नाजिम मौरूसी अमले के अस्तित्व को समाप्त करने का षडयंत्र

अजमेर 5 मार्च। दरगाह के मौरूसी अमले ने आरोप लगाया कि दरगाह कमेटी के नाजिम सहित कुछ नौकरशाह सैंकड़ों साल पुराने मौरूसी अमले के अस्तित्व को समाप्त करने का षडयंत्र रच रहें हैं जिससे दरगाह की परम्परागत धार्मिक रस्मों पर संकट आने के पूरे आसार हो गए हैं। नाजिम आई.बी.पीरजादा द्वारा अमले के दाखिल खारिज प्रक्रिया सहित हुकूकों पर रोक लगाना इसकी शुरूआत है। इसके विरोध में अमले द्वारा की जाने वाली रस्मों का आगामी उर्स में बायकाॅट किये जाने का निर्णय किया गया है।
यह निर्णय मौरूसी अमले के पूर्व सदर एवं वरिष्ठ सदस्य हाजी सरदार अली की अध्यक्षता में सोमवार को इंडोर स्टेडियम में आयोजित की गई अमले के सदस्यों की साधारण सभा में लिया गया जिसमें सभी ऑफिस होल्डर मौजूद थे। साधारण सभा में सर्वसम्मति से तय किया गया कि यदि शीघ्र दरगाह नाजिम आईबी पीरजादा ने विगत 3 वर्षों से प्रस्तावित अमले के दाखिल खारिज नहीं किए तो आगामी उर्स में अमले द्वारा किऐ जानेवाले सभी कार्यक्रमों और रस्मों का बहिष्कार किया जाएगा बहिष्कार के तहत अमला रस्मो से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री दरगाह कमेटी से नहीं लेगा। साधारण सभा में अमले के सदस्यों का आरोप रहा कि दरगाह नाजिम और अधीनस्थ स्टाफ अमले को मिलने वाले मेडिकल और शिक्षा अनुदान को महीनों लंबित रखते हैं। इसके अलावा मौरूसी अमले को मिलने वाले देग और लंगर के जरेचहारम पर देरी की जा रही है।
बैठक में पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ सदस्य हाजी सरदार अली ने कहा कि दरगाह कमेटी द्वारा मौरूसी अमले को दरगाह कमेटी एंप्लाइज सर्विस रूल 1977 की परिधि में समझना कतई गलतफहमी है क्योंकि सेवा नियम दरगाह कमेटी ने अपने स्वार्थों के लिए पारित किए हैं दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 या दरगाह ख्वाजा साहब बाइलॉज 1958 ने कमेटी को ऐसे किसी भी सेवा नियम बनाने के निर्देश नहीं दिए हैं इसलिए दरगाह ख्वाजा साहब मौरूसी अमला दरगाह कमेटी का नियोजित कर्मचारी नहीं है बल्कि जिस प्रकार बादशाहों ने जागीरें दरगाह कमेटी को देकर वक्फ की हैं उसी प्रकार दरगाह में आयोजित होने वाली विभिन्न धार्मिक रस्में संपन्न कराने के लिए मौरूसी अमले में पदाधिकारियों को नियुक्त कर उन्हें भी दरगाह की धार्मिक रश्मि एवं सेवा के लिए समर्पित किया गया है और सिर्फ उनके दाखिल खारिज करने और अधिनियम की धारा 11 ई के मुताबिक अनुलाभ, प्रथागत अधिकार, हकूक देने के लिये एक्ट ने बाध्य किया है।
उन्होंने कहा कि नियमों एवं परंपराओं के मुताबिक दाखिल खारिज का प्रार्थना पत्र प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर 15 दिवस का सार्वजनिक नोटिस निकाल दिया जाना चाहिए यदि 15 दिवस में कोई आपत्ति नहीं आती है तो अगले 24 घंटे में संबंधित वंशानुगत पदाधिकारी का दाखिल खारिज किया जाना चाहिए क्योकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1987 में दिए ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से तय कर दिया है कि मौरूसी अमले के अंतिम ऑफिस होल्डर के देहांत के बाद उस पद पर नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी। परंतु दरगाह कमेटी और इसके नौकरषाह मौरूसी अमले को समाप्त करने के सुनियोजित षड्यंत्र के चलते ऐसा नहीं किया जा रहा है क्योंकि संबंधित अधिकारीगण मौरूसी अमले को न्यायिक प्रक्रिया में उलझाकर पदों को समाप्त करने एवं परंपराओं और रीति रिवाजों को नष्ट करने का मानस रखते हैं।
