हिंदुस्तान में विशेषज्ञों की कमी नहीं है जो अंभिज्ञतावश किसी भी विषय पर अपनी भली बुरी राय देने में नहीं चूकते।ऐसे ही मेरा वास्ता वास्तुशास्त्र के विषय में अनजान वक्तव्य देने वालों से होता रहता है।कुछ लोग तो यह कह देते है”ये वास्तु तो अब चला है,पहले कौन- सा था ये वास्तु” और कुछ तो यहाँ तक बोल देते है कि”पैसे वालों का चोचलापन है…ये वास्तु-शास्तु”।खैर,हम किसी की सोच पर पाबन्दी तो नहीं लागा सकते! परन्तु उसे वास्तु के प्राचीन इतिहास से तो अवश्य अवगत करा सकते है।यदि पौराणिक तथ्यों का अध्ययन किया जाये तो अवगत होगा की कई राजा महाराजाओं का जो पतन हुआ…….केवल महलों के पुनर्निर्माण से।मुगलों ने भी हमारे राजा- महाराजाओं को वास्तु विपरीत सलाह देकर तबाह किया था।यदि ऐसे महलों का अध्ययन किया जाये तो वास्तुदोषों का पूर्ण आभास होगा।कुछ समय पूर्व मध्यप्रदेश के ऐसे ही एक महल का विचरण कर मेरे जो वक्तव्य थे उसे वहां के बुजुर्ग चौकिदार ने स्वीकारा।वास्तुशास्त्र के वैज्ञानिक व प्राकृतिक तथ्यों का पालन प्राचीनकाल से होता आया है।कुछ यूँ भी कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि “बिना चोट के कोई महर्रम नहीं लगता!”अर्थात् वक्त की मार से इंसान सभी नियमों का पालन करने लगता है। वास्तु में पञ्च तत्वों का समायोजन तथा पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति व वैश्विक विधुत चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव ही सुवास्तु की मूल अवधारणा है।भवनों में पञ्च तत्वों के समायोजन हेतु अपनाये गए घटक ही वास्तुसूत्र होते हैं। दिखावे की इस दुनिया में डिजाइनर अपनी डिजाइन से कोम्प्रोमाईज़ नहीं करते, इसप्रकार भवन में प्राकृतिक व पञ्च तत्वों के संतुलन से छेड़छाड़ कर बैठते है।फलतः कई भवनों में वास्तु का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है।वास्तु सिद्धांत किसी जाती-पाती पर आधारित नहीं है बल्कि पृथ्वी के हर जीव से संबंधित है।
-इंजी.शैलेन्द्र माथुर,वास्तुविशेषज्ञ,अजमेर।