प्रथ्वी पर भगवान के देवदूत—पापा—-Part 2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
पिता अपने बच्चोंको इस योग्य बनाते हैं कि वह स्वयं के पैरों पर खड़े हो सकें। पापा …यानी पल-पल, पग-पग एक नई चुनौती स्वीकार करने वाले। किसी भी स्थिति में अंत तक अपने दायित्व को पूरा करने वाली एक प्रेरणा हैं। बुरी तरह थका देने वाली अनंत जिम्मेदारियों के बाद भी मुस्कुराते रहते हैं ऐसे ही मेरे और आपके पापा। इन्सान अपने पापा की छाया में रह कर कब बड़े हो जाते हें यह उसको मालूम ही नही पड़ता | यह पापा ही हे जो दिन रात बच्चे के लिए जीते मरते हैं, उनका एक मात्र काम होता हे अपने बेटी-बेटों को जीवन की सारी खुशियाँ देना और उन्हें एक कामयाब मनुष्य बनाना, वें अपने बच्चों की ख़ुशियों के खातिर अपनी सारी खुशियाँओ को छोड़ देते हें—ऐसे पापा को कोटि कोटि प्रणाम | ईश्वर विश्व के लिए चुनौती लाते हैं और उनका सामना करने का साहस भी देते हैं। पिता भी तो ऐसे ही कठोर रहकर, नियम बनाकर बच्चों को श्रेष्ठ बनाते हैं। पिता सब मोह छोड़कर जिम्मेदारी निभाते हैं——– पिता अपना मन मारकर जिम्मेदारी निभाते हैं पिता नया सीखकर जिम्मेदारी निभाते हैं। |
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—–विभिन्न पत्र-पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने

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