संघ की विचारधारा से जुडे हुए हैं रजत शर्मा

rajat-sharma-aap-ki-adalat-तनवीर जाफरी- पिछले दिनों देश में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान देश ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक पक्षपातपूर्ण चेहरा देखा। मीडिया के इस पक्षपातपूर्ण रवैये का कारण यदि कहीं उसकी ‘व्यवसायिक आशाएं’ थीं तो कहीं ‘सांस्कारिक पूर्वाग्रह’। और ऐसी पक्षपातपूर्ण खबरें प्रसारित करने का व ऐसे विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित करने वाले एक विवादित टीवी चैनल का नाम था इंडिया टी वी। इस चैनल के मुख्य सूत्रधार रजत शर्मा देश की टीवी पत्रकारिता के एक पुराने व किसी समय के संभ्रांत व विश्वस्त टी वी एंकर व कार्यक्रम संचालकों में गिने जाते थे। परंतु पिछले चुनाव में इन्हीं रजत शर्मा ने स्वयं को अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध तथा नरेंद्र मोदी के पक्ष में कुछ इस तरह खुलकर पेश किया कि लोगों को इनके बाल संस्कार की खोज करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बताया जा रहा है कि रजत शर्मा बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्कारों में पले,पढ़े तथा बड़े हुए हैं। लिहाज़ा ‘घुटने का पेट की ओर झुकना’ अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। चुनाव के दौरान रजत शर्मा ने जिस प्रकार नरेंद्र मोदी को अपने एक फिक्स कार्यक्रम आपकी अदालत में साक्षात्कार के लिए पेश किया तथा उनके सामने जो सुगम प्रश्रावली प्रस्तुत की तथा जिस अंदाज़ से वे नरेंद्र मोदी से पेश आए उसे देखकर पूरा देश न केवल रजत शर्मा की पक्षपातपूर्ण शैली को समझ चुका था बल्कि देश की मीडिया की एक अति सम्मानित शख्सियत व उस समय इंडिया टीवी के संपादकीय सलाहकार कमर वहीद नकवी ने मोदी के आपकी अदालत के कार्यक्रम के फौरन बाद त्यागपत्र भी दे दिया था।     बहरहाल, वही रजत शर्मा और उनका इंडिया टीवी चैनल इन दिनों एक बार फिर अपनी नकारात्मक कारगुज़ारी के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार रजत शर्मा,उनकी पत्नी रीतू धवन तथा चैनल के प्रमुख अधिकारी एम एन प्रसाद पर इन्हीं के चैनल की एक एंकर तनु शर्मा ने यौन प्रताडऩा तथा मानसिक उत्पीडऩ जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। यही नहीं बल्कि तनु शर्मा ने इस अन्यायपूर्ण व अपमानजनक हालात से दु:खी होकर गत् 22 जून को अपने ही टीवी चैनल के दफ्तर के बाहर ज़हर खाकर आत्महत्या करने तक का प्रयास किया। परंतु तनु शर्मा के कुछ सहयोगियों व पुलिस ने उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाकर उसके प्राणों की रक्षा कर ली। इस घटना के बाद तनु शर्मा की ओर से पुलिस में एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई। तनु शर्मा की ओर से दर्ज विस्तृत प्राथमिकी में जहां तमाम बातें विस्तार से लिखवाई गई हैं वहीं मुख्य रूप से उसने यह बात भी कही कि- ‘इंडिया टीवी की एक वरिष्ठ सहयोगी ने उन्हें राजनेताओं और कारपोरेट जगत के बड़े लोगों को मिलने और गलत काम करने के लिए बार-बार कहा। इन अश्लील प्रस्तावों के लिए मना करने पर मुझे परेशान किया जाने लगा। जब इस बात की शिकायत एक सीनियर से की तो उसने भी मेरी मदद नहीं की बल्कि कहा-यह प्रस्ताव सही है।’ ज़हर खाकर आत्महत्या करने के प्रयास से पहले तनु शर्मा ने अपना एक बेहद भावुक फेसबुक अपडेट भी किया। इस फेसबुक स्टेटस में भी तनु शर्मा ने चंद शब्दों में ही अपने दिल की बात कहने की कोशिश की है। वहीं दूसरी ओर इंडिया टीवी की ओर से भी तनू शर्मा के विरुद्ध एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई है जिसमें तनु शर्मा पर अपने काम में कोताही बरतने का आरोप लगाया गया है।     उपरोक्त पूरे घटनाक्रम में आश्चर्यजनक बात यह है कि जो टी वी चैनल आसाराम बापू तथा तरूण तेजपाल से जुड़े ऐसे अपराधों की खबरों को मिर्च-मसाला लगाकर हर समय परोसते रहते थे और उन्हें अपनी टीआरपी इन्हीं खबरों में बढ़ती दिखाई दे रही थी आज आखिर उन्हीं टी वी चैनल के मालिकों व संपादकों को तनु शर्मा प्रकरण के विषय में सांप क्यों सूंघ गया है? आखिर देश के निजी टीवी चैनल्स पत्रकारिता के इस कथित भीष्म पितामह, रजत शर्मा की हकीकत को जनता के सामने बेनकाब करने से क्यों कतरा रहे हैं? देश के जो निजी टी वी चैनल आम लोगों को देश की मामूली से मामूली खबरों से बाखबर करवाते रहते हैं आज वहीं चैनल अपने ही संस्थान से जुड़ी इतनी महत्वपूर्ण खबर से बेखबर क्यों हैं? यदि हम इसकी गहन पड़ताल करें तो हमें इस खामोशी के पीछे छुपा एक ऐसा भयावह सच दिखाई देगा जिसे जानने के बाद इस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को चौथे स्तंभ के बजाए देश का ‘पहला कलंक’ कहने में कोई आपत्ति नहीं होगी।     तनु शर्मा का प्रकरण एक ऐसी इज़्ज़तदार लडक़ी से जुड़ा है जो सामने आ गया। उसने राजनेताओं व कारपोरेट की हवस का शिकार बनने के बजाए,औरत की दलाली खाने वाले अपने मालिकों का गलत निर्देश मानने के बजाए अपनी जान देने के रास्ते को चुनना ज़्यादा मुनासिब समझा। अन्यथा दरअसल टी वी जगत की सच्चाई बेहद भयावह है। टीवी चैनल मालिक यूं ही रातों-रात अरबपति नहीं बन जाते। बड़े से बड़े औद्योगिक घरानों से लेकर व्यवस्था तक की दुखती नब्ज़ को समझने वाले राजनेता यूं ही अपने टीवी चैनल नहीं शुरु कर देते? और इन टीवी चैनल्स में शक्ल-सूरत,रंग-रूप व फिगर आदि देखकर महिला टीवी एंकर्स की भर्ती यूं ही नहीं की जाती। और टीवी के चैनल मालिकों का राजनेताओं व कारपोरेट जगत के लोगों से मुधर संबंध भी यूं ही नहीं बनता। इस प्रकरण में भी यदि तनु शर्मा ज़हर न खाती और पुलिस में मामले की एफआईआर दर्ज न कराती तो इस मामले की भनक भी किसी को नहीं लगनी थी।     