-सत्तरवें पाटोत्सव पर विशेष- श्री निम्बार्काचार्य पीठ के वर्तमान आचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य जी महाराज का 70 वां पाटोत्सव 11 जून को किशनगढ़ के पास निम्बार्क तीर्थ, सलेमाबाद में मनाया जाएगा। इस मौके पर आइये जानते हैं श्री श्रीजी महाराज और इस पीठ के बारे में:-
सलेमाबाद में स्थित श्री निम्बार्काचार्य पीठ के वर्तमान आचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य जी महाराज का जन्म 10 मई 1929 को निम्बार्क तीर्थ निवासी गौड़ विप्र वंश में हुआ। माता का नाम स्वर्णलता-सोनी बाई व पिता का नाम श्री रामनाथ शर्मा गौड़ इंदोरिया था। महाराजश्री का बाल्यकालीन नाम रतनलाल था। 7 जुलाई 1940 में उन्होंने पीठाधिपति श्री श्रीजी बालकृष्ण शरण देवाचार्य महाराज से दीक्षा ली। उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में ही कुरुक्षेत्र में अखिल भारतीय साधु सम्मेलन की अध्यक्षता की। सन् 1970 में उन्होंने लगभग तीस हजार भक्तों के साथ श्रीब्रज चौरासी कोसीय पद यात्रा की। विक्रम संवत 2031 में उन्होंने अखिल भारतीय सनातन धर्म सम्मेलन किया। इसके बाद विक्रम संवत 2050 में आचार्यपीठाभिषेक के अद्र्धशताब्दी पाटोत्सव स्वर्ण जयंती के मौके पर अखिल भारतीय सनातन धर्म सम्मेलन आयोजित किया। आचार्यश्री के प्रयासों से ही सर्वेश्वर संस्कृत महाविद्यालय, श्रीनिम्बार्क दर्शन विद्यालय व वेद विद्यालय का संचालन हो रहा है। पीठ से श्री सर्वेश्वर मासिक पत्र व श्री निम्बार्क पाक्षिक पत्र का नियमित प्रकाशन हो रहा है। आचार्यश्री ने हिंदी ब्रज भाषा में 35 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। वे संस्कृत, हिंदी, बंगला व राजस्थानी भाषा के विद्वान तो हैं ही, आयुर्वेद व संगीत कला के भी मर्मज्ञ हैं।
निम्बार्क तीर्थ
रूपनगढ़ के पास किशनगढ़ से लगभग 19 किलोमीटर दूर सलेमाबाद गांव में निम्बार्काचार्य संप्रदाय की पीठ ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण है। यहां भगवान सर्वेश्वर की मूर्ति पूजनीय है। वस्तुत: वैष्णव चतुर्सम्प्रदाय में श्री निम्बार्क सम्प्रदाय का अपना विशिष्ट स्थान है। माना जाता है कि न केवल वैष्णव सम्प्रदाय अपितु शैव सम्प्रदाय प्रवर्तक जगद्गुरु आदि श्री शंकराचार्य से भी यह पूर्ववर्ती है। इस सम्प्रदाय के आद्याचार्य श्री भगवन्निम्बार्काचार्य हैं। आपकी सम्प्रदाय परंपरा चौबीस अवतारों में श्री हंसावतार से शुरू होती है। भगवान श्री निम्बार्काचार्य का प्राकट्य युधिष्ठिर शके 6 में दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश के वैदुर्यपंतनमुंजी में गोदावरी तटवर्ती श्रमणाश्रम में हुआ। अल्प वय में ही वे उत्तर भारत के ब्रज मंडल स्थित गिरिराज गोवर्धन की सुरम्य उपत्यका में आ गए। वहीं उनको देवर्षि नारद मुनि से वैष्णवी दीक्षा के साथ सूक्ष्म दक्षिणवर्ती चक्रांकित शालग्राम स्वरूप श्री सनकादि संसेवित श्री सर्वेश्वर प्रभु की अनुपम सेवा प्राप्त हुई। यही सेवा अद्यावधि अखिल भारतीय श्री निम्बार्काचार्य पीठ, सलेमाबाद में आचार्य परंपरा से सम्प्रति परिसंवित है। विश्व में इतनी प्राचीन व सूक्ष्म श्री शालग्राम स्वरूप और कहीं भी नहीं है। जब भी आचार्यश्री धर्म प्रचार अथवा भक्तों के आग्रह पर कहीं जाते हैं तो यह सेवा उनके साथ ही रहती है। एक बार श्री निम्बार्काचार्य ने अपने आश्रम में दिवामोजी दंडी महात्मा के रूप में आए ब्रह्माजी को रात्री हो जाने के कारण भोजन से निषेध करते देख नीम वृक्ष पर अपने तेज तत्त्व श्रीसुदर्शनचक्र को आह्वान कर सूर्य रूप में दर्शन करवा कर भोजन कराया। निम्ब अर्थात नीम पर सूर्य अर्थात अर्क के दर्शन करवाने के कारण ब्रह्माजी ने उन्हें श्री निम्बार्क नाम से संबोधित किया। उन्हीं की आचार्य परंपरा में श्री परशुराम देवाचार्य महाराज ने सलेमाबाद में अखिल भारतीय श्री निम्बार्काचार्य पीठ की स्थापना की।
शोभावत की कुल Devi ka kya name hai..
महाराज जी को चरण वंदना
Sri radhey
अद्वितीय संत जी
Maharaj ji ko baram bar pranaam samarpan. Hum sub pe bhi daya drasti kare hum sab ko sadbudhi de.
Jai Ho Baba Ki
Radhe Radhe
Maharaj shri ko saadar pranam mujh per aashirwaad rakhna or Mujhe sadbudhee dena.
Radhe Radhe