ये भी तो भेदभाव है

ओम माथुर
ओम माथुर
कौन कहता है हमारे देश में पुरुष और स्त्रियों के बीच भेदभाव खत्म हो गया है ? आप खुद देख लीजिए भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बना रही है। लेकिन उन्हें और महिला विश्व कप खेल रही भारतीय महिला टीम को मीडिया में कहां वैसा कवरेज मिल रहा है,जो पुरुष टीम के खिलाड़ियों को मिलता हैं। मिताली ने लगातार सात मैचों में हाफ सेंचुरी बनाकर और वन डे मैचों में सर्वाधिक 6000 रन बनाकर दो विश्व कीर्तिमान बनाए हैं। लेकिन ना तो वह अखबारों की सुर्खियों में हैं और ना ही टीवी चैनलों की बहस में। उनसे ज्यादा कवरेज तो रवि शास्त्री को भारतीय क्रिकेट टीम का कोच बनाने पर हुए विवाद और विराट कोहली और अनुष्का शर्मा के हॉलीडे को मिल रहा है। ऐसा लगता है इस देश में खेलों के नाम पर सारी वाहवाही,सारा श्रेय और सारा पैसा पुरूष क्रिकेटरों के लिए ही है ।अगर ऐसी ही कोई उपलब्धि किसी पुरुष क्रिकेटर की होती तो,अब तक उसे सरकार और बीसीसीआई पुरस्कारों से लाद देती। लेकिन मिताली के लिए ऐसी कोई घोषणा कहीं से नहीं हुई है। जब मिताली और उन जैसी महिला क्रिकेटरों के साथ ऐसा भेदभाव हो सकता है ,तो फिर जमीनी स्तर पर महिलाओं की हकीकत क्या होगी इसे क्या कहने की जरूरत है? हम नारी स्वतंत्रता और महिलाओं को बराबर का दर्जा देने की बातें कर सकते हैं,भाषणबाजी कर सकते हैं। लेकिन असल चीज मानसिकता मे बदलाव कब करेंगे?

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