मुंबई में देवी नागरानी जी के निवास, बांद्रा में सिन्धी साहित्यकारों की काव्य गोष्टी समपन हुई। इसमें शामिल हुई सिंधी समाज की सशक्त कहानीकार माया रही, श्री नन्द जवेरी जो अपने साहित्य द्वारा सिन्धी साहित्य को समृद्ध करते आ रहे है, उन्होने श्री नारी लच्छानी की शायरी पर अपने कुछ विचार प्रस्तुत किए। सिंधी साहित्य के जाने माने दोहा व ग़ज़ल की माहिर उस्ताद श्री लक्ष्मण दुबे जी ताज़ा महकते शेर सुनाकर सभी को मुग्ध कर दिया। बेस्ट सिन्धी संस्था, मुम्बई के संस्थापक अदीब होलराम हंस ने सिन्धी वरिष्ठ लेखक श्री अर्जुन चावला की नवनीतम पुस्तक पर अपने विचार पेश किए।
श्री जयराम रूपानी जो आधी सदी से सिन्धी साहित्य व संस्कृति से जुड़े अपनी सेवाएँ देते रहे अपनी पत्नी के साथ मौजूद रहे। ब्रिज मोहन एवं पूनम ब्रिज पंजाबी, दोनों ने अपनी व देवी नागरानी की ग़ज़लों को स्वरबद्ध करके गाया और अपने फन से परिचित करवाया. डॉ. संगीता सहजवानी ने इस बार अपनी कविता न पढ़कर एक मधुर हिन्दी गीत गया-“’तुम जो हमारे मीत न होते” गाया, साथ में गुनगुनाहट के कई सुर इस पुराने गीत से जुड़ते रहे। अरुण बाबानी ने अपनी नई प्रकाशित पुस्तक “poems, कवितायें, कविताऊँ” से अभिभूत करती हुई दो आज़ाद रचनाओं का पाठ किया। एक थी ‘ब्या माणहूँ’ और दूसरी उनके उनके अपने निजी अहसासत व अनुभव दर्ज करते हुए थी, जो श्रोताओं को मुतासिर करती रही। गीता बिंदरानी ने अपने परिचय के साथ बहुत ही सटीक और अर्थपूर्ण “एक सिट्टा” पढ़े। देवी नागरानी ने श्री कृष्ण राही जी की ग़ज़ल “दिल में न दिल का दर्द समाए तो क्या करूँ…..को सुर से सजाकर पेश किया और अपनी एक सिन्धी ग़ज़ल भी पढ़ी। विजय चिमनलाल- उन्होने सिंधी कलामों को सुर में पेश करते हुए सबकी वाह-वाही लूटी… ! श्रोता स्वरूप उपस्थित रहे सोनी मूलचंदानी व उनके पति गुरबख्श मूलचंदानी, सुंदर गुरुसहानी, “असीं सिंधी” पत्रिका के संपादक, गोप गोलानी जो एक पत्रिकारिता के लिहाज़ से एक अच्छे फोटोग्राफर भी हैं, रशिम जी व प्रो. यशोधरा। सुरमई शाम सभी रंगों को समेटते हुए नाश्ते के साथ सम्पन्न हुई।
Girdhar ji
Thank you so very much for publishing this news of my Sindhi literaries of mumbi
Devi nangrani