दीवान साहब के बयान से फिल्म जगत तो सहमा ही

बीते दिनों महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान और ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जेनुअल आबेदीन व खुद्दाम हजरात के बीच हुए विवाद का कोई निष्कर्ष निकला हो या नहीं, जो कि निकलना भी नहीं है, मगर फिल्म जगत तो सहम ही गया। और साथ ही अधिकतर फिल्मी हस्तियों को जियारत कराने वाले सैयद कुतुबुद्दीन सकी के नजराने पर भी मार पडऩे का अंदेशा हो गया। इसकी वजह ये है कि अजमेर में खादिमों के ताकतवर होने के कारण फिल्मी हस्तियों को भले ही कोई खतरा नहीं है, मगर जिस तरह से इस विवाद ने तूल पकड़ा और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरीके से उछाला, उससे फिल्म जगत पर तो भारी असर पड़ा ही होगा।

अमिताभ बच्चान को जियारत कराते सैयद कुतुबुदीन सकी

असल में हुआ ये था कि दरगाह दीवान ने यह बयान जारी कर कहा कि फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगना शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और नाकाबिले बर्दाश्त है। उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी को चिंताजनक बताया। अजमेर में खादिम भले ही उनके धुर विरोधी हों अथवा आम मुसलमानों पर दीवान साहब की कोई खास पकड़ नहीं हो, मगर देश-दुनिया में तो उन्हें ख्वाजा साहब के वंशज के रूप में काफी गंभीरता से लिया जाता है। यही वजह रही कि उनके बयान को राष्ट्रीय मीडिया ने खासी तवज्जो दी। अनेक चैनलों पर तो ब्रेकिंग न्यूज के रूप में यह सवालिया टैग बारबार दिखाया जाता रहा कि दरगाह शरीफ में फिल्मी हस्तियों की जियारत पर रोक? ऐसा अमूमन होता है कि दिल्ली में बैठे पत्रकार धरातल की सच्चाई तो जानते नहीं और दूसरा जैसा ये कि उनकी किसी भी खबर को उछाल कर मारने की आदत है, सो इस खबर को भी उन्होंने इतना तूल दिया कि पूरा फिल्म जगत सहम ही गया होगा।
हालांकि अजमेर में ऐसा कुछ हुआ नहीं है और न ही होने की संभावना प्रतीत होती है, मगर फिल्मी हस्तियों में तो संशय उत्पन्न हो ही गया। जाहिर सी बात है कि ऐसे में वे अजमेर आने से पहले दस बार सोचेंगी कि कहीं वहां उन्हें जियारत करने से रोक तो नहीं दिया जाएगा अथवा उनके साथ बदतमीजी तो नहीं होगी। ऐसे में यदि अच्छा खासा नजराना देने वाली फिल्मी हस्तियों की आवक बंद होगी अथवा कम होगी तो स्वाभाविक रूप से यह खुद्दाम हजरात को नागवार गुजरेगा। खासकर फिल्म जगत के अघोषित रजिस्टर्ड खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चश्ती पर तो बड़ा भारी असर पड़ेगा।
हालांकि जिस मुद्दे को दीवान साहब ने उठाया था, उस पर तो खास चर्चा हुई नहीं, बल्कि उनके ख्वाजा साहब के वश्ंाज होने न होने पर आ कर अटक गई, मगर मुंबई में फिल्म जगत में तो यही संदेश गया ना कि अजमेर में उनको लेकर बड़ा भारी विवाद है। उन्हें क्या पता कि यहां दीवान साहब कितने ताकतवर हैं या उनके समर्थक उनके साथ क्या बर्ताव करेंगे?
यूं मूल मुद्दे पर नजर डाली जाए तो जहां दीवान साहब का बयान तार्किक रूप से ठीक प्रतीत होता है तो खुद्दाम हजरात की दलील भी परंपरागत रूप से सही प्रतीत होती है, मगर झगड़ा इस बात पर आ कर ठहर गया कि इस बयान के जरिए दीवान साहब कहीं अपने आप को दरगाह शरीफ का हैड न प्रचारित करवा लें। सो खादिमों ने तुरंत ऐतराज किया। खादिमों का पूरा जोर इस बात पर रहा कि दीवान को जियारत के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे कोई दरगाह के मुखिया नहीं है, महज दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं। दूसरा ये कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं।
ऐसा करके वे दीवान साहब के बयान की धार को भोंटी तो कर पाए हैं, मगर यदि फिल्म जगत तक सारी बात ठीक से न पहुंच पाई तो वह तो सहमा ही रहेगा। साथ ही जनाब कुतुबुद्दीन साहब का नजराना भी तो मारा जाएगा। कदाचित इसी वजह से खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चिश्ती ने कहा कि ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है। खादिमों की रजिस्टर्ड संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने भी कहा कि दीवान का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है।

