400 से भी ज्यादा देवालय हैं तीर्थराज पुष्कर में

इन दिनों तीर्थराज पुष्कर में मेला चल रहा है। इस मौके पर पुष्कर के बारे में जानना प्रासंगिक रहेगा। आइये, जानते हैं पुष्कर में क्या-क्या है देखने लायक। अजमेर से 13 किलोमीटर दूर नाग पहाड़ की तलहटी में और समुद्र तल से 530 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुष्कर राज में चार सौ से भी अधिक छोटे-बड़े देवालय हैं। यहां ब्रह्माजी का एक मात्र मंदिर है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यह छोटा सा कस्बा करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केन्द्र है। शास्त्रों के अनुसार जगतपिता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था। इसलिए इसे तीर्थगुरू भी कहा जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यहां धार्मिक एवं पशु मेला लगता है, जिसमें देशभर के विभिन्न प्रांतों के पशुपालक तो जमा होते ही हैं, विदेश पर्यटक भी मेले का लुफ्त उठाने आ जाते हैं। यहां के आध्यात्मिक माहौल और शांति का आनंद उठाने के लिए यूं भी वर्षभर विदेशी सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है।
पुष्कर सरोवर
अद्र्ध चंद्राकार आकृति में बनी यह पवित्र व पौराणिक झील पुष्कर का प्रमुख आकर्षण है। झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से पुष्प गिरने से यहां जल प्रस्फुटित हुआ, उसी से यह झील बनी। मान्यता है कि झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है।
सरोवर के किनारे चारों ओर 52 घाट बने हुए हैं। इनमें गऊ घाट, वराह व ब्रह्मा घाट ही सर्वाधिक पवित्र माने जाते हैं। संध्या के समय गऊ घाट पर तीर्थ गुरु पुष्कर की आरती की जाती है। झील में दीपदान भी किया जाता है। अधिकतर घाट राजा-महाराजाओं ने बनाए हैं। घाटों का विवरण इस प्रकार है। मुख्य गऊघाट:- इसका निर्माण लगभग तीन सौ साल पहले हुआ। घाट पर मराठाकालीन संतोराव की छतरी स्थित है। यहीं पर वीआईपी-वीवीआईपी पूजा-अर्चना करते हैं। जनाना घाट:- सन् 1911 ईस्वी बाद अंग्रेजी शासनकाल में जब महारानी मेरी पुष्कर देखने आई तो उसने यहां महिलाओं के लिए अलग से यह घाट बनवाया। चीर घाट:- यह घाट सतीमाता मंदिर के साथ लगभग तीन सौ साल पुराना है। बालाराव घाट:- इसका निर्माण बालाराव मुरम्मत रौड़ी, अलवर ने करवाया। हाथीसिंह जी का घाट:- इस घाट को किशनगढ़ के महाराजा हाथीसिंह ने करीब दो सौ बाईस साल पहले बनवाया था। शेखावटी घाट:- यह खेतड़ी के राजा राम लखावत ने तीन सौ बीस साल पहले बनवाया था। राम घाट:- इसे माधवराव ज्योतिषी डकणी ने 1893 में करवाया। राय मुकुन्द घाट:- इसका निर्माण रा मुकुन्द कायस्थ नारनौल वालों ने लगभग पांच सौ दस साल पहले करवाया। यह दो राम घाटों के बीच बना हुआ है। राम घाट:- डकणी के ब्राह्मण ने करीब 225 साल पहले बनवाया था। यहां मृत व्यक्तियों की अस्थियां विसर्जित की जाती हैं। गणगौर घाट:- यह लालजी मल कायस्थ, अजमेर ने बनवाया। यहां गणगौर के दौरान कुंवारी लड़कियां जेलें लेकर पूजा करती हैं। रघुनाथ घाट:- इसे अस्तल घाट भी कहते हैं। इसका निर्माण सन् 1541 में डकणी के ब्राह्मणों ने पचास हजार रुपए की लागत से बनाया। बद्री घाट:- यह अति प्राचीन घाट है। यहीं पर राम-लक्ष्मण का मंदिर है। भदावर