बड़ो के लिए सेवा करना पुण्य है और बड़ो से सेवा कराना पाप

sudha sagarमदनगंज-किशनगढ़। आचार्य 108 विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि पुंगव 108 सुधासागर जी महाराज ने कहा कि कुछ जीव ऐसे होते है जिनके ऊपर कितना भी उपकार करे, कितना भी उनको सुधारने का प्रयास करे सब विफल हो जाता है कोई फर्क ही नहीं पड़ता। वे अयोग्य व्यक्ति कहलाते है। दूसरे वो है जो अपनी योग्यता को पहचानते ही नहीं। ना उपकार को पहचानते है ना उपकारी को पहचानते है। इसलिए उनमें योग्यता तो विद्यमान है लेकिन वो अपने आप में उपकार व उपकारी को न पहचानने के कारण वंचित रह जाते है। सारा संसार इनसे भरा पड़ा है। ये बात मुनिश्री ने आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में चल रहे प्रवचन के दौरान कही। मुनिश्री ने कहा कि अपनो से बड़ो से तुम काम मत कराओं, तुम बड़ो के काम करो। क्योंकि बड़ो के लिए सेवा करना पुण्य है और बड़ो से सेवा कराना पाप है। उन्होंने कहा कि तुम देव शास्त्र गुरू से रक्षा मत कराओ तुम इनकी रक्षा करो यहीं धर्म है। तुम इनसे अपनी रक्षा कराते हो तो यही अधर्म है। तुम भगवान और गुरू से कहते हो हमारी रोजी रोटी की व्यवस्था कर दो, यहीं पाप है। यहीं दुर्गती का कारण है। दान देते समय भी यही सोचना चाहिए अहसान मत लाटना, यहीं सोचना कि समाज ने मेरा दान स्वीकार कर लिया है यह मेरा पूर्व भव का पुण्य है। मुनिश्री ने कहा कि उपकार की परिभाषा समझो जिसको तुम दे रहे हो जिसकी तुम सेवा कर रहे हो वो तुम्हारे उपकारी है। तुम्हारे द्वारा जिसका काम हो जाए वह उपकार कहलाता है। उपकार लिया नहीं जाता उपकार किया जाता है।
मुनिश्री ने कहा कि सुबह उठकर भगवान से एक वरदान मांगना कि बड़ो को रोटी खिलाऊं, बड़ों से रोटी नहीं खांऊ, बड़ो की सेवा करूं बड़ो से सेवा नहीं कराऊं, बड़ों पर खुब धन लुटाऊं बड़ों से एक कोड़ी भी नहीं लू। बड़ों की रक्षा करूं बड़े मेरी रक्षा न करें, बड़ों के रास्ते के कांटे दूर करूं बड़े मेरे रास्तें के कांटे दूर नहीं करें। हालांकि जिंदगी में ऐसे मौके आते है और आएंगे भी मैं इसको नकार नहीं रहा हँू। लेकिन हम अपनी भावना तो पवित्र रखे। पतन का मुख्य कारण ही यहीं है कि हम बड़ो को अपना दास बनाना चाहते है, अपना सेवक बनाना चाहते है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में एक नियम जरूर लेना कि एक काम मैं ऐसा जरूर करूंगा कि काम मैं करूंगा और सम्मान पिता का हो।
श्री दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के मीडिया प्रभारी विकास छाबड़ा ने बताया इससे पूर्व श्रीजी के अभिषेक एवं शांतिधारा, चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन, मुनिश्री को शास्त्र भेंट व पाद प्रक्षालन हुआ।

error: Content is protected !!