-तेजवानी गिरधर

 

6 thoughts on “दीवान साहब के बयान से फिल्म जगत तो सहमा ही”

  1. जनाब तेवानी गिरधर, आपको शायद पता नहीं की खादिम की दरगाह में क्या हैसियत है आप किसी भी अधिवक्ता से लेकर ये पढ़िए (Their case was that the Khadims were and are no more, than servants of the holy tomb and their duties are similar to those of chowkidars. All India Reporter 1961 Supreme Court Page 1402), आज खादिमों ने दरगाह में सिर्फ गुंडा गर्दी के दम पर कब्ज़ा कर रखा है । ये बोलते है की ख़्वाजा तो सबके है फिर बेचारे गरीब लोग लाइन में लग कर जियारत क्यों कर रहे हैं उनके साथ बद्सलूखी क्यों की जाती है, जबकि फिल्म स्टार और नेता लोगो से पैसा मिलता है तो उनको बिना लाइन में लगे जियारत करवा दि जाती है । एक काम कीजिये आप दरगाह जाइये आम आदमी की तरह और इज्ज़त के साथ बिना खादिम के ख़्वाजा साहिब के मज़ार के दर्शन करके दिखा दीजिए मुझे , ये खादिम दरगाह कमेटी के मुलाजिम है दरगाह कमिटी को इनको बर्खास्त करने का अधिकार है, उठाइए दरगाह एक्ट उठाइये खादिमों और दरगाह कमिटी के बिच में चले सुप्रीम कौर्ट के फेसले…. बताइए दुनिया को की खादिम कोर्ट में हारने के बाद भी भारत के उच्चतम न्यायलय की केसे तौहीन कर रहे हैं….. और ख़्वाजा साहिब के वंशजों पर ऊँगली उठने से पहले ये खुद की तरफ देख ले तो बेहतर होगा की ये पृथ्वीराज चौहान और उसकी रखेल मीना के अवेध वंशज हैं “The Shrine and Cult of Muin Al-Din Chishti of Ajmer page ऑक्सफोर्ड यूनिवेर्सिटी प्रेस 147”

    दरगाह शरीफ के आज के हालात : दरगाह ख्वाजा साहब के प्रबंध के लिए भारत सरकार द्वारा बनाई गई दरगाह कमेटी इन खादिमों के हाथों बिक चुकी है. यूँ तो दरगाह शरीफ का पूरा प्रबंध दरगाह कमेटी के जिम्मे है पर ये सो रही है. खादिमों ने दरगाह ख्वाजा साहब पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है और करते जा रहे हैं. हालात बद से बदजर होते जा रहे हैं. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि जहां ख्वाजा साहब के गुम्बद में कोई भी आम आदमी आसानी से जाया करता था, वो अब गुम्बद के अंदर जा भी नहीं सकता. सहूलियत के नाम पर गुम्बद के एक गेट पर तो जायरीनों की लाइन लगवाना शुरू कर दी है और वहाँ जायरीनों को घण्टों लाइन में लगना पड़ रहा है. वहीँ दूसरी और इन खादिम चौकीदारों, नौकरों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि इन होने गुम्बद के दो गेटों पर ऐसा कब्ज़ा कर लिया कि वहाँ से अब आम आदमी गुम्बद के अंदर ही नहीं जा सकता.