बैठक में इस मुद्दे पर गहनता से चिंतन किया गया कि दरगाह कमेटी के कुछ नौकरशाह एक सुनियोजित षड्यंत्र के माध्यम से सैंकड़ों वर्षों से वंशानुगत परंपरा के तहत दरगाह ख्वाजा साहब में अपनी सेवाएं दे रहे मौरूसी अमले के अस्तित्व को समाप्त करने की कुचेष्टा कर रहे हैं। इन नौकरशाहों में दरगाह कमेटी के नाजिम आई.बी.पीरजादा, सहायक नाजिम मोहम्मद आदिल और सुपरवाइजर शाहनवाज शाह केंद्रीय भूमिका निभाते हुए दरगाह ख्वाजा साहब कीरूढ़ियों एवं परंपराओं को नष्ट करने पर आमादा है जो इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि पिछले 3 वर्षों से मौरूसी हमले के तकरीबन 6 पदों के लिए दाखिल खारिज के प्रार्थना पत्र बिना किसी कार्यवाही के फाइलों की पेचीदगियों में अटके हुए हैं जबकि इन पदों पर अंतिम ऑफिस होल्डर के वंशज एवं उनके विधिक उत्तराधिकारी बिना रिकॉर्ड पर आए भी निरंतर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। परम्परा के अनुसार दरगाह नाजिम दाखिल खारिज की प्रक्रिया को रोक कर दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 की धारा 15 का उल्लंघन एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन करना अवमानना कर रहे हैं।
बैठक में सर्वसम्मति से 5 सूत्रीय मांगों को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह मांग रखी गई कि दरगाह प्रशासन सहायक नाजिम मोहम्मद आदिल और सुपरवाइजर शाहनवाज शाह को तत्काल स्थांतरित करें, लंबित रखे गए सभी दाखिल खारिज को तत्काल किया जाए, भविष्य में दाखिल खारिज के संबंध में समयबद्ध कार्यक्रम का निर्धारण आदेश निकाले जाएं, मेडिकल एवं शिक्षा अनुदान के बिलों पर भुगतान के लिए समय सीमा तय की जाए तथा अधिनियम के मुताबिक अमले को मिलने वाले अनुलाभ एवं प्रथागत अधिकार और देग व लंगर के ज़रे चाहरम दरगाह कमेटी के पूर्व नाजिम अहमद रजा द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार प्रत्येक माह की 1 तारीख को ही प्रदान किए जाएं। बैठक में सर्वसम्मति से तय किया गया कि मांगों के समर्थन में दरगाह दीवान साहब के हस्तक्षेप और शहर की विभिन्न मुस्लिम पंचायतों एवं सामाजिक संस्थाओं के मुस्लिम प्रतिनिधियों का समर्थन भी मांगा जाएगा।
बैठक को संबोधित करते हुए मुजफ्फर भारती ने कहा कि नाजिम एवं कमेटी को अधिनियम 1955 एवं बायलॉज 1958 के निर्देशों के अनुरुप कार्य करना चाहिए क्योंकि यह दोनों दस्तावेज दरगाह कमेटी के आंख और कान है, दरगाह प्रशासन एक्ट और बाइलॉज का उल्लंघन करके देश की संसद के विशेषाधिकार को चुनौती दे रहे हैं। यद्यपि दरगाह नाजिम और दरगाह कमेटी का अड़ियल रवैया कायम रहा तो शहंशाहों द्वारा दिए गए फरमान एवं वंशानुगत पदों से परित्याग की योजना पर काम किया जाएगा। बावजूद इसके कि देश के उच्चतम न्यायालय द्वारा बादशाहों द्वारा जारी किए गए फरमानों को न्यायिक डिक्री का दर्जा प्रदान किया साथ ही भारतीय संविधान के पारित होने के उपरांत भी ऐसे सभी फरमान डिक्री के रूप में क्रियांवित किए जाने के आदेश प्रदान किए हुए हैं।
बैठक में हाजी करीम अली, हाजी शब्बीर खान, मोहम्मद हनीफ खान, कुर्बान हुसैन, एडवोकेट मंजूर अली, जुबेर अहमद, उस्मान खान, मोहसीन खान, मोहम्मद अनीस, सरफराज अली, शम्मी नगारची, असलम अली, शहजाद खान, हुसैन खान, दिलनवाज, शाहनवाज बैग, मोहम्मद इशाक, अनवर हुसैन, इफ्तिखार हुसैन, अकील अहमद मुजाहिद, अखलाक अली, मैमुना बीवी, परवेज अहमद साजिद खान, फैजान अहमद, अब्दुल कादिर, मोहम्मद हनीफ सहित मौरूसी पदाधिकारी और ऑफिस होल्डर्स ने प्रमुखता से भाग लिया। तिलावते कलाम ए इलाही से बैठक का आगाज हुआ और राष्ट्रगान से समापन बैठक का संचालन मुजफ्फर भारती ने किया ।

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