शिव-पार्वती का सम्मिलित रूप हैं अर्धनारीश्वर

shiv parvati 2पुरातन काल में तत्ववेत्ताओं ने शिव और पार्वती के एक सम्मिलित रूप की कल्पना की, जिसमें आधा शिव और आधा पार्वती, दोनों भाग मिलकर एक पूर्ण व्यक्ति बनता है, जिसे अर्धनारीश्वर कहा गया। स्त्री-पुरुष का भेद समझने के लिए अर्धनारीश्वर रूपी भगवान शिव की महिमा को समझना होगा। स्त्री पुरुष की पूरक है और पुरुष स्त्री का पूरक है। अर्थात बिना पुरुष के स्त्री अधूरी है और बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है। भगवान अर्धनारीश्वर शिव के शरीर का दाहिना भाग नील वर्ण का और बायां भाग प्रवाल अर्थात मूंगे की कान्ति के समान लाल वर्ण का है। उनके तीन नेत्र सुशोभित हैं। वे वाम भाग के हाथों में पाश और लाल कमल धारण किये हैं। उनकी दाहिनी ओर के दो हाथों में त्रिशूल और कपाल स्थित है। एक ही शरीर में बायीं ओर भगवती पार्वती और दायीं ओर भगवान शंकर का स्वरूप है। उनके अंगों में अलग-अलग आभूषण सुशोभित हैं, मस्तक के ऊपर बालचंद्र और मुकुट है।
पुराणों के अनुसार, जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी द्वारा रची हुई सृष्टि विस्तार को नहीं प्राप्त हुई, तब ब्रह्मा जी काफी दु:खी हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई- ब्रह्मन, अब मैथुनी सृष्टि रचो। उस आकाशवाणी को सुनकर ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि करने का विचार किया, परन्तु उनकी असमर्थता यह थी कि उस समय तक भगवान महेश्वर द्वारा नारी कुल प्रकट ही नहीं हुआ था। इसलिए ब्रह्मा जी विचार करने के बाद भी मैथुनी सृष्टि नहीं कर सके। ब्रह्मा जी ने सोचा कि भगवान शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती और उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रमुख साधन उनकी तपस्या ही है। ऐसा सोचकर वे भगवान शिव की तपस्या में जुट गये। ब्रह्मा जी शिवा सहित परमेश्वर शंकर का प्रेम सहित ध्यान करते हुए घोर तप करने लगे। ब्रह्मा जी के उस तीव्र तप से शिवजी प्रसन्न हो गये। फिर कृष्टहारी शम्भू अर्धनारीश्वर के रूप में ब्रह्मा जी के समक्ष प्रकट हुए। भगवान शिव को पराशक्ति शिवा के साथ एक ही शरीर में प्रकट हुए देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रणाम किया। उसके बाद महेश्वर ने प्रसन्न होकर उनसे कहा कि वत्स ब्रह्मा, मुझे तुम्हारा संपूर्ण मनोरथ पूर्णतया ज्ञात है। इस समय तुमने जो प्रजाओं की वृद्धि के लिए कठोर तप किया है, उससे मैं परम प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें तुम्हारा अभीष्ट वर अवश्य प्रदान करूंगा। ऐसा कहकर शिवजी ने अपने शरीर से शिवा देवी को पृथक कर दिया। फिर ब्रह्मा जी भगवान शिव से पृथक हुई पराशक्ति को प्रणाम करके उनसे प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा जी ने कहा- शिवे, सृष्टि प्रारम्भ में आपके पति देवाधिदेव परमात्मा शम्भु ने मेरी सृष्टि की और उन्होंने मुझे सृष्टि रचने का आदेश दिया था। शिवे, तब मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओं की मानसिक सृष्टि की, परन्तु बार-बार रचना करने पर भी उनकी वृद्धि नहीं हो रही है। अत: अब मैं स्त्री पुरुष के समागम के द्वारा सृष्टि का निर्माण करके प्रजाओं की वृद्धि करना चाहता हूं, किंतु अभी तक आपसे अक्षय नारी कुल का प्राकट्य नहीं हुआ है। नारी कुल की सृष्टि करना मेरी शक्ति से बाहर है। सारी सृष्टियों का उद्गम स्थान आपके सिवाय कोई नहीं है। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। आप मुझे नारी कुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें। इसी में जगत का कल्याण निहित है। हे वरदेश्वरी, मैं आपके चरणों में बार-बार प्रणाम करके आपसे एक और प्रार्थना करता हूं। आप समस्त जगत के कल्याण के लिए तथा वृद्धि के लिए मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री होकर अवतार ग्रहण करें। ब्रह्मा जी के द्वारा इस प्रकार प्रार्थना करने पर शिवा ने तथास्तु, ऐसा ही होगा कह कर उन्हें नारी कुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान की।
उसके बाद माता ने अपनी भौहों के मध्य भाग से अपने ही समान प्रभावाली एक शक्ति की रचना की। उस शक्ति को देखकर कृपासागर भगवान शंकर जगदम्बा से बोले- देवी, ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या से तुम्हारी आराधना की है। अत: तुम उन पर प्रसन्न हो जाओ और उनका संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करो। भगवान शंकर के आदेश को शिवा देवी ने सिर झुकाकर स्वीकार किया और ब्रह्मा जी के कथनानुसार दक्ष की पुत्री होने का वचन दिया। इस प्रकार शिवा देवी ब्रह्मा जी को सृष्टि रचना की अनुपम शक्ति प्रदान करके शम्भू के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं। इसके बाद भगवान शंकर भी अंतध्र्यान हो गये। तभी से इस लोक में स्त्री भाग की कल्पना हुई और सृष्टि प्रारम्भ हुई।

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