कुमार स्कन्द षष्ठी व्रत आज

राजेन्द्र गुप्ता
आषाढ़ माह की स्कन्द षष्ठी व्रत को करने से संतान से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। संतान निरोगी होती है। हर महीने आने वाली शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 5 जुलाई, मंगलवार को रखा जाएगा। यह व्रत संतान की प्रगति और सुखी जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन भगवान शिवजी के बड़े बेटे कार्तिकेय की पूजा की जाती है। वह महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है। महादेव के तेज से उत्पन्न बालक कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार है।

स्कन्द षष्ठी व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
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षष्ठी तिथि का आरंभ 5 जुलाई मंगलवार को 2 बजकर 57 मिनट पर होगा। वह 6 जुलाई को 7 बजकर 19 मिनट पर समापन होगा।

स्कन्द षष्ठी पूजा विधि
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इस दिन प्रातः स्नानादि करके भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करें। फिर भगवान कार्तिकेय को फूल, फल, अक्षत, धूप, दीपक, गंध, लाल चंदन, मोर का पंख आदि अर्पित करें। इस दिन मंदिर में जाकर महादेव और उनके परिवार की पूजा करें और प्रसाद का भोग लगाएं।

स्कन्द षष्ठी का महत्व
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इस व्रत को करने से संतान को सुख और आरोग्य प्राप्त होता है। पौराणिक कथा के अनुसार च्यवन ऋषि के आंखों की रोशनी चली गई थी। तब उन्होंने यह व्रत रखा था और स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।

स्कन्द षष्ठी व्रत कथा
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पुराणों में कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन मिलता है। जब असुरों ने देवलोक में आतंक मचाया हुआ था तब देवगण को असुरों से पराजय का सामना करना पड़ा था। देवताओं के निवास स्थान पर भी असुरों ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। सभी देवगण असुरों को आतंक से इतने परेशान हो चुके थे कि वो सभी मिलकर भगवान ब्रह्मा के पास गए और मदद की प्रार्थना की। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा। लेकिन इस समय भगवान शिव माता सती के वियोग में समाधि में लीन थे।

तब सभी देवताओं और इंद्र ने शिवजी समाधि से जगाने का प्रयत्न किया और इसके लिए उन्होंने भगवान कामदेव की मदद ली। कामदेव अपने बाण से शिव पर फूल फेंकते हैं जिससे उनके मन में माता पार्वती के लिए प्रेम की भावना विकसित हो।

इससे शिवजी की तपस्या भंग हो जाती हैं और वे क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं। इससे कामदेव भस्म हो जाते हैं। तपस्या भंग होने के बाद वे माता पार्वती की तरफ खुद को आकर्षित पाते हैं। इसके बाद शिवजी का विवाह माता पार्वती से हो जाता है। इस तरह भगवान कार्तिकेय का जन्म होता है। फिर भगवान कार्तिकेय असुरों के राजा तारकासुर का वध कर देवताओं को उनका निवास स्थान वापस प्रदान करते हैं।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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