शिक्षा का उद्देश्य समग्र होना चाहिए

bser logoअजमेर 16 नवम्बर। ख्याति प्राप्त शिक्षाविद् और भारतीय शिक्षण मण्डल के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने कहा है कि देश में शिक्षा का उद्देश्य नौकरी तक ही सीमित है, जबकि शिक्षा का उद्देश्य समग्र होना चाहिए। शिक्षा जानकारी पर नहीं अपितु संकल्पना पर आधारित हो। शिक्षा व्यक्तिनिष्ठ नहीं हो बल्कि राष्ट्रहित होनी चाहिए। यह तभी संभव है जब शिक्षा का नियंत्रण व नियमन समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति करें न कि सरकार। सरकार शिक्षा में सहायक व पोषक के रूप में ही अपना कार्य करे।

श्री कानिटकर बुधवार को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सभागार में शिक्षा बोर्ड और भारतीय शिक्षण मण्डल के संयुक्त तत्वावधान में ’’एकात्म एवं समग्र स्वदेशी शिक्षा‘‘ विषय पर राज्य के शिक्षा उपनिदेशकों और जिला शिक्षा अधिकारियों को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षा विद्यार्थी को उसके सामाजिक और आस-पास के भौगोलिक परिवेश से दूर सात समन्दर पार की संस्कृति और परिवेश का ज्ञान कराने का कार्य कर रही है जो उसके वास्तविक जीवन में कहीं उपयोगी नहीं है। शिक्षा में ‘‘टीचिंग’’ के स्थान पर ‘‘लर्निंग’’ पर भी जोर दिया जाना चाहिए। शिक्षकों का स्वाध्याय हो, प्रशिक्षण नहीं। भारतीय संस्कृति के अनुसार शिक्षा अध्ययन और आनन्द केन्द्रीत हो। मैकाले ने देश में शिक्षा का सरकारीकरण कर दिया था और शिक्षा केन्द्र राजतंत्र का भाग बन गये थे। भारतीय पद्धति यह है कि राजा भी बिना आज्ञा गुरूकुल में प्रवेश नहीं कर सकते थे। मैकाले की शिक्षा पद्धति अब भी देश में यथावत है। आवश्यकता इस बात की है कि वर्तमान में आचार्य केन्द्रीत व्यवस्था पर विचार किया जाये।

उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा तीन भागों में बंटी हुई है प्रथम सरकारी, द्वितीय विशुद्ध वाणिज्यिक आधार और तृतीय सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाये। देश में विशुद्ध वाणिज्यिक आधार पर चलने वाले शिक्षण संस्थानों का बोलबाला है जो राष्ट्र के लिए घातक है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ख्याति प्राप्त शिक्षाविद् डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली ने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि अतीत की शिक्षा पद्धति को वर्तमान के अनुकूल बनाया जाये। अध्यापक का मुख्य काम बालक के भीतर जो सोया है उसे जगाना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के सुधार के लिए आजादी के बाद अनेक आयोग बने। उनमें से एक यशपाल आयोग की सिफारिशों के बाद तो माने ऐसा लगता है कि गुरूजी हल्के हो गये और बस्ते भारी हो गये। जबकि होना इसके विपरित चाहिए। शिक्षक विद्यार्थी को भारतीयता की जड़ों से जोड़े और उनमें पुरूषार्थ का बीजारोपण करे। यदि शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन लाना है तो हमें सर्वप्रथम शिक्षा को राजनीति से मुक्त कर स्वायत्तता प्रदान करनी होगी। शिक्षा सरकार का नहीं, यह समाज का विषय होना चाहिए। शिक्षा द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होना चाहिए। शिक्षा व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियों को जागृत कर उसको श्रेष्ठ मनुष्य यानी संस्कारित देशभक्त नागरिक बनाये।

बोर्ड सचिव श्रीमती मेघना चौधरी ने कहा कि शिक्षाविद्ों को इस विषय पर चिन्तन करना चाहिए कि शिक्षा में ऐसा क्या बदलाव किया जाये कि हम विद्यार्थी को भारतीयता की जड़ों से जोड़कर एक सांस्कारिक, चारित्रिक और ज्ञान से परिपूर्ण मानव के रूप में निर्मित करे। शिक्षा को भारतीय बनाने के लिए उसके विचार, व्यवस्था, पाठ्यक्रम और शिक्षा के नियम देशानुकूल और युगानुकूल होने चाहिए। प्रारम्भ में बोर्ड के सहायक निदेशक मनोज उपाध्याय ने आगुन्तकों का स्वागत किया। भारतीय शिक्षण मण्डल के महानगर अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र राजावत ने परिचय दिया और अन्त में भारतीय शिक्षण मण्डल के नगर संरक्षक पुरोषत्तम मंत्री ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में भारतीय शिक्षण मण्डल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री चर्तुभुज महावर और शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड भी उपस्थित थे।
– राजेन्द्र गुप्ता, उप निदेशक (जनसम्पर्क)

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