अपनों ने ही घेरा लाला बन्ना को

s s shekhawatजिसकी आशंका थी, वही हुआ। अजमेर नगर निगम में मेयर पद के प्रबल दावेदार पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना भाजपा की स्थानीय गुटबाजी के शिकार होते दिखाई दे रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि पहले ही आशंका थी कि भाजपा में मेयर पद को लेकर जबरदस्त खींचतान होगी। कोशिश ये रहेगी कि मेयर पद के शीर्ष दावेदारों को उनके ही वार्ड में घेरा जाए। हुआ भी वही। वार्ड 43 से मेयर पद के दावेदार सुरेंद्र सिंह शेखावत बागियों में उलझ कर रह गए। रणजीत सिंह चौहान उनके सामने अंगद के पांव की तरह आ डटे हैं। हालांकि शेखावत ने भाजपा के परंपरागत माने जाने वाले माली समाज के निर्दलीय उम्मीदवारों को बैठाने की भरपूर कोशिश की, मगर उनको सफलता नहीं मिली। मिलती भी कैसे, सोची समझी राजनीति के तहत उन्हें खड़ा किया गया था। नाम वापसी के अंतिम दिन दो माली उम्मीदवारों बृजमोहन चौहान व मुकेश चौहान ने नाम वापस तो लिए, मगर रणजीत सिंह के समर्थन में। जाहिर सी बात है कि ऐसा माली समाज के मतों को एकजुट कर शेखावत को घेरने के लिए किया गया। यूं यह वार्ड भाजपा के लिए बेहद मुफीद है, उस लिहाज से लाला बन्ना ने इसे ठीक ही चुना, मगर अब जो दिक्कत पेश आई है, उससे निपटना मुश्किल हो रहा है। जो पेच आ कर फंसा है, उसे देखते हुए यदि ये कहा जाए कि कहीं न कहीं रणनीतिक भूल हुई है। कुछ कहते हैं कि जब लाला बन्ना को पता था कि वे दूसरे गुट के निशाने पर हैं तो उन्हें चुनाव लडऩा ही नहीं चाहिए था। बताया जाता है कि निर्दलीय रणजीत सिंह को रिटायर करवाने के लिए उच्च स्तरीय प्रयास हो रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें। कोई कह रहा है, रिटायर होने के लिए बीस लाख रुपए की ऑफर है तो कोई हांक रहा है कि मुंह मांगी कीमत लगाई गई है। सच क्या है, कुछ पता नहीं, मगर इतना जरूर है कि भाजपा मानसिकता के माली वोट कट गए तो लाला बन्ना को परेशानी होगी। हालांकि वे काफी लोकप्रिय हैं और उनकी भी अपनी जबरदस्त फेन फॉलोइंग है, सो पूरी ताकत के साथ लड़ रहे हैं, आसानी से हाथ खड़े करने वाले नहीं, मगर कहते हैं न कि जो जितना बड़ा खिलाड़ी, उसे उतनी ही बड़ी चुनौती का सामना करना होता है। उनके साथ अजमेर दक्षिण की विधायक व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की प्रतिष्ठा भी कसौटी पर है। कहने की जरूरत नहीं कि लाला बन्ना उन्हीं के खेमे से हैं। देखने वाली बात ये है कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कितना कर पाती हैं।
मोटे तौर माना जा रहा है कि लाला बन्ना व कांग्रेस प्रत्याशी व नगर परिषद के प्रतिपक्ष नेता रहे अमोलक छाबड़ा के बीच कांटे की टक्कर है। मगर कयास लगाने वाले तो यहां तक सोच रहे हैं कि यदि वाकई माली वोटों का पूरा धु्रवीकरण हो गया तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबले में रणजीत सिंह ही न बाजी मार जाएं।
ऐसा नहीं है कि भाजपा में ऐसा पहली बार हो रहा है। इसी प्रकार नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार को एक बार पार्टी के ही दूसरे धड़े ने केवल इसी कारण निपटाया था, क्योंकि वे दमदार तरीके से उभर कर आ रहे थे और सभापति पद के प्रबल दावेदार थे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

1 thought on “अपनों ने ही घेरा लाला बन्ना को”

  1. Virodhiyo Ki chal sirf jeet ka margin cum karsakti hai aur esse jyada kuch nahi kar sakte,negative politics karke aaj tak koi bahut dur nahi japaya hai rajneeti me

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