कचहरी रोड स्वामी काम्पलेक्स के चौराहे पर , जूनियर बिसिट इन्सटीट्यूट के सामने अवैध ठेलों एंव केबिनों की भरमार , रोज अवरुद्ध होता है यातायात
शहर के ह्रदय स्थल स्वामी काम्पलेक्स चौराहे पर पता नहीं किस की दंबगाई से एक साथ दो केबिने रातों रात लग गई पहले तो ये केबिने यातायात को अवरुद्ध करती हुई कचहरी रोड पर दोनों अस्पतालों के सामने लगी थी , जब ट्रैफिक पुलिस को भी ऐतराज जताया कि यहाँ रोज जाम लगता है ट्रैफिक पोइंट से हटाओ , तो ट्रैफिक पुलिस थोड़ी बहुत हरकत में आई ओर उसने इस सम्बंध में नगर निगम में सभी का ध्यान आकर्षित किया गया पर जब कोई असर नहीं हुआ तो ट्रैफिक पुलिस भी ये मान कर बैठ गई कि होई सो वोई जो राम रची राखा ,
मुकामी पुलिस और जिला प्रशासन का पर कोई असर नहीं हुआ , केबिन धारियों के रसूखात बहुत ऊपर तक थे वो केबिने अब G R P लाइन को जानेवाले गेट के बाहर स्थाई हो गई और सब विभागों ने अपना हिस्सा ले लिया और अघोषित N O C जारी कर दी , चुनाव का समय नजदीक है सरकार जाते जाते पक्की दुकानें बनाने की अनुमति दे जायेगी और इन सब का नियमन कर जायेगी ,
यहां सवाल ये उठता है कि शहर के व्यापारियों का भी कोई धणी धोरी है कि नहीं ,ये ठेले , वाले सडकों पर जूते चप्पल , स्पोर्ट्स शू , कपडे बेचने वाले ना तो कोई टैक्स देते हैं ना इनके GST लगता है , ना बिजली का बिल आता है , ना दुकान का किराया लगता है , ना दुकान की पगड़ी लगती है , और माल खूब बिकता है क्ई ठेले वालों की दुकानें भी हैं जिनको उन्होंने गोदाम बना रखा है और उनके सामने ही ठेलों पर माल बेच कर लाखों रूपये कमाते हैं और पुलिस को और सम्बंधित विभागों को नियमित मंथली देते हैं ना तो कोई सेल टैक्स ना कोई इनक्म टैक्स देते हैं बाबा जी के बाबा जी और रोज मख्खन मलाई घर ले जाते हैं , मुकामी पुलिस किसी किसी जगह एक ठेले से एक हजार रुपये रोज लेती है जब चाहें उच्च स्तरीय जांच करवा कर उच्च अधिकारी तस्दीक कर सकते हैं , इन सम्बंधित विभागों की तो लाखों की हर महीने अवैध वसूली और मरता बेचारा शहर का कानून मानने वाला व्यापारी जो सब टैक्स देता है पर उसके धंधे का सत्यानाश ये सरकारी कफन खसोटे कर देते हैं ,
सर्दियों में तिब्बती आ कर कपडा व्यापारियों की ऐसी की तैसी कर जाते हैं पुलिस और प्रशासन और शासन से मिल कर , अब तो तिब्बतियों के मार्केट खुलने लगे हैं शहर में जगह जगह , अरे भाई तिब्बत में कौन सा कपडा बनता है जो ला कर बेच जाते हैं वो तो शरणार्थी हैं , पंजाब से रेडीमेड ला कर हर शहर में बेचते हैं और अरबों रूपये की टैक्स चोरी कर शहर के व्यापारियों को जिन्दा मार जाते हैं , सरकार का पैसा खा जाते हैं , और सरकारी कफन खसोटो व चिंदी चोरों को नाजायज पैसा दे जाते हैं जो ऊपर तक पहुंच जाता है और जियो और जीने दो का सिद्धांत प्रतिपादित हो जाता है , और पुलिस व सम्बंधित विभागों की दिवाली मन जाती है , ओर इस शहर का ईमान दार व्यापारी बेमौत मर जाता है , लोग कहते हैं अजमेर में काम धंधा नहीं है अरे हो कैसे जब सरकारी कारिंदे ही शहर लूटवा रहे हों शहर को तो ,
राजेश टंंडन