राजा घाट:- इस घाट पर नगर पालिका का कार्यालय है। इस घाट पर इन्देश्वर महादेव मंदिर है। इसे पुराना थाना भी कहते हैं। विश्राम घाट:- इसका निर्माण तीन सौ बीस साल पहले हुआ। इसे झूलेलाल घाट भी कहते हैं। नृसिंह घाट:- यहां नृसिंहजी का मंदिर है। यह मंदिर अजमेर के माहेश्वरी व अग्रवाल महाजनों तीन सौ साल पहले बनवाया। मोदी घाट:- इसको किशनगढ़ के मेहरा मोदी ने सन् 1763 में बनवाया था। वराह घाट:- इसका निर्माण राजा नारहार राव परिहार ने लगभग ढ़ाई सौ साल पहले करवाया। यहां वराह मंदिर व वराह धर्मशाला है। बंशीलाल घाट:- इसको 1869 में लॉर्ड बंशीलाल ने बनवाया। एक सौ आठ महादेव घाट:- यहां एक सौ आठ शिव लिंग स्थापित हैं। चन्द्र घाट:- इसको जयपुर निवासी श्यामलाल कायस्थ व नायब बख्शी ने 1850 ने बनवाया। यहां चन्द्रमा की मूर्ति है। इन्द्र घाट:- इसका निर्माण जयपुर निवासी बख्शी सुंदरलाल कायस्थ ने करवाया। शिव घाट:- इसको महादेव घाट भी कहते हैं। इसका जीर्णोद्धार मराठा सूबेदार गोविन्द राय ने करवाया। कोट तीर्थ घाट:- इसे छतरी एवं ग्वालियर घाट भी कहते हैं। यहां कोटेश्वर महादेव का मंदिर है। सन् 1735 में दौलतराव सिंधिया ने इसकी मरम्मत करवाई। बंगला घाट:- यह मराठाकालीन है। इसे गुसाइयों ने 1812 में बनवाया। किशनगढ़ घाट:- इसे पंचवीर घाट भी कहते हैं। इसे जैसलमेर के राजा ज्वाला सिंह ने बनवाया और किशनगढ़ रियासत को सौंप दिया। राज घाट:- इसे मान व जयपुर घाट भी कहते हैं। इसका निर्माण जयपुर नरेश मानसिंह ने 1870 में करवाया। सरस्वती घाट:- यह खुला घाट है। यहां पर कोई निर्माण नहीं हुआ। पूर्व में यहां गाय-बैल आदि पानी पीते थे। तीजा माजी का घाट:- इसे जोधपुर के महाराजा ठाकुर मानसिंह की तीसरी पत्नी प्रतापकंवर बाई ने बनवाया। सप्तऋषि घाट:- महाभारत के सात ऋषियों के नाम से इसका नामकरण किया गया है। जोधपुर घाट:- इसे जोधपुर महाराजा मानसिंह ने बनवाया। यहां नाथजी के पदचिह्न हैं। आज यहां नाथ सम्प्रदाय का कब्जा है। बूंदी घाट:- इसका निर्माण कुंवर भीम सिंह की विधवा ने करवाया। गुर्जर घाट:- यह पहले खुला घाट था, जिसे कुछ साल पहले गुर्जर समाज ने बनवाया। सीकर घाट:- यह एक प्राचीन घाट है। यहां एक होटल बनी हुई है। वल्लभ घाट:- इसका निर्माण भागवतपाठी स्वामी वल्लभाचार्य ने करवाया। स्वरूप घाट:- यहां महादेवजी का मंदिर है। कोटा के राजा ने इसकी मरम्मत करवाई। चौड़ी पैठी का घाट:- इसे बावरियों का घाट भी कहते हैं। इन्द्रेश्वर महादेव घाट:- यहां करणी माता का मंदिर है, जिसे ढ़ाई सौ साल पहले चारण समाज ने बनवाया। बीकानेर राजघराने ने यहां एक छोटा मंदिर 1939 में बनवाया। हेडगेवार घाट:- यह एक खुला घाट था। इसको कुछ साल पहले राज्य सरकार ने बनवाया। परसराम घाट:- इसको आचार्य परसराम देव बरकवालों ने राधा-माधव मंदिर के साथ बनवाया। सलेमाबाद में महंत ने इसकी एक बार मरम्मत करवाई। सावित्री घाट:- इसका निर्माण जोधपुर स्टेट के काका ठाकुर ने करवाया। ब्रह्मा घाट:- कहा जाता है कि इसका निर्माण जोधपुर के काका ठाकुर ने लगभग एक हजार साल पहले इसकी मरम्मत करवाई। यहां गुजराती धर्मशाला भी है। यहां एक जनाना घाट भी है, जिसे जोधपुर के प्रोफेसर ब्रह्मानंद ने बनवाया। हाड़ा घाट:- इसे दाधीच घाट भी कहा जाता है। इसका निर्माण अन्नपूर्णा मंदिर के साथ बूंदी के राजा ने लगभग ढ़ाई सौ साल पहले करवाया। खींवसर माता घाट:- यहां पर अस्थि विसर्जन किया जाता है। छींक माता घाट:- यह 625 साल पुराना है। यज्ञ घाट:- एक मंदिर के साथ इसका निर्माण जगुजी पुरोहित ने करवाया। भरतपुर घाट:- यह एक प्राचीन घाट है। यहां एक होटल चल रही है। गांधी घाट:- यह काफी पुराना घाट है। जगन्नाथ घाट, गुरु गोविंद सिंह व दो घाट और हैं, जिनके बारे में कोई विवरण हासिल नहीं है।
