संपादकीय

फिर हासिल करना होगा गौरव

तेजवानी गिरधर
अरावली पर्वतशृंखला के आंचल में महाराजा अजयराज चौहान द्वारा स्थापित
यह नगरी दुनिया में अपनी खास पहचान रखती है।
इसका आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व इसी तथ्य से आंका जा सकता है कि
सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा ने तीर्थगुरू पुष्कर में ही आदि यज्ञ किया था।
पद्म पुराण के अनुसार सभी तीर्थों में तपो भूमि पुष्कर की महिमा उतनी ही है,
जितनी पर्वतों में सुमेरु और पक्षियों में गरुड़ की मानी जाती है।
सूफी मत के कदीमी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के रूहानी संदेश से
महकती इस पाक जमीन में पल्लवित व पुष्पित विभिन्न धर्मों की मिली-जुली संस्कृति
पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल पेश करती है।
इस रणभूमि के ऐतिहासिक गौरव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि
यह सम्राटों, बादशाहों और ब्रितानी शासकों की सत्ता का केन्द्र रही है।
अनके सियासी उतार-चढ़ाव की गवाह यह धरा कई बार बसी और उजड़ी,
मगर प्रगाढ़ जिजीविषा की बदौलत आज भी इसका वजूद कायम है।
आजादी के आंदोलन में तो यह स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणास्थली रही।
ऐसी विलक्षण और पावन धरा को कोटि-कोटि वंदन करते हुए
गागर में सागर भरने के एक छोटे से प्रयास के रूप में आपकी सेवा में पेश है-
अजमेर एट ए ग्लांस।
इस पुस्तक में अजमेर को हरसंभव कोण से देखने की कोशिश की गई है।
तीनों कालों कल, आज व कल को एक सूत्र में पिरोने की भरसक कोशिश की गई है,
तथापि मुझे यह कहने में कत्तई गुरेज नहीं कि बहुत कुछ बयां करने को बाकी रह गया है।
दरअसल अजमेर का जो कद रहा है, वैसा मुकाम आज इसे हासिल है नहीं।
और उसकी एक मात्र वजह है राजनीतिक जागरुकता और सशक्त नेतृत्व का अभाव।
विकास की दौड़ में कछुआ साबित होने का एक कारण कदाचित हमारी संतोषी वृत्ति है,
जिसने हमें जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये का सोच दिया है।
दोष अकेला नेतृत्व का नहीं, अपितु हम सब का भी है।
पानी जैसी मूलभूत सुविधा के मसले तक पर हम चुप रह जाते हैं।
बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय के सूत्र को जेहन रखते हुए
हम जागरुक हो जाएं तो यह शहर अपने पुराने गौरव को फिर उपलब्ध हो सकता है।
अकेले धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देते हुए दरगाह ख्वाजा साहब और तीर्थराज पुष्कर को
विकसित किया जाए तो यहां की फिजां बदल सकती है।
पुरा महत्व की इमारतों की ठीक से खैर-खबर लें तो देशी-विदेशी सैलानियों का ठहराव बढ सकता है,
जो हमारे आर्थिक विकास का जरिया बन जाएगा।
इतना ही नहीं प्रयास किया जाए तो यहां सूफी मत का ऐसा शोध केन्द्र स्थापित किया जा सकता है,
जिसकी खुशबू दुनियाभर में मौजूदा आतंकवाद के जमाने को नया संदेश दे सकती है।
पाश्चात्य संस्कृति की चपेट में भंग हो रही तीर्थराज पुष्कर की पवित्रता को बचाने की भी सख्त जरूरत है,
वरना यह अपनी वह पहचान खो देगा, जिसकी वजह से इसे तीर्थों का गुरू कहा जाता है।
तेजवानी गिरधर
227, हरिभाऊ उपाध्याय नगर (विस्तार), अजमेर
फोन: 0145-2600404, मोबाइल : 7742067000, 8094767000
ई-मेल:[email protected]

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