नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नोवार्टिस की उस अर्जी को सोमवार को खारिज कर दिया जिसमें उसने ग्लिवेक पर पेटेंट का अधिकार मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में पेटेंट ट्रिब्यूनल का फैसला बरकरार रखते हुए नोवार्टिस को इसका पेटेंट देने से इन्कार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नोवार्टिस ने अपनी नाराजगी जताई है। कंपनी के मुताबिक इस फैसले से इस दवाई के इनोवेशन पर फर्क पड़ेगा। कंपनी ने कहा हे कि सात वर्ष के लंबे इंतजार के बाद आए इस फैसले से वह निराश है। नोवार्टिस ने दलील दी थी कि उसके निवेश को बचाया जाना चाहिए, जबकि भारतीय कंपनियों का कहना था कि उन्हें लाइफसेविंग सस्ती दवाएं बनाने की इजाजत मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भारत में दूसरी कंपनियां भी ब्लड कैंसर की दवा ग्लाइवेक बना सकेंगी। इस वजह से यह दवा मरीजों को सस्ती मिल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एक दवा के लिए दो बार पेटेंट नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट के मुताबिक ग्लिवेक ने पेटेंट एक्ट के तहत इनोवेशन टेस्ट पास नहीं किया है। ग्लिवेक पर पेटेंट मामलों का सेक्शन 3(डी) लागू नहीं होता है। दरअसल ग्लिवेक, स्विस कंपनी नोवार्टिस की कैंसर की दवा है। ग्लिवेक का 1 महीने का डोज 1 लाख रुपये से ज्यादा है। लेकिन ग्लिवेक के जेनरिक वर्जन का 1 महीने का डोज महज 10,000 रुपये के करीब है।
माना जा रहा हैकि कि अदालत के इस फैसले से नैटको फार्मा, सन फार्मा और सिप्ला को फायदा होगा। वहीं कुछ का मानना है कि इस फैसले से इसके इनोवेशन और एमएनसी के नए प्रोडेक्ट लॉन्च पर भी असर पड़ेगा।