बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने वाला राजस्थान लोक सेवा आयोग पहले ही सदस्यों की कमी से जूझ रहा था, लेकिन 31 मार्च को आयोग पर कोढ़ में खाज वाली कहावत चरितार्थ हो गई। आयोग के कर्मचारियों ने पूर्व घोषणा के अनुसार 31 मार्च से पेनडाउन हड़ताल शुरू कर दी। इस हड़ताल का असर प्रदेशभर से काउंसलिंग के लिए आए युवाओं पर पड़ा। चूंकि कर्मचारियों ने अपने हाथ में पेन उठाया ही नहीं, इसलिए महिला और पुरुष अभ्यर्थियों की काउंसलिंग नहीं हो सकी। द्वितीय चरण में हो रहे आरएएस के इंटरव्यू का काम भी प्रभावित हुआ। कर्मचारियों का कहना है कि आयोग में पहले ही स्टाफ की कमी है और अब सरकार ने कार्मिक शाखा के 18 पद समाप्त कर दिए। समझ में नहीं आता कि राज्य की भाजपा सरकार इस आयोग की कितनी दुर्गती करना चाहती है। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार को डेढ़ वर्ष होने को आया, लेकिन आयोग में आज तक भी वो तीन सदस्य ही काम कर रहे हैं, जिनकी नियुक्ति गत कांग्रेस के शासन में हुई थी। इनमें से एक सदस्य को पिछले 6 माह से कार्यवाहक अध्यक्ष बना रखा है। आयोग में अध्यक्ष सहित सात सदस्यों का प्रावधान है, लेकिन भाजपा सरकार तीन सदस्यों से ही काम चला रही है। मजाक तो तब होता है, जब सरकार बार-बार दावा करती है कि बड़े पैमाने पर भर्ती की जाएगी। एक तरफ सरकार ने भर्ती करने वाले आयोग को पंगु बना रखा है, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री और मंत्री भर्ती की घोषणा कर प्रदेश के युवाओं की बेरोजगारी का मजाक उड़ा रहे हैं। यदि मुख्यमंत्री साहिबा को थोड़ी सी भी फुर्सत हो तो वो देखें कि इस आयोग की कितनी दुर्गती हो गई है। सरकार ने आयोग का विखंडन कर अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग का गठन कर दिया, लेकिन आठ माह गुजर जाने के बाद भी अधीनस्थ आयोग ने काम काज शुरू नहीं किया है। कांग्रेस के शासन में आयोग की दुर्गती की जो शुरुआत हुई थी, उसे अब भाजपा सरकार ने श्मशान स्थल तक पहुंचा दिया है। शर्मनाक बात तो यह है कि इतनी दुर्गती के बाद भी अच्छे दिनों का दावा किया जाता है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511