कविता की फुहार‘ में गूंजे कविता के स्वर

press clubअजमेर/‘दर्द जन्मे तो एक दावत हो, सामने तू हो तो अदावत हो‘ और ‘बहुत खोज की तू एक पहेली ही निकली, जिंदगी तेरे नाम से डर लगता है‘ जैसे भावपूर्ण गीतों के साथ-साथ ‘सुर्ख अधरों पर पलाशों को निचोड़ा किसने‘ जैसे श्रंगार रस से ओत-प्रोत गीतों को गाते हुए वयोवृद्ध गीतकार डॉ हरीश ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। वे अजयमेरू प्रेस क्लब द्वारा नाट्यवृंद के सहयोग से रविवार 17 जुलाई को सुबह इण्डोर सभागार में आयोजित काव्य गोष्ठी ‘कविता की फुहार‘ में सुरीले गीत सुना रहे थे। इस अवसर पर मीरा स्मृति संस्थान चित्तौड़गढ़ से आए भंवरलाल सिसोदिया व सत्यनारायण समदानी आदि ने ग्यारह हजार के ‘मीरां सम्मान‘ से सम्मानित किया। यह सम्मान दस वर्षाें से मीरां के पदों के संपादन व खण्ड काव्य ‘दिव्य प्रणय की दीपशिखा‘ के लिए दिया गया है।
गोष्ठी में गज़लगो सुरेन्द्र चतुर्वेदी ने ‘अब के मौसम में फूलों ने की खुदकुशी, दूर से देखकर तितलियां रो पड़ीं और घर गिरा कर मेरा आँधियां रो पड़ी‘ गज़ल सुनाकर खूब तालियां बटोरीं। रासबिहारी गौड़ ने हास्य की लीक से हटकर जब ‘मुखौटों के सामने चेहरे लेकर घूमता हूँ‘ और ‘पिता आँखों की चोरी और चेहरे पे छुपा दर्द आसानी से पढ़ लेते थे‘ संजीदा कविताएं सुनाई तो सभी वाह-वाह कर उठे। युवा कवियित्री डॉ विमलेश शर्मा ने भी पिता के अहसास की संवेदनाओं को अपनी कविता ‘अक्सर टूट जाते हैं पिता जब उनकी बेटियां काँच की मानिंद बिखर जाती हैं‘ में बखूबी बताया। बख्शीश सिंह ने ‘दौड़ना सीखकर चलना भूल गया‘ के साथ अपनी एक पंक्ति की कविता भी सुनाई।
‘बरस जाते हैं बादल भी मेध मल्हार से आओ भीग जाएं कविता की फुहार से‘ जैसी रोचक काव्योक्तियों से बंधा संचालन करते हुए उमेश कुमार चौरसिया ने ‘बच्चों को उनका बचपन लौटा दो‘ और ‘उसके गुनाहों का हिसाब मांगे कैसे, जमीर के बिक जाने की रसीद नहीं थी‘ गज़ल सुनाई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ रमेश अग्रवाल ने ‘इस जिंदगी की धुन का कभी नगमा न बन सका, आये कभी जो ताल पर तो सुर बिगड़ गए‘ गज़ल के माध्यम से जीवन की हकीकत को बयां किया। डॉ. शकुन्तला तँवर ने माँ शारदे की स्तुति करते हुए श्रंगार रस की कविता ‘जब तुम पास नहीं होते तो मन बादल वाला दिन होता‘ सुनाई तो कालिंद नंदिनी शर्मा ने ‘कुछ घावों पर नमक असरदार नहीं होता‘ तथा डॉ. शमा खान ने ‘मैंने देखा है दर्द को खिलते हुए‘ कविता से माहौल को संजीदा कर दिया। विपिन जैन ने ‘घावों से मिलकर हल्का हो जाऊँगा‘ और प्रदीप गुप्ता ने ‘जो भूखे की रोटी भी छीनकर खा जाए‘ व्यंग्य रचना सुनाई। डॉ अनन्त भटनागर ने आधुनिक परिवेश की कविता सुनाई। आनन्द शर्मा ने मिट्टी होती पत्थर व हवा कविता सुनाई, जीएस विरदी ने मन का अहसास सुनाया और देवीदास दीवाना ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मूर्धन्य विद्वान डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने श्लोक के माध्यम से मीरां और वीरभूमि राजस्थान का बखान किया। प्रारंभ में क्लब महासचिव प्रतापसिंह सनकत और कोषाध्यक्ष एस एन झाला ने अतिथियों का स्वागत किया। क्लब अध्यक्ष एस.पी.मित्तल ने आभार व्यक्त करते हुए गीत और कविता की विरासत को नयी पीढ़ी तक ले जाने का आव्हान किया। फरहाद सागर, विजय हंसराजानी, योगेन्द्र सेन और अनिल गुप्ता ने आयोजन में विशेष सहयोग किया। इस अवसर पर यूएसए के विद्वान डॉ चमनलाल रैना, डॉ के.के.शर्मा, नरेन्द्र चौहान, देवदत्त शर्मा, डॉ ए.एन.जैन, ओ.पी.औदिच्य, विट्ठल पाण्डे सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक
संपर्क-9829482601

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