अपने मीडिया हाऊस की आर्थिक संपन्नता व सफलता के लिए ‘सबकुछ’ कर गुज़रने की इस प्रवृति से देश का तथाकथित स्वयंभू चौथा स्तंभ बुरी तरह बदनाम हो रहा है। देश के वरिष्ठ पत्रकार व मीडिया जगत में अपनी अच्छी साख रखने वाले लोग मीडिया में घुसपैठ कर चुके ऐसे बदचलन,पक्षपात करने वाले तथा मात्र आर्थिक लाभ के दृष्टिगत निर्णय लेने वाले व महिला को अपने चैनल की सफलता व संपन्नता का हथियार बनाकर चलने वाले लोगों के रवैये से बेहद दु:खी और शर्मिंदा हैं। और इस प्रकार की घटना होने के बाद देश के सभी टीवी चैनल्स का एक स्वर में इस $खबर को प्रसारित न करने का निर्णय लेना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की साख को और भी अधिक संदिग्ध बना रहा है। सोशल मीडिया पर हालांकि यह खबर पूरे ज़ोर-शोर से चल रही है। कई पत्रकार संगठन तनु शर्मा के मामले पर बैठकें कर रहे हैं तथा इस मामले की और गहन त$फ्तीश किए जाने की मांग कर रहे हैं। मांग की जा रही है कि इंडिया टीवी द्वारा तनु शर्मा पर हाथ डालने से पहले इस प्रकार की जो अन्य ‘कारगुज़ारियां’ अंजाम दी गई हों उनकी भी जांच होनी चाहिए। यह भी पता लगाना चाहिए कि रजत शर्मा एंड कंपनी के संबंध ऐसे कौन-कौन से ‘संस्कारवान’ राजनेताओं व कारपोरेट जगत के लोगों से हैं जहां वह तनु शर्मा को भेजना चाहता था। या इससे पहले और किन्हीं अन्य महिलाओं को भेजा करता था? इस मामले की सीबीआई द्वारा भी जांच कराए जाने की मांग की जा रही है। कुछ पत्रकार संगठनों ने तनु शर्मा को सुरक्षा मुहैया कराए जाने की मांग भी की है। ऐसी मांग करने वालों की दलील है कि पिछले दिनों आसाराम यौन उत्पीडऩ मामले में हुई गिरफ्तारी के बाद उनके विरुद्ध गवाही देने वाले एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। इसलिए तनु शर्मा को सुरक्षा प्रदान किया जाना बेहद ज़रूरी है।     इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि तनु शर्मा का मामला मीडिया हाऊस के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान से जुड़ा होता तो लगभग सभी टीवी चैनल अपना गला फाड़-फाड़ कर तिल का ताड़ बनाने से नहीं बाज़ आते। परंतु बड़े आश्चर्य का विषय है कि यही टीवी चैनल्स तनु शर्मा प्रकरण पर एक स्वर से चुप्पी साधे हुए हैं। निश्चित रूप से इस पूरे घटनाक्रम की तथा इसके अतिरिक्त अन्य टी वी चैनल्स में संभावित रूप से चल रहे इस प्रकार के भ्रष्ट व अपराधपूर्ण कारनामों की जांच की जानी चाहिए। यदि तथाकथित सम्मानित व संभ्रांत पत्रकारों व टीवी चैनल्स की वास्तविकता कुछ इसी प्रकार की है तो यह न केवल देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व शर्मनाक है बल्कि यह टी वी दर्शकों तथा टीवी के मालिकों,संचालकों,संपादकों तथा प्रस्तोताओं के लिए भी बेहद अपमान व चिंता का विषय है। देश की जनता टीवी चैनल्स के पक्षपातपूर्ण प्रसारणों को समझने के बावजूद अब भी इनकी खबरों व कार्यक्रमों को विश्वास की नज़रों से देखती है। परंतु रजत शर्मा जैसे पत्रकार व इंडिया टीवी जैसे टीवी चैनल की भयावह हकीकत सामने आने के बाद यही टीवी दर्शक न सिर्फ अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करेंगे बल्कि मीडिया के दूसरे स्त्रोतों से भी इनका विश्वास हटने लगेगा। लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि जो मीडिया जनता को सबकी खबर से बाखबर कराने की क्षमता रखता है उसे अपनी खबर से भी बेखबर हरगिज़ नहीं रहना चाहिए।

