सुंदरता के लिए जानी जातीं थीं देवी सीता
बेहद सुंदर थी मां सीता
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सीताजी का चरित्र सभी के लिए मार्गदर्शक रहा है और आज भी प्रासंगिक है। एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के रूप में देवी सीता आदर्श रूप सभी के लिए पूजनीय रहा है। सीता, शक्ति , इच्छा-शक्ति तथा ज्ञान-शक्ति तीनों रूपों में प्रकट होती हैं। सीता उपनिषद, जो अथर्ववेदीय शाखा से संबंधित उपनिषद है, में देवी सीता की महिमा एवं उनके स्वरूप को व्यक्त किया गया है। इसमें सीता को शाश्वत शक्ति का आधार बताया गया है तथा उन्हें ही प्रकृति में परिलक्षित होते हुए देखा गया है। सीताजी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है तथा योगमाया रूप में स्थापित किया गया है। सीताजी ही प्रकृति हैं, वही प्रणव और उसका कारक भी हैं। सीता शब्द का अर्थ अक्षर ब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है। तथ्य यह भी है सीता माता अत्यधिक सुंदर थीं। उनकी सुंदरता रावण कभी नहीं भुला सका और अंतत: उनका अपहरण तक कर लिया। वेद, पुराण सभी में इस बात का उल्लेख है। बाद में आचार्य चाणक्य ने भी इस संबंध में एक सूक्ति लिखी जिसे आज आम कहावत- अति सर्वत्र वर्जयेत के रूप में कहा-सुना जाता है। चाणक्य ने लिखा-
अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावण:। अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्॥
भावार्थ- अधिक सुन्दरता के कारण ही सीता का हरण हुआ था, अति घमंडी हो जाने पर रावण मारा गया तथा अत्यन्त दानी होने से राजा बलि को छला गया । इसलिए अति सभी जगह वर्जित है ।
पूजन-
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सीता जयंती पर माता की उपासना की जाती हैं। सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर माता सीता व भगवान श्रीराम की पूजा-उपासना करनी चाहिए। पूजन में चावल, जौ तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इस व्रत को करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्ति होती है। मां सीता लक्ष्मी का ही रूप हैं। इस कारण इनके निमित्त किया गया व्रत परिवार में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि करने वाला होता है। एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म, चूंकि भूमि से हुआ था, इसलिए वह अन्नपूर्णा कहलाती हैं। माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते हैं।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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