ब्रह्मा मंदिर:- यह पुष्कर में मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर थोड़ी ऊंचाई पर स्थित है। यह विश्व का एक मात्र प्राचीनतम ब्रह्मा मंदिर है। उपलब्ध तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि ब्रह्माजी की मूर्ति का स्थापना संवत् 713 में आदि जगदगुरू शंकराचार्य ने करवाई थी। इसमें ब्रह्माजी की आदमकद चतुर्मुखी मूर्ति प्रतिष्ठित है। ब्रह्माजी इस मूर्ति में पालथी मारकर बैठे हैं, लेकिन यह मूर्ति मूल रूप में प्रतिष्ठित नहीं है। सम्राट औरंगजेब के शासन में 1658-1708 के दरम्यान मंदिर को गिरा दिया गया था और मूर्ति को भी तोड़ दिया गया था। इसी स्थान पर ईसा पश्चात 1719 में जयपुर की एक ब्राह्मण महिला ने मूर्ति कर पुन: प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। वर्तमान स्वरूप दौलतराम सिंधिया के एक मंत्री गोकुल चंद पारीक ने प्रदान किया। मंदिर के प्रांगण में चांदी का कछुआ स्थापित है।
श्रीरंगनाथ वेणी गोपाल मंदिर (पुराना रंगजी का मंदिर) :- इसे शेखावाटी मूल के हैदाराबाद निवासी सेठ पूरणमल ने 1844 ईस्वी में बनवाया था। मंदिर का गोपुरम, विग्रह, ध्वज आदि द्रविड़ शैली में निर्मित हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों व भवनों पर राजपूत शैली एवं शेखावाटी शैली में चित्रकला अंकित है। मंदिर में बंसी बजाते भगवान वेणी गोपाल की नयनाभिराम काले पत्थर की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यहां वर्ष पर्यन्त विभिन्न उत्सव जैसे- ब्रह्मोत्सव, श्रावण झूलोत्सव आदि मनाए जाते हैं। यहां भगवान की सवारी के प्राचीन कलात्मक वाहनों का समृद्ध संग्रह मौजूद है।
श्री रमा बैकुण्ठ मंदिर (नया रंगजी का मंदिर) :- वैष्णव संप्रदाय की रामानुजाचार्य शाखा के इस मंदिर का निर्माण डीडवाना के सेठ मंगनीराम रामकुमार बांगड़ ने 1925 ईस्वी में करवाया था। इसे नया रंगजी का मंदिर कहा जाता है। दक्षिण भारतीय वास्तु शैली में बने इस मंदिर में गोपुरम, विग्रह विमान गरुड़ आदि दर्शनीय हैं। श्रावण मास में यहां झूला महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें सजी झांकियों को देखने के लिए दूर-दूर से तीर्थ यात्री आते हैं।
बूढ़ा पुष्कर
पुराणों में उल्लेखित तीन पुष्करों ज्येष्ठ, मध्यम व कनिष्ठ में कनिष्ठ पुष्कर ही बूढ़ा पुष्कर है। इसका जीर्णोद्धार सन् दो हजार आठ में राज्य की वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण न्यास के अध्यक्ष श्री औंकारसिंह लखावत ने करवाया।
पंचकुण्ड:- अजमेर से पुष्कर जाते वक्त बायीं ओर पंचकुंड है। यहां शिवजी व हनुमानजी के मंदिर हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष इसी जगह बिताया था और पांच कुंड बनवाए थे। यह एक अच्छा पिकनिक स्पॉट है। पंचकुड की पहाडिय़ों में मृगवन की स्थापना की गई है।