4 thoughts on “संघ की विचारधारा से जुडे हुए हैं रजत शर्मा”

  1. जी मीडिया जैसे लोग एक बलात्कारी तेजपाल को बचने केलिए इतना नीचे गिर सकते हैं कभी सोचा नहीं था

  2. आशुतोष ने लगाये प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर सवालिया निशान पिछले 10 months से जिस तरह से आशाराम बापू के मसले पर स्टूडियो के अंदर तीन-तीन, चार-चार, पाँच-पाँच घंटे और तमाम जटा-जूटधारी बाबाओं, साइकोलॉजिस्टों, सेक्सोलॉजिस्टों को बुला-बुलाकर जिस तरह से चर्चा की जा रही है, क्या इस देश के अंदर सबसे बड़ी खबर यही है? क्या सेक्स को बेचने की कोशिश नहीं की जा रही है? क्या मीडिया, टीवी चैनल इसके लिए अभिशप्त नहीं हैं? क्या वे भयंकर गलती नहीं कर रहे हैं? हम मीडियावाले इसको कब तक उचित ठहराते रहेंगे? एक आधारहीन खबर कई दिनों तक क्यों छायी रही? टीवी चैनलों के बारे में तो कहा ही जाता है कि वे टीआरपी के लिए कुछ भी कर सकते हैं पर अखबारों ने ऐसा क्यों किया? उन पर तो टीआरपी का दबाव नहीं होता। टीआरपी ही टीवी का सबसे बड़ा रोग है। टीआरपी से ही तय होती है चैनल को मिलनेवाले विज्ञापन की कीमत। जितनी रेटिंग, उसी अनुपात में पैसा! कुछ चैनलों ने तो खबर से तौबा ही कर ली। जितना सनसनीखेज विडियो उतनी अधिक रेटिंग- ऐसी मान्यता बनी। जो खबर के अलावा भूत-प्रेत दिखाते थे, ऐसे चैनलों ने जब खबर भी दिखायी तो उसे मदारी का खेल बना दिया। खबर से ज्यादा खबर का ‘ट्रीटमेंट’ महत्त्वपूर्ण हो गया। पिछले दिनों टीवी जगत में फिर प्रतिस्पर्धा अचानक बढ़ी। कुछ नये चैनल आगे निकल गये, स्थापित पीछे रह गये। खबरों में फिर भाँग पड़ने लगी। आशाराम बापू की खबर में इसका नमूना फिर दिखा। इस खबर से धर्म जुड़ा था, बाबा के लाखों अनुयायी थे। रेटिंग के भूखे टीवी एडिटर इस खबर पर मानो टूट पड़े। कुछ चैनलों ने तो सारी सीमाएँ लाँघ दीं। कुछ समय बाद बापू की खबर से थकान होने लगी और बिल्ली के भाग्य से (डोंडियाखेड़ा की खबर का) ‘खजाना’ टूट पड़ा। कुछ टीवी चैनल लपके, बाकी ने अनुसरण किया। खबर टीवी पर चली तो अखबार कहाँ पीछे रहते? इस खबर ने उनका भी पर्दाफाश किया है। पिछले कुछ सालों से टीवी की बहुतायत ने अखबार के पत्रकारों का काम आसान कर दिया। सब कुछ जब टीवी पर उपलब्ध है तो भागदौड़ करने की क्या जरूरत? ये पत्रकार घर बैठे रिपोर्टिंग करने लगे हैं। हालाँकि अभी भी कुछ अच्छे पत्रकार हैं, जो समाज में दिखते हैं। लेकिन ज्यादातर टीवी का ही अनुसरण करते हैं। फिर जब दस चैनल एक साथ एक खबर को चला रहे हों तो उसे गलत साबित करने की हिम्मत कितनों में होगी? इसलिए जो कभी टीवी का मजाक उड़ाया करते थे, वे अब टीवी के आभामंडल से अभिभूत हैं। ऐसे में खबरों में फिल्टर कौन लगायेगा (कि कौन-सी सच्ची और कौन-सी झूठी)? – आशुतोष आईबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर

  3. एक निर्दोष संत पर अत्याचार करना, उन्हें जेल में रखना…क्या यही हैं मानवाधिकार एवं भारतीय न्याय?

  4. जैसा की नाम से ही लगता है की यह लेख लिखने वाला व्यक्ति मोदी, संघ, भाजपा और हिंदुत्व और देशभक्तो का विरोधी है इसलिए स्वाभाविक है की वह रजत जैसे ईमानदार और सच्चे पत्रकार का भी विरोधी ही होगा, यदि कोई पत्रकार मोदी की बुराई करता तो इस तनवीर नामके व्यक्ति को वह अच्छा लगता इस लेख से तो यही लगता है की यह व्यक्ति देशभक्तो का विरोधी है

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