    अगर आप इन खादिम चौकीदारों को पैसे देते हो तो ये आपकों इन दो गेटों से से गुम्बद के अंदर ले जायेंगे और आप गरीब हो पैसे नहीं दे सकते तो दो घण्टों लाइन में लगे रहो, और पैसे देने वाले अवैध तरीके से गुम्बद में जाकर भी आ जायेंगे. दादा गिरी तो यहाँ तक हो गई कि इन खादिम (चौकीदारों, नौकरों) खुद दरगाह के नौकर हैं और दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं, परन्तु आज इन नौकरों ने अपने लिए नौकर रख लिए जिनको दरगाह के गुम्बद के गेटों के बाहर खड़ा कर दिया और इनको जिम्मा सोंपा गया है. एक आम आदमी को ख्वाजा साहब के गुम्बद में जाने से रोकने का, और जो पैसे देके जाता है. उसको आसानी से जाने देने का, यह सब दरगाह कमेटी के आँखों के सामने हो रहा है पर वो सो रही है, या फिर वो इन खादिमों के हाथों बिक गई है.

    जो लोग पैसे देके ज्यारत करते है तो ठीक है, परन्तु जो बिना पैसे के जियारत करना चाहते हैं. उनके साथ ये खादिम चौकीदार बदसलूकी करते हैं. उनका गिरेबान पकड़ कर और धक्का दे करे गली गलोच करके गुम्बद और दरगाह से बहार निल्काल देते हैं. दरगाह के प्रबंध के लिए भारत सरकार द्वारा दरगाह ख्वाजा साहिब अधिनियम 1955 भी बना रखा है, पर ये अधिनियम रद्दी की टोकरी में पड़ा हुआ है. दरगाह कमेटी की जिम्मेदारी है कि वह दरगाह ख्वाजा साहिब का प्रबंध इस अधिनियम के अनुसार करे परन्तु बात यह है कि दरगाह कमेटी भारत सरकार का भाग होते हुए भी इन खादिमों (नौकरों चौकीदारों) की गुलाम बन कर इन के तलवे चाट रही है और आम जायरीन परेशान हो रहा है. ख्वाजा तो सबके है फिर उनकी जियारत के लिए अमीर और गरीब का ये अलग-अलग रास्ता बनाया जा रहा है और भारत सरकार आँख मूंदे सब देख कर भी अनदेखा कर रही है.

    • मान्यवर, ये ख्याल रखियेगा कि कदाचित दरगाह मामलात में मेरी जानकारी आपसे अधिक हो, दूसरा ये कि आपको इसलिए निष्पक्ष नहीं माना जा सकता क्योंकि आप खादिमों के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं, तीसरी बात ये कि यदि आप इतने ही सच्चे हैं तो अपनी पहचान क्यों छुपाए हुए हैं, आपके नाम से तो लगता है कि आप सत्यवान शिरोमणि हैं, मगर छुप कर वार करते हैं, सच्चा आदमी खुले मैदान में आता है, चौथी बात आपके तर्क में दम भले ही हो मगर भाषा का स्तर घटिया होने के कारण उसका असर कम होता प्रतीत होता है, तभी तो कहते हैं कि बाल चाहे बेसलीका ही सही कहने का सलीका चाहिए, उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगा होगा

  2. यदि आपको मेरी बातों पर यकीन न होतो आप मुझे बोलिए में आपको भेजता हूँ कोर्ट के फैसले

  3. मान्यवर, मेरी बातों का आपको बुरा लगा तो में आपसे क्षमा चाहता हूँ । जी हाँ मेने खादिमों के खिलाफ मुहीम चला राखी है…. में छुप कर किसी पर वार नहीं कर रहा, मेरा नाम यहाँ नहीं दर्शाने के पीछे कोई कारण है क्यों कि में इन खादिम साहेबान के आस पास ही में ही रहता हूँ , मेरा मकसद है दुनिया को सच बताना, मेरा नाम बताने से सच झूठ नहीं बन जायेगा और झूठ सच नहीं बन जायेगा । आप एक सच्चे पत्रकार है तो तो किसी के भी गलत बयान देते ही आपको अपने ज्ञान से उसको अवगत करनक चाहिए । मामले कि सत्यता कि जांच किये बिना किसी के द्वारा किसी के खिलाफ दिए गए बयान को प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए……. मुझे बहुत अफ़सोस है कि खादिम जो कुछ भी बयान बाजी करते है उस बयान कि सत्यता कि जाचं किये बिना ही उस बयान को छाप दिया जाता है…… तमाम चैनल और अख़बारों में ये देख मुझे काफी दुःख हुवा……. और एक बार और क्षमा चाहता हूँ । दरगाह अजमेर शरीफ से जुड़े तमाम तथ्यों कि जानकारी आपको है तो आप जनता को गुमराह होने से बचाइए मेरी आपसे विनती है

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