सिन्धी समाज की शान साध्वी मोहनी देवी जी

मोहनी देवी एक नाम ही नही वरन नारी जाति का स्वाभिमान है,आज भी इस नारी रूपी नाम को सिन्धी समाज ही नही हर हिन्दु की जुबान पे सम्मान से लिया जाता है !
हम बात कर रहे है उस साध्वी की जो सिन्धी समाज की शान है , भारत विख्यात साध्वी मोहनी देवी जी का जन्म सिन्ध मटियार जिला हैदराबाद में बैसाख माह के 08 तारीख विक्रमसंवत 2002 (अंग्रेजी दिनाँक 21 फरवरी 1946 ) को वहां के मुखिया पिता वाधुमल माता खेमीबाई जी के यहाँ सरस्वती रूप में हुआ ,उन्होंने कन्या का नाम मोहनी रखा, हिंदुस्तान विभाजन पश्चात परिवार अजमेर आकर बसा, नाम के अनुरूप ही कन्या के गुणों अनुसार बाल्यकाल से ही उनमे भगवान राम के प्रति एक अलग ही भक्ति भाव था ,हम उम्र कन्याओ से खेल खेलती भी थी तो ईश्वर समर्पित भाव से !
जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे ही वैराग्य में प्रभु श्री राम के भजन भाव मे लीन रहने लगी और आठ वर्ष के बाल्यकाल में एटा उत्तर प्रदेश के सन्त धन्नू फ़कीर जी से मिलना हुआ समय की उड़ान ने करवट बदली और उनके भक्ति को मानो पंख ही मिल गये
प्रभु श्री राम के चरणों में उन्हें वो रस मिला कि मानो उनके जीवन ही प्रभु श्रीराम हो गये उन्हें ही पिता तुल्य मान कर हरि कीर्तन में सदैव लीन रहने लगी ,उन्होंने सन्त धन्नू फ़कीर जी से मनुहार कर नाम- धान लिया और तब से वो सतगुरु देव धन्नू फ़कीर जी की हो गई और उन्ही के साथ आस पास के शहरों में राम नाम की धर्म पताका ले सनातन धर्म का प्रचार किया !
21 वर्ष तक आने पर माता एवं बड़े भाई चेलाराम जी को कन्या के विवाह की चिन्ता सताने लगी ,मगर विधाता को तो शायद ये ही मंजूर था कि वो उनके चरणों मे लीन हो जीवन व्यापन करें !उन्होंने विवाह करना मंजूर न किया और उम्र भर विवाह न करने का प्रण किया !
तब वो सतगुरु देव धन्नू फ़कीर जी की हो गई और उन्ही के साथ भारत भ्रमण पर निकल कर सनातन धर्म का परचम लहराया प्रभु श्रीराम के गुणगान कर धर्म का प्रचार किया! इस बीच गुरु आशीष से उन्ही के नाम का अजमेर के वैशाली नगर में धनेश्वर मन्दिर की 1979 में सतगुरु के हाथों से ही स्थापना कराई ,और सेविका के रूप में सत्संगी महिलाओं को साथ लेकर धर्म प्रचारक के रूप में अलग से भी धर्म की पताका को फैला रही है !

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