बस एवरेस्ट फतह करने का ही है जुनून
*केकड़ी* अजमेर
*मंजिलें उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है*
*पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों से उडान होती है* केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव मेहरू कला के रहने वाले पर्वतारोही जैकी जेक्स खजूरिया ( कहार ) जो कि लंबे समय से माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने को बेकरार है लेकिन बदनसीबी है कि उसे न तो सरकार की ओर से कोई मदद मिल पाई और ना ही किसी समाज सेवी संस्था या भामाशाह ने उसकी मदद की। मेहरूकला के एक गरीब किसान बालूराम कहार के इकलौते पुत्र जैकी जैक्स का बचपन से सपना है कि वह एवरेस्ट पर चढाई करे और उसी को जैकी ने अपना लक्ष्य बना लिया। वह वर्षो से इस प्रयास में लगा हुआ है कि उसे कब किसी की मदद मिले और वह अपना सपना पूरा कर सके। जैकी रॉक क्लाइंबिंग पैराग्लाइडिंग, सन्नो क्राफ्ट, रेफलिंग, ब्रिजिंग व चिमनी जैसे एडवेंचर स्पोर्ट्स का आला दर्जे का खिलाड़ी भी है। वह एडवांस पर्वतारोही अभियान के दौरान सन 2004 में 22650 फीट की ऊंचाई तय कर माउंट केदार डोम तक पहुंच चुका है। इससे पूर्व 2002 में 18550 फीट ऊंची द्रौपदी का डांडा व 11150 फीट ऊंची गुर्जर हट की पहाड़ी तक भी पहुंच चुका है। माउंटेनियरिंग जैकी ने प्रयास तो खूब किए लेकिन परिवार की मुफलिसी व उसका ग्रामीण परिवेश हर बार बाधक बनता रहा।
सन 2011 में जैकी को एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए ग्रामीणों की सहायता से हिमालय की 8848 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने की नेपाल सरकार की ओर से मंजूरी मिली थी लेकिन उसकी बदकिस्मती थी कि वो 8500 मीटर पर बर्फीले तूफान में फंस गया तथा स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण वह अपना यह मिशन पूरा नहीं कर पाया जिसका आज भी उसे मलाल है। इसके बावजूद जैकी ने हिम्मत नहीं हारी और कुछ दिनों तक स्वास्थ्य लाभ लेने के पश्चात फिर से निकल पड़ा और दक्षिण अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो को फतह करने के लिए उसने 15 अगस्त 2011 को किलिमंजारो पर तिरंगा फहरा कर ही दम लिया। सन 2017 में जैकी का पर्वतारोहण के लिए चयन हुआ लेकिन सरकारी मदद नहीं मिलने की वजह से वह अपना ये सपना फिर पूरा नहीं कर पाया। उसने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों सहित भामाशाहों से काफी मिन्नतें की लेकिन झूठे आश्वासनों के अलावा उसे कुछ नही मिला। इसके लिए वह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व संसदीय सचिव शत्रुघ्न गौतम से भी तीन चार बार मिल चुका है लेकिन यहां भी केवल आश्वासन ही मिला जबकि दूसरे राज्यों में सरकार ऐसे जांबाज़ खिलाड़ियों को केवल मदद ही नही कर रही बल्कि उन्हें रोजगार देकर प्रोत्साहित भी कर रही है। पर्वतारोही जैकी जैक्स का कहना है कि एक बार फिर से एवरेस्ट की चढ़ाई पर इसलिए जाना चाहता है कि माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर साहस कि इस दुनिया में युवाओं को प्रेरित कर सके। जैकी जैक्स ने बताया कि वह चाहता है कि साहसिक खेलों को हर युवा वर्ग तक पहुंचाया जाए। उसने कहा कि वह एक छोटे से गांव के गरीब परिवार का सदस्य है आज भी गांव में उसका एक कच्चा मकान है तथा उसके पिता जैसे-तैसे खेती करके अपने परिवार का गुजर बसर कर रहे हैं। ऐसे में गरीब परिवार के युवाओं को भी उससे प्रेरणा मिलेगी जैकी ने बताया कि वह पश्चिम भारत का प्रथम व्यक्ति है जो पर्वतारोहण में ग्रेजुएट है।
उसने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के उसके इस जुनून के चलते उसका घर व जमीन गिरवी रखे हैं वहीं पत्नी के जेवर यहां तक कि मंगल सूत्र तक बेचने पड़े। उसने अपने व्यक्तिगत जीवन से जुड़े पहलुओं पर रोशनी डालते हुए कहा कि उसकी पत्नी लक्ष्मी देवी चौहान भी पर्वतारोही है वह भी उसके साथ इस मिशन को कामयाब करने में जुटी है। उसकी पत्नी लक्ष्मी ने मनाली में बेसिक एडवांस कोर्स किया है। जैकी ने बताया कि हम दोनों पति-पत्नी ने यह निर्णय लिया है जब तक वह अपने मिशन में कामयाब नहीं हो जाते तब तक चैन से नहीं बैठेंगे और आखिरी दम तक प्रयास करेंगे। जैकी अपने इस मिशन के अलावा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारे के साथ पूरे देश में 10000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुका है।
फांकाकशी के इस दौर में भी वह निरंतर जूझते हुवे अपना ये सपना पूरा करने के लिए जूझ रहा है। अब दिसम्बर 2018 में वह फिर मिशन बेटी बचाओ बेटी पढाओ व महिलाओ के सम्मान के लिए एवेरेस्ट जीरो लेवल से हाईएस्ट पॉइंट गंगासागर तट व बंगाल से माउंट एवेरेस्ट तक का सफर तय करने के प्रयासों में जुटा है।