शीतला अष्टमी आज

राजेन्द्र गुप्ता
इस साल शीतला अष्टमी का त्योहार शुक्रवार, 25 मार्च 2022 को मनाया जाएगा। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला अष्टमी होली के आठ दिन बाद मनाई जाती है। इसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। लोग शीतला अष्टमी के एक दिन पहले ही भोग तैयार कर लेते हैं, और इसे दूसरे दिन माता को चढ़ाया जाता है।

शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
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शीतला अष्टमी शुक्रवार, मार्च 25, 2022 को

शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:29 बजे से शाम 06:41 बजे तक
अवधि – 12 घण्टे 12 मिनट्स

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 25 मार्च 2022 को 12 बजकर 9 मिनट से शुरू

अष्टमी तिथि समाप्त – 25 मार्च 2022 को 10 बजकर 4 मिनट तक

शीतला अष्टमी महत्व
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शीतला अष्टमी का व्रत महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए रखती हैं। माना जाता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार का रोग नहीं लगता। इस दिन व्रत रखने और शीतला माता की पूजा करने से परिवार के सदस्य सेहतमंद रहते हैं।

शीतला अष्टमी के दिन क्यों लगाया जाता है माता को बासी भोजन का भोग
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माना जाता है कि शीतला माता को बासी भोजन काफी प्रिय होता है। ऐसे में इस दिन माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए लोग बासी और ठंडे भोजन का भोग लगाते हैं। भारत के कुछ राज्यों में शीतला अष्टमी को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन नहीं किया जाता है।

शीतला अष्टमी पूजा विधि
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इस दिन प्रात काल उठकर पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। साफ-सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें। पूजा करने के लिए दो थाली सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, पुआ, बाजरा, नमक पारे, मठरी और सतमी के दिन बने मीठे चावल रखें। दूसरी थाली में आटे का दीपक बनाकर रखें। रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का और मेहंदी रखें और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें। घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके बिना दीपक जलाए रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाए। नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

मां की उपासना का मंत्र
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स्कंद पुराण में वर्णित माँ का यह पौराणिक मंत्र ‘ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः’ भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है। जो भी भक्त शीतला माँ की भक्तिभाव से आराधना करते हैं माँ उन पर अनुग्रह करती हुई उनके घर-परिवार की सभी विपत्तिओं से रक्षा करती हैं। माँ का ध्यान करते हुए शास्त्र कहते हैं कि, ‘वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् || अर्थात- मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली,सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।

इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं।ऋषि-मुनि-योगी भी इनका स्तवन करते हुए कहते हैं कि ”शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः अर्थात- हे माँ शीतला ! आप ही इस संसार की आदि माता हैं, आप ही पिता हैं और आप ही इस चराचर जगत को धारण करतीं हैं अतः आप को बारम्बार नमस्कार है।

शीतला माता की कथा
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किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। शीतला माता का जब बसौड़ा आता तो वह ठंडे भोजन से कुण्डे भरकर पूजन करती थी और स्वयं ठंडा भोजन ही करती थीं। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था. एक दिन उस गांव में आग लग गई, जिसमें उस बुढ़िया मां की झोपड़ी को छोड़कर सभी लोगों की झोपड़ियां जल गईं. जिससे सभी को बड़ा दुःख हुआ और इसके साथ ही बुढ़िया की झोपड़ी को सही-सलामत देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ।

तब सब लोग उस बुढ़िया के पास आए और इसका कारण पूछा। बुढ़िया ने कहा कि मैं तो बसौडे़ के दिन शीतला माता की पूजा करके ठंडी रोटी खाती हूं, तुम लोग यह काम नहीं करते। इसी कारण मेरी झोपड़ी शीतला मां की कृपा से बच गई और तुम सबकी झोपड़ियां जल गईं। तभी से शीतलाष्टमी (बसौड़े) के दिन पूरे गांव में शीतला माता की पूजा होने लगी तथा सभी लोग एक दिन पहले के बने हुए बासी पदार्थ (व्यंजन) ही खाने लगे। हे शीतला माता! जैसे आपने उस बुढ़िया की रक्षा की, वैसे ही सबकी रक्षा करना।

बासी भोजन से ही शीतला माता की पूजा वैशाख माह के कृष्ण पक्ष के किसी भी सोमवार या किसी दूसरे शुभवार को भी करने का विधान है। वैशाख मास में इसे बूढ़ा बसौड़ा के नाम से तथा चैत्र कृष्ण पक्ष में बसौड़ा के नाम से जाना जाता है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के दो सोमवारों और सर्दियों के किसी भी माह के दो सोमवारों को भी शीतला माता का पूजन स्त्रियों के द्वारा किया जाता है, परंतु चैत्र कृष्ण पक्ष का बसौड़ा सर्वत्र मनाया जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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