स्नातक होनी चाहिए पार्षद योग्यता

राजेंद्र हाड़ा
राजेंद्र हाड़ा
नेतागिरी करने वाले कई छुटभैये निगम चुनाव में खडे़ होने से इसलिए महरूम हो गए क्योंकि वे दसवीं कक्षा पास नहीं है। कई ने अपनी इस कमजोरी को छिपाने के लिए मूंछों पर ताव देते हुए कहा कि अपन ने तो सोच लिया जी कि इस दफे इलेक्शन में खडे़ नी होना……अब वो जमाना ई नी रहा। कांग्रेस के विजय नागौरा और भाजपा की भारती श्रीवास्तव की सक्रियता आपने देखी है परंतु दसवीं पास के दस्तावेज ही संदेह में आ गए। अपना मानना है कि पार्षद बनने के लिए न्यूनतम योग्यता दसवीं नहीं बल्कि स्नातक होनी चाहिए। दसवीं तो सरपंच की होनी चाहिए। विधायक और सांसद के लिए भी न्यूनतम एलएल.बी. होनी चाहिए। विधानसभा और संसद का मुख्य काम देश-प्रदेश के लिए कानून बनाना होता है। विधायक-सांसद यह काम कानून विभाग और अफसरों पर छोड़ देते हैं। इसलिए रोजाना कानून बनते हैं और उसी तेजी उन्हंे खत्म करने की बात करते हैं। भारतीय दंड संहिता यानि इंडियन पैनल कोड या ताजीराते हिन्द बनाने के लिए अंग्रेजों ने सौ साल अध्ययन किया था। उसे लागू हुए आज सवा सौ साल से ज्यादा हो गए। हाल यह है कि कोई भी आज अपने को भारतीय दंड संहिता का विद्वान कहने की हिम्मत नहीं रखता। तो अपना मानना है कि पालिका/परिषद/निगम के लिए कम से कम स्नातक होना जरूरी है। देखा जाए तो पार्षद का असली काम ही अपने शहर-कस्बे के विकास के लिए नियम-कायदे बनाना और देश-प्रदेश के कानूनों की पालना करवाना होता है। सफाई, बिजली, पानी तो सबसे आखिर के काम होते हैं। ठेकेदार तो वह कतई नहीं बन सकते। पर अब उनका मुख्य काम ही अतिक्रमण और अवैध निर्माण करवाना हो गया है। यह पहला शहर होगा जहां अतिक्रमण के भवनों को बचाने के लिए पार्षद ही निगम के खिलाफ और अतिक्रमणकारियों के समर्थन मंे आंदोलन कर रहे थे। पूरे पांच साल नगर निगम में उप-समितियां तक नहीं बनी। उन्हें जरूरत भी महसूस नहीं हुई। पढ़ने की आदत रही नहीं, पढ़ना चाहते नहीं क्योंकि पढ़ाई की ही नहीं। अपन यह नहीं कहते कि आपको अंग्रेजी में ही बोलना और लिखना चाहिए परंतु कम से कम अंग्रेजी में पढ़ना-समझना तो आना ही चाहिए। उत्तर भारत के पहले कॉलेज जीसीए का यह शहर कभी मिशन स्कूलों का गढ़ था। सोफिया कॉलेज में दिल्ली से लड़कियां पढ़ने आती थी। क्या कोई यकीन करेगा कि कलेक्टर अदिति मेहता के समय मे इसे देश का पहला साक्षर होने का गौरव मिल चुका है और अब बीस साल बाद इसी शहर के पहली पंक्ति के 55 नागरिक चार दिन तक साधारण सभा इसलिए टालते रहे कि सफाई ठेकेदार से हुआ एमओयू यानि मेमोरेण्डम ऑफ अंडरस्टेंडिंग अंग्रेजी में है। उसे हिन्दी मे करवाया जाए। वह इसे समझना नहीं चाहते थे बल्कि उन गंुजाइशों को जानना चाह रहे थे जिनसे उनकी आमदनी चलती रहे। गरीब नवाज का भी करम देखिए निगम में ऐसे सीईओ गुइटे को ला बैठाया जिन्हें हिन्दी नहीं आती और जिनसे वास्ता पड़ा वे अंग्रेजी नहीं जानते।
-राजेन्द्र हाड़ा

error: Content is protected !!