होली दहन के दूसरे दिन को धुरड्डी,धुलेंडी,धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, इस दिन बच्चे-बूढ़े,स्त्री पुरुष अपने मनमुटाव मतभेद\ को भुला कर निसंकोच ढोलक, मंजीरे के साथ नाचते गाते हुए टोलियां बना कर आसपास के घरों और दोस्तों तथा रिश्तेदारों के घर पर जाकर उन्हें रगं गुलाल लगाते हैं पुरानी कटुता एवं दुश्मनी को भूल कर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं और दुश्फिमनी को छोड़ कर घनिष्रट दोस्त बन जाते हैं | रंग खेलने के बाद देर दोपहर बाद हीस्त्री पुरुष बच्चे बुजुर्ग स्नान करते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर अपने स्वजनों ईष्ट मित्रों पास पड़ोसियों से मिलने उनके घर पर जाते हैं | आजकल किसी सार्वजनिक जगह पर भी होली मिल्न का सामूहिक आयोजन किया जाता है हैं। स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ प्रीति भोज में शामिल होकर मोजमस्तती करते हुए गाने बजाने का प्रोग्राम भी करते हैं | फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण होली को फाल्गुनी भी कहते हैं । अन्न को होला भी कहते हैं, इसलिए इस पर्व का नाम से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। होली के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत के आरंभ का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादि तिथि भी कहते हैं।