आत्मतेश्वर मंदिर:– इस मंदिर की कथा ब्रह्माजी के यज्ञ से जुड़ी हुई है। जैसे ही गायत्री को अद्र्धांगिनी बना कर उन्होंने यज्ञ शुरू किया तो एक नंगधडंग़ व्यक्ति आत्मत्-आत्मत् चिल्लाता हुआ आया और उसने यज्ञ प्रांगण में एक नरमुंड फैंक दिया। जैसे ही इसे बाहर फिंकवाया गया, तो दो नरमुंड दिखाई दिए। उन्हें हटाया गया तो और भी नरमुंड प्रकट हो गए। यज्ञ में आमंत्रित देवताओं ने कपालिक के वेष में भगवान शिव को पहचान लिया और उन्होंने उनकी स्तुति की। शिव ने इस शर्त पर नरमुंड हटवाए, पुष्कर में उनके लिए भी स्थान बनाया जाए। उस वक्त ही शिव लिंग की स्थापना की गई, जो आज भी आत्मतेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि भगवान शिव ने अटपटा काम किया, इस कारण इस मंदिर का नाम अटमेटेश्वर भी है।
सावित्री मंदिर:– पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में बारे तथ्य यह बताया जाता है कि ब्रह्माजी द्वारा गायत्री को पत्नी बना कर यज्ञ करने से रुष्ठ सावित्री ने वहां मौजूद देवी-देवताओं को श्राप देने के बाद इस पहाड़ी पर आ कर बैठ गई, ताकि उन्हें यज्ञ के गाजे-बाजे की आवाज नहीं सुनाई दे। बताते हैं कि वे यहीं समा गईं। मौजूदा मंदिर का निर्माण मारवाड़ के राजा अजीत सिंह के पुरोहित ने 1687-1728 ईस्वी में करवाया था। मंदिर का विस्तार डीडवाना के बांगड़ घराने ने करवाया। सावित्री माता बंगालियों के लिए सुहाग की देवी मानी जाती है। ऐसा इस वजह से कि ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री का अंशवतार सत्यवान सावित्री को माना जाता है।
वराह मंदिर:- वराह मंदिर विष्णु के वराह अवतार की कथा से जुड़ा हुआ है। इसमें उन्होंने वराह का रूप धारण कर पृथ्वी को अपने सींग पर उठा लिया था। हालांकि यह मंदिर सन् 1123-1150 में चौहान राजा अरणोराज उर्फ अन्नाजी ने बनवाया था। इसका जीर्णोद्धार महाराणा प्रताप के भाई सागर ने अकबर के शासनकाल में करवाया था। यह वही स्थान है जहां मुगलों व राठौड़ों के बीच युद्ध हुआ था। पहले मंदिर की ऊंचाई डेढ़ सौ फीट थी, जो अब मात्र बीस फीट रह गई है। जल झूलनी एकादशी पर यहां से लक्ष्मी-नारायण की सवारी निकाली जाती है। इसी प्रकार चेत्र में वराह नवमी के दिन यहां विशेष आयोजन होता है।
श्राप विमोचिनी का मंदिर:- रंगनाथ जी के मंदिर के उत्तर में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर वस्तुत: गायत्री का है, जिसके यज्ञ के दौरान ब्रह्माजी की पत्नी बनने पर सावित्री ने रुष्ठ हो कर देवी-देवताओं को श्राप दिया और गायत्री ने उनको से मुक्ति दिलाई थी। इसी मंदिर के पास कालका देवी का मंदिर भी दर्शनीय है।
महादेव का मंदिर:– इस मंदिर का निर्माण सेनापति जयअप्पा की स्मृति में करवाया गया था। वे सन् 1756 में नागौर में मारे गए थे। यह मंदिर उनके अवशेषों पर निर्मित है।
मान मंदिर:- मुगल सम्राट अकबर के प्रसिद्ध सेनापति राजा मानसिंह ने इसका निर्माण करवाया था। यह ईंट व चूने से बना हुआ है और चौकोर भवन के समान दिखाई देता है।
कोटेश्वर महादेव
नाग पहाड़ व तारागढ़ वाली पहाड़ी के बीच घाटी पर पचास फीट ऊंचाई पर कोटेश्वर महादेव मंदिर बना हुआ है, जिसमें शिवजी की प्रतिमा है।
सुधाबाय
