युवा कवयित्री सीमा आरिफ की रचना

सीमा आरिफ
सीमा आरिफ
तुम्हारा संघर्ष समाजवाद
और मेरी पीड़ा केवल एक
शिकायत मात्र?
हे महात्मा!
तुम नहीं हो सकते हो
मेरे दुःख में सम्मिलित
यह फ़हरिस्त है पुरानी मेसोपोटामिया के
इतिहास जैसी
तो बताओ क्या तुमने महसूस किया है
कभी माहवारी का मीठा वो दर्द
जिसके हर बारी आने से पूर्व और आने तक
हर नारी उतारती है अपना गुस्सा इस सृष्टि
के निर्माता पर
तुम नहीं आ सकते बराबर कभी
क्यूंकि तुमने झेला नहीं
माँ बनने का दर्द
जिसमें टूटती है शरीर की
अनगिनत हड्डियाँ
घंटों रसोई में खड़े रहने
से होती है वो बेहाल
करती है घर और बाहर के
सब ही काम
बेहद दुखद है यह सच्चाई
तुम्हारी हर शिकायत पे होती है यहाँ सुनवाई
मेरी पीड़ा भी इस समाज को लगती है पराई!!

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