भाई-बहनों का त्योंहार रक्षाबंधन

रक्षा बंधन :

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
भारतीय परम्परा में बन्धन का मूल विश्वास ही होता है | रक्षाबन्धन भी इसी विश्वास का बन्धन है । यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का वचन भी देता है। रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना । यह स्मरणीय है कि प्राचीन काल में रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि ‘’मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’ अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर मोतीयों को एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है तब ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों के हाथ की कलाई पर बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से मुक्ति दिलाते हैं।
रक्षाबन्धन का पर्व सदा से ही सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। रक्षा बंधन पर्व पर बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण कर उन रिस्तों को मजबूत एवम् सोहार्द पूर्ण बनाती है। रक्षा बंधन पर दो परिवारों का और दो कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार रक्षा बंधन पर जो कड़ी टूट सी गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।
प्रति वर्ष श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को भारतवर्ष में भाई – बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार ‘रक्षाबन्धन’ मनाया जाता हैं । सावन मास में मनाए जाने के कारण इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं।
इस वर्ष 2015 में रक्षा बंधन का त्यौहार शनिवार 29 अगस्त को मनाया जाएगा | पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 29 अगस्त 2015 को हो जाएगा किन्तु दोपहर 13:50 बजे तक भद्रा व्याप्ति रहेगी, इसलिए शास्त्रानुसार यह त्यौहार 13:50 के बाद संपन्न किया जाए तो अच्छा रहेगा | परंतु परिस्थितिवश यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए |

रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि :
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जला कर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं। इसके बाद भाई की दायी कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। राखी बांधते समय बहनें अपने भाई के शतायु होने तथा उसके उत्तम स्वास्थ्य एवं सुख- सफलता – उन्नति एवम् सोभाग्य की कामना करती है। यह भी मान्यता है कि रक्षा बंधन के दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भी भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंह बोली बहन बनाकर उससे राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। आज कल चांदी एवं सोनी की राखी बांधने का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः सोना या चांदी की राखी बांधी जा सकती है लेकिन सोना या चांदी की राखी पर रेशम का धागा जरुर लपेट लेना चाहिए।
रक्षाबंधन का मंत्र : येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

निसंदेह रक्षाबन्धन का पर्व आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। प्रकृति भी जीवन की रक्षक ही हैं इसीलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधी जाती है।
रक्षाबन्धन के अवसर पर बनाये जाने वाले पकवान :
रक्षाबन्धन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे घेवर , शकरपारे , नमकपारे और घुघनी । घेवर सावन का विशेष मिष्ठान्न है यह केवल हलवाई ही बनाते हैं जबकि शकरपारे और नमकपारे आमतौर पर घर में ही बनाये जाते हैं। घुघनी बनाने के लिये काले चने को उबालकर चटपटा छौंका जाता है। इसको पूरी और दही के साथ खाते हैं। हलवा,सेवइयां और खीर भी इस पर्व के लोकप्रिय पकवान हैं।
जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—विकीपीडिया,वेब इंडिया,पंडित प्रेम कुमार शर्मा, कविता रावत आदि
अन्य आर्टिकल्स के लिये देखें—– gargjugalvinod.blogspot .in

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