पुष्कर के पास सुधाबाय कुंड में हर मंगला चौथ (जिस चतुर्थी के दिन मंगलवार हो) को मेला भरता है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। बताया जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया किया था।
कान्हबाय:- यहां भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में विष्णु की शेषशैया पर विराजमान आदमकद प्राचीन खंडित मूर्ति है।
ककड़ेश्वर-मकड़ेश्वर:-कान्हबाय के पास भगवान शंकर के ये दो मंदिर पास-पास हैं। बताते हैं कि ब्रह्माजी ने जब सृष्टि यज्ञ किया था तो यहां दो शिव लिंग स्थापित किए गए थे। इनके नामकरण के बारे में कहा जाता है कि ककेड़े के पेड़ के पास जमीन के नीचे शिवलिंग मिला, इस कारण वहां बनाए गए मंदिर का नाम ककड़ेश्वर महादेव पड़ गया। इसी प्रकार थोड़ी ही दूरी पर ऋषि मार्कण्डेय के तपस्या करने की वजह से मंदिर का नाम मार्कण्डेय महादेव था, जो बाद में मकड़ेश्वर कहा जाने लगा।
टेऊंराम मंदिर:-पुष्कर में अजमेर बस स्टैंड से पहले स्वामी माधवदास ट्रस्ट, आदर्शनगर, अजमेर की ओर से बनाए गए प्रेम प्रकाश आश्रम में स्वामी टेऊंराम का मंदिर है। कांच के इस चित्ताकर्षक मंदिर में स्वामी टेऊंराम जी की आदमकद प्रतिमा है। पास ही स्वामी माधवदास जी की प्रतिमा है।
नागकुण्ड:-कथा है कि ब्रह्माजी के पुत्र वटु ने यज्ञशाला में एक सर्प छोड़ दिया, जो भृगु ऋषि के पावों से लिपट गया। इस पर उन्होंने वटु को सर्प बनने का श्राप दिया। भयभीत वटु ने ब्रह्माजी से श्राप की मुक्ति की प्रार्थना की। इस पर उन्होंने वटु को सर्पों के नवें कुल का कुलपुरुष बनने का वरदान दिया और नाग पर्वत पर रहने का आदेश दिया। यही जगह नाग कुण्ड के नाम से जानी जाती है। श्रावण कृष्णा पंचमी को यहां स्नान व पूजा का बड़ा महत्व है।
पाण्डु बेरी:- यहां पाण्डुकेश्वर महादेव का मंदिर है। बताते हैं कि अर्जुन के तीर से यह बेरी बनी, जिसमें अक्षय जल भंडार है।
अनेक गुफाएं:- पुष्कर के नाग पहाड़ में अनके ऋषि मुनियों के तपस्या स्थल हैं, जिनमें महर्षि विश्वामित्र, अगस्त्य मुनि, ऋषि वामदेव, राजा भर्तृहरि आदि की गुफाएं प्रमुख हैं। राजा भर्तृहरि की गुफा ज्येष्ठ पुष्कर से करीब एक किलोमीटर दूर है। ऐसा कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि ने यहां पर योग साधना की थी। बताते हैं कि वे आज भी मनुष्य वेष में भटके हुओं को राह दिखाते हैं। पुष्कर में ही जमदग्नि कुंड है। बताते हैं कि वहां भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ने तपस्या की थी।
लीला सेवड़ी:- पुष्कर के निकट लीला सेवड़ी में भगवान कृष्ण का मंदिर है। यह करीब ढ़ाई सौ साल पुराना बताया जाता है। यहां पर हर साल मेला भरता है।
भट गणेश मंदिर:– बूढ़ा पुष्कर की ओर पुष्कर बाईपास पर चुंगी चौकी के निकट करीब ग्यारह सौ साल पुराना भट गणेश मंदिर है। यहां हर बुधवार को श्रद्धालु जुटते हैं। विशेष रूप से मारु जाति के बंजारा समाज की इसकी विशेष मान्यता है और वे विवाह का पहला निमंत्रण यहीं पर देते हैं। नवविवाहित जोड़े भी यहीं पर सबसे पहले आ कर मत्था टेकते हैं।
यह समस्त जानकारी अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक में भी उपब्ध है।
-तेजवानी गिरधर

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