटे स्टेशनों पर रुक कर सामान्य लोगों से मिलते और उन के दुख दर्द दूर करने का प्रयास करते उनकी कार्य शैली उनकी कर्तव्य परायणता और सादगी की परिचायक है