संघ ने मनायी अम्बेडकर जी की 125वीं जयन्ती

aa3 rssअजमेर 14 अप्रेल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजयमेरू महानगर का एकत्रीकरण आज अविनाश महेश्वरी स्कूल के प्रांगण में हुआ। डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के 125वीं जयन्ती पर डॉ. नारायणलाल गुप्ता जी ने कहा कि समाज जीवन, राष्ट्र इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है , जिस दृष्टि को लेकर संघ चला है, वही दृष्टि आज भी महत्वपूर्ण है। हम हिन्दू राष्ट्र के अंगभूत घटक हैं। सहोदर हैं सभी समाज के लोग सभी जाति पंथ को मानने वाले सभी भाई-भाई हैं । हमारा दर्शन श्रेष्ठ दर्शन है। सर्वे भवन्तु सुखिनः सबके कल्याण में ही हमारा कल्याण है, यही हमारा विचार है।
इस श्रेष्ठ विचार के बाद भी हमारे यहां कुछ कुरीतियां पनपी जिसमें छुआछूत भी एक बुराई जो हमारे धर्म में नहीं फिर भी पनपी । हम इस पाखण्ड में फंस गये। मूल तत्व भूल गये। प्रतीकार हुआ दो प्रकार से दृष्यानुभूति, आत्मानुभूति।
दो डॉक्टर एक रोग। एक डॉक्टर बाबा साहिब अम्बेडकर, एक डॉक्टर केशव राव बलिराम हेडगेवार। दोनों के मन में एक तरह की व्यथा थी , एक ने आदर्श बताया एक ने रास्ता सुझाया। आज बाबा साहब को एक वर्ग का बना दिया गया है।
वह समाज जो पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करता है वही एक बालक को पानी नहीं पीने देता। बड़ोदरा महाराज से स्कॉलरशिप प्राप्त कर बाहर जाकर पढ़ाई की। बड़ोदरा राज्य का सैन्य सचिव बने तब चपरासी भी फाइल फेंककर देता है। घर किराये पर नहीं मिलता। विद्रोह में भी राष्ट्रप्रेम की सीमापार नहीं करते। धर्म को श्रेष्ठ मानकर सत्यागृह का मार्ग अपनाया। समान कुआं समान मन्दिर और समान शमसान की बात कही। तथाकथित स्पर्शों को सहन नहीं हुआ। बाबा साहब ने कहा हमारे छूने से पानी गंदा नहीं होगा।

कालाराम मंदिर में प्रवेश की इच्छा थी सत्याग्रह किया, लाठियां खाई। कहते रहे भगवान हमसे अपवित्र नहीं होगा। हिन्दू समाज में अस्पृश्यता पर मतान्तरण के बाद वही मनुष्य समानता का दर्जा किस प्रकार पा लेता है।
दुर्भाग्य से समाज ने अपना ही बंधु नहीं समझा। इसलिए शॉक ट्रीटमेण्ट का फैसला किया। 1935 में घोषणा, मैं हिन्दूधर्म में पैदा हुआ पर हिन्दूधर्म में मरूंगा नहीं। 1956 में मृत्यु से एक-डेढ़ माह पूर्व हिन्दूधर्म के बौद्ध शाखा में मतान्तरण किया। अलग राज्य नहीं चाहा सम्मानजनक स्थान मांगा। गांधीजी के हरिजन शब्द का विरोध किया अलग पहचान की आवश्यकता नहीं समझते थे। विधर्मियों ने पैसे व सम्मान का लालच दिया।

डॉ. अम्बेडकर ने इसके पीछे का षडयन्त्र समझा। क्यों कि ईसाई या मुस्लिम होने पर व्यक्ति संस्कृति से कट जाता है। जब संविधान का निर्माण किया तो हिन्दू धर्म की व्यापक परिभाषा हिन्दू कोड बिल में दी। समाज में दो वर्ग हैं एक अम्बेडकर जी के मानने वाले लोग व दुसरे अम्बेडकर जी के जीवन का गलत भाष्य करने वाले लोग। राजनीतिक फायदा उठाने वाले लोग गलत भाष्य करते हैं।

1938 में पूणे संघ शिविर में आये प्रसन्न हुए क्योंकि जीवन का सही भाष्य संघ ने किया। वर्ग जात-पात मुक्त समाज रूप देखा। धीमी गति पर असन्तोष जाहिर किया । आज डॉक्टर जी जीवित होते वे कहते कि संघ ने मेरा काम करके दिखाया है।

हमारी अर्थात स्वयंसेवक की जिम्मेदारी अधिक है। अपने आचरण से दिखाना है। हमें समाज प्रबोधन करना है। जो भी अमानवीय है, जो धर्म पर कलंक है उसे दूर करने के लिए हमसे जो भी हो सकता है सब करना होगा । सभी विघटनकारी शक्तियों से लड़ते हुए अपने प्रयत्नों का विस्तार करते हुए समरसता बनाए रखने को जुटना है। करने की कृति की आवश्यकता अधिक है। अपनी भूमिका पर विचार करते हुए संकल्प लेना है।

सुनील दŸा जैन
महानगर संघचालक
9829147270

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