“लतियाना” और “लठियाना”

sohanpal singh
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अब इस बात में कोई शक नहीं है कि लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का जादू अब उतार पर है अगर ऐसा न होता तो उनको प्रधान मंत्री पद की गरिमा के विपरीत ऐसा न कहना पड़ता ” UP में एक बार मौका दो , अगर खरे नहीं उतरे तो लात मार् कर बाहर निकाल देना ” लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया की उन्होंने अपने दो वर्ष के प्रधान मंत्रित्व के कार्य कल में उत्तर प्रदेश के लिए क्या किया है ? हाँ हल्ला जरूर मच रहा है ? उन्हें शायद लात। मारने की बात भावनात्मक रूप में इसलिए कहानी पड़ी की उतार प्रदेश ने उनको 73 सांसद दिए है जो एक से बढ़ कर एक प्रदेश में घृणा फ़ैलाने का काम कर रहे है ? उनको पता होना चाहिए लात मार् कर बाहर निकलने का चलन तो बिहार में है जहाँ से लात लग चुकी है ? दूसरी लात दिल्ली वासियों से मारी जब उन्होंने दिल्ली विधान सभा से सफाया कर दिया ? ये उत्तर प्रदेश है यहाँ ! जाट , गुजर, यादव, ठाकुर और दलित, मुस्लिम सब मिलकर रहते हैं और ये लात नहीं मरते सर माथे पैट बैठाते है लेकिन दगा करने पर लठ मार कर अधमरा कर देते हैं ?
हमको यह समझ नहीं आता की प्रधानमंत्री के रूप में जब मोदी जी पार्टी के प्रचारक के रूप में बोलते है तो उन्हें यह यकीनी रूप में गांठ में बाँध लेना चाहिए की वे देश के 125 करोड़ लोगो के नेता है न कि संघ के प्रचारक और ना ही बीजेपी के नौकर , इस लिए प्रधान मंत्री के पद की गरिमा को अक्षुण रखना भी सीखना होगा जिसकी कसम भी उन्होंने खाई है । क्योंकि उत्तर प्रदेश का यह अनुभव है की भले ही मोदी जी 5 करोड़ गुजरातियों के गौरव थे जो 5 करोड़ की गाथा गाते गाते 125 करोड़ भारतियों के गौरव बन गए हैं परंतु अपने कमल गट्टों (सांसद और विधायकों और बेलगाम नेताओं ) पर कार्यवाही तो दूर जबान पर लगाम भी नहीं लगा सके? शायद इन कारणों से उन्हें अपनी पार्टी की u p की दयनीय हालात का पता है ! तभी उन्होंने निम्न स्तरीय भाषा का इस्तेमाल किया जिसको किसी भी हालात में उचित नहीं कहा जा सकता । पता नहीं यह देश कासौभाग्य है या दुर्भाग्य की देस को उन जैसा कर्मठ नेता मिला जो देश की चिंता करने के विपरीत पार्टी को मजबूत करने के लिए रातदिन एक किये हुए है ? क्योंकि लतियाना, लाठियाना , फुसलाना, बरगलाना, फड़फड़ाना, मुस्कराना, तड़फ़ाना, लड़वाना , हड़काना, बहुत से जुमले है और चुनाव में जुमलों का जमाल जनता देख चुकी , एक जुमला था 15 लाख सबके खाते आजायेंगे , वो जुमला जुमला ही बन कर रह गया लेकिन चिंता की बात नहीं इस लतियाने वाले जुमले का सम्बन्ध सीधे जनता से जुड़ा है और जनता 2017 में इस जुमले को मूर्त रूप में कार्यान्वित जरूर करेगी ?

एस. पी. सिंह , मेरठ .।

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