मन को शांत करने की प्रक्रिया योग – डॉ. स्वतन्त्र शर्मा

swatantra sharmaमन को शांत करने की प्रक्रिया ही योग है। सामान्यतया योग अभ्यास,
आध्यात्मिक साधना एवं शरीर के विभिन्न व्यायामों को योग की उपमा दे दी जाती
है परंतु वस्तुतः योग एकात्मदर्शन की एक प्रक्रिया है। जब हम दैनिक जीवन में
आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार इत्यादि का अभ्यास करते हैं तब वह अवस्था
समाहित अवस्था कहलाती है और जब उस अवस्था से प्राप्त चित्त की शांति के
बोध का आचरण हम जब दिन भर करने लगते हैं तब व्युत्थान अवस्था होती है
और यही योग है। चित्त की वृत्तियों के कारण हम अक्सर अपने जीवन में या तो
दुर्योग देखते हैं या सुयोग परंतु चित्त की वृत्तियाँ जब शांत हो जाती हैं तब आत्मा
का सुख प्रकट होता है और यही आनन्द मीमांसा योग कहलाती है। व्यक्ति बाह्य
वस्तुओं, साधनों, परिस्थितियों एवं व्यक्तियों में ही सुख ढूंढने लगता है जबकि
अंतःकरण की गहराई में एकात्मता की अनुभूति होने पर जीवन में सहज योग
प्रकट होता है। उक्त विचार विभाग प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा ने विवेकानन्द केन्द्र
कन्याकुमारी शाखा अजमेर द्वारा आयोजित आदर्श नगर गांधी उद्यान में चल रहे
योग सत्र के द्वितीय दिवस के अवसर पर व्यक्त किए।
आज के अभ्यासों में केन्द्र की जीवन व्रती कार्यकर्ता श्वेता टाकलकर एवं
सहनगर प्रमुख क्षितिज तोषनीवाल द्वारा श्वसन एवं शिथलीकरण के अभ्यासों
के साथ सूर्यनमस्कार का विभागशः अभ्यास करवाया गया। डॉ. शर्मा ने बताया
कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के परिप्रेक्ष्य में नगर के प्रमुख स्थानों पर लगाए जा रहे
योग सत्रों की शृंखला में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर द्वारा दस
दिवसीय योग सत्र का आयोजन प्रातः 5.30 से 7.00 बजे तक गाँधी भवन उद्यान,
आदर्श नगर, अजमेर में किया जा रहा है इस योग सत्र का समापन 12 मई को
होगा तथा इसमें 18 से 50 आयु वर्ग के सभी महिला एवं पुरुषों भाग ले रहे हैं।
सत्र हेतु पंजीकरण 5 मई तक खुला रखा गया है।
(डॉ0 स्वतन्त्र शर्मा)
विभाग प्रमुख
9414259410

error: Content is protected !!