वैचारिकी- हम डरे हुए हैं या बिके हुए..?

रास बिहारी गौड़
रास बिहारी गौड़
प्रत्येक जरुरी/गैर जरुरी मुद्दे पर मुख्य मिडिया/सोशल मिडिया/ राजनैतिक विचारक बड़ा शोर मचाते हैं। आपवादिक रूप से कभी कभी सार्थक बहस भी होती है। किन्तु इस बार अजमेर दरगाह बम ब्लास्ट के महत्वपूर्ण निर्णय पर किसी भी बहस या विचार नजर नहीं आया।पूरा का पूरा अभिव्यक्त समाज एंटी रोमियों या सांसद की उड़ान में उलझा रहा और आतंकवाद के उस चेहरे से आँखे हटा ली जो भारत की राजनीती का वर्तमान और भविष्य दोनों तय कर रहा है।
इस बात को अपने राजनैतिक आग्रह या दुराग्रह से ना देखे। हम अपनी सुविधा से सच और झूठ गढ़ने लगे हैं। नकारात्मकता को पोषित करते हुए हमे अब अपनी आवाजों से डर लगने लगा है।
मुझे आज भी याद कि दरगाह बम- ब्लास्ट के दिन स्थानीय मोनिया इस्लामिया ग्राउंड में विराट कवि सम्मेलन था। भीड़ भरा आयोजन था, सफल हुआ, साथ ही नगर का सौहार्द नहीं बिगाड़ा।कारण समाज आग्रहों से मुक्त था और विचारों से युक्त था।
कुछ समय बाद आरोपी पकड़े गए। संयोग से सारे आरोपी राष्ट्रीय स्वम् सेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे। नहीं! नहीं! आप ऐसे राजनैतिक द्वेष नहीं कह सकते, क्योकि उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। अगर अन्य धार्मिक संगठन का कोई एक व्यक्ति आतंकी कार्यवाही में लिप्त होता है, तो पूरा संगठन आतंकवादी कहलाता है। किन्तु यहाँ संगठन अभी भी संस्कारी ही है,। सत्ता का नियंता है। मजेदार बात संगठन सार्वजानिक रूप से स्वम को आरोपियों से अलग भी नहीं कर रहा है। शायद छद्म धर्मनिरपेक्षता के सापेक्ष धर्म की आड़ में आतंक के नए आयाम स्थापित कर रहा है।
पीड़ा ये नहीं है कि राजनीती क्या कर रही है, या सत्ता का दृष्टिकोण क्या है, या विपक्ष इतना अक्षम क्यों हो गया। चिंता इस बात की है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकार अपने चैनल या ब्लॉग पर उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोल रहा। कारण जो भी हो , पत्रकारिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए ये बड़ा खतरा है कि मिडिया समाज की नहीं,स्वार्थ की जुबान बोल रहा है।
सब जानते हैं उक्त निर्णय में कुछ को संदेह का लाभ मिला है, कुछ सबूतो के आभाव में बरी हो गए हैं। जिनके खिलाफ सब कुछ साफ था, उन्हें सजा मिली । हो सकता है कि वे अपने राजनैतिक सम्पर्को या न्याय की पतली गलियों से भी बच निकलने का कोई रास्ता खोज ले।
मुम्बई ब्लास्ट हो या दरगाह का बम धमाका, अक्षरधाम हो या मालेगांव, अमानवीय कृत्य करने वालो का कोई धर्म नहीं होता। फिर ये कैसे हो सकता है कि हम धर्म के आधार पर आतंक की शिनाख्त करते हुए एक की मौत पर जश्न बनाएं और दूसरे के मामले में मौत सी चुप्पी साध ले। जबकि उनका धर्म से कोई लेना देना नहीं है,,वे तो धर्म की आड़ में अपने आकाओं के मंसूबे पूरे करते हैं। हमें उन्हें पहचनाना है और उनसे खुद को बचाते हुए अपने आदमी होने की पहचान को बचाना है।
अगर सचमुच हम चुप हैं, तो या तो हम डरे हुए लोग हैं ,या बिके हुए..। दोनों ही परिस्थितियों में हम अपने बच्चों को पूर्वजों का भारत नहीं सौप पाएंगे।
रास बिहारी गौड़

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