क्लोजरों में ग्रामीणों की भागीदारी लाई रंग

सरकार पुनः क्लोजर को दे बढ़ावा

फ़िरोज़ खान
बारां 10 जनवरी । सपाट वन भूमि पर जहाँ दूर दूर तक हरियाली का नामोनिशान नही था । वहां कुछ ही सालों में हजारों की तादाद में लहलहाते वृक्ष सरकारी प्रयास व ग्रामीणों की जागरूकता की मिसाल बन गए है । बारां जिले के शाहबाद ब्लॉक के मडी सामरसिंगा में 15 हेक्टेयर में क्लोजर का निर्माण 2005 में किया था । इस क्लोजर का काम 2007 तक चला था । क्लोजर की अध्यक्ष पिस्ता सहरिया व पतो सहरिया तथा सुंदरलाल सहरिया ने बताया कि क्लोजर में ग्लो, आंवली, बांस, रत्न जोत, अचार, महुवा, गंवार पाठा, के पौधे लगाए गए थे । अभी यह सब पौधे सुरक्षित है । क्लोजर में बड़ी बड़ी घांस है । जिसको समिति द्वारा काटकर काम मे लिया जाता है । सभी पौधे हरियाली में नजर आ रहे है । क्लोजर की चारदीवारी हो रही है । आने जाने के लिए रास्ता बना हुआ है ।
उंन्होने बताया कि क्लोजर में मछली पालन व मेड़बन्दी का कार्य भी किया था । मगर इसमें अब फलदार पौधे नही है । अभी समिति के लोग बराबर इस क्लोजर की देखरेख करते है । उंन्होने बताया कि इस क्लोजर का निर्माण संकल्प सोसायटी व समिति के सहयोग से किया गया था । अन्य क्लोजर के मुकाबले अभी यह क्लोजर ज्यादा सुरक्षित है । इसमें बराबर हरियाली है । और देखने मे भी अच्छा लगता है । आज समिति के लोगो का मानना है कि अगर समिति को सरकारी सहयोग मिल जाये तो हमारा यह क्लोजर पहले की तरह विकसित हो सकता है । और हमारी आर्थिक स्थिति में बदलाव आ सकता है । इसके माध्यम से परिवारों का लालन पालन अच्छी तरह से हो सकता है । इन क्लोजरों का जब मैने विजिट किया और समिति के लोगो से बात की थी तो उन्होंने बताया कि क्लोजर से काफी कुछ बदल सकता है । और हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि यह क्लोजर आगे जाकर हमारे जीवन मे उपयोगी साबित हो मगर उसके बाद सरकारी मदद नही मिलने से धीरे धीरे इस क्लोजर में गिरावट आती जा रही है । उंन्होने कहा कि अगर समय रहते सरकारी मदद नही मिली तो इसको बनाये रखना मुश्किल हो जाएगा । यह गांव (एमपी) सीमा के पास बसा हुआ है । इसी तरह खेड़ला का क्लोजर भी 175 हेक्टेयर में लगा हुआ है । इस क्लोजर में आंवला, बांस, महुवा, अचार, ग्लो, गूगल, बांस, के पौधे लगाए गए थे । इसमें तलाई का निर्माण भी करवाया गया था । जिसमे क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार मिला था । इस क्लोजर की चारदीवारी आज भी कम्पिलिट है । इस क्लोजर आज भी हरियाली बनी हुई है । समिति के लोगो ने बताया कि इस क्लोजर से 100 -100 ट्रॉली घांस निकालकर बेची थी । और महिलाएं बारी बारी से रखवाली करती थी । और समिति के लोग इस घांस को काम मे लेते है । इस क्लोजर का पूर्व में जिले के कई अधिकारियों ने निरक्षण भी किया है । इसी तरह हाटरी खेडा में 30 हेक्टेयर व अचारपुरा गांव में 60 हेक्टेयर क्षेत्र में बिछी हरियाली की चादर इस अच्छे कार्य की साक्षी है । हाटरी खेड़ा व अचारपुरा के समीप सैकड़ों बीघा वन क्षेत्र बीते सालों में अंधाधुंध कटाई के चलते सपाट हो गया था । कुछ साल पूर्व स्थानीय ग्रामीणों ने यहां पुनः जंगल विकसित करने का मन बनाया । बात वन विभाग के अधिकारियों तक पहुंची । इसके बाद यहाँ वन विभाग अभिकरण योजना के तहत हाटरी खेडा में तीस हेक्टेयर व अचारपुरा में 60 हेक्टेयर में क्लोजर स्वीकृत कर वर्ष 2006 में दोनों में दस-दस हजार पौधे लगाए गए । शाहबाद व किशनगंज में 6 क्लोजर की स्थापना संकल्प सोसायटी मामोनी ने यूएनडीपी प्रोग्राम के तहत की जिसका मकसद प्राकर्तिक संसाधनों को बढ़ाना तथा दैनिक जीवन के लिए उपयोग में लेना है । वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति को इसका जिम्मा सौपा गया था । पौधे लहलाये तो कुछ और करने की सूझी । इसके अगले साल ही इससे सटे क्षेत्र में क्लोजर शुरू करके पौधे लगाए गए । ग्रामीणों की भागीदारी का सकारात्मक परिणाम अब यहां दूर दूर तक छाई हरियाली व प्राकर्तिक सौंदर्य के रूप में दुसरो के लिए प्रेरणा बन गया है । हाटरी खेड़ा क्लोजर की अध्यक्ष कुबरी बाई व धनजी भील तथा अचारपुरा क्लोजर की अध्यक्ष गीता बाई बाबू भील ने बताया कि गांव में समूह बनाकर इन क्लोजर की स्थापना की गई । जिसमें समूह द्वारा श्रम करके हाटरी खेड़ा क्लोजर में महुवा के 250,अचार के 150, करोंदा के 100, आंवला के 850, गूगल के 100, गवांर पाठा के 14 हजार 30, ततावर के 300, तथा बांस के 300, पौधे लगाए गए । इस क्लोजर की बाउंड्री , ट्रेंच खुदाई तलाई में 1 लाख 40 हजार 599 रुपए की लागत आई है । वही अचारपुरा के 60 हेक्टेयर क्लोजर में आंवला 2100, अचार 300, महुवा 250, करोंदा 250, सीताफल 318, अनार 400, इमली 250, गूगल 150, गंवार पाठा 10,300 तथा बांस के 100 पौधे लगाए है । इसकी लागत 2 लाख 12 हजार 973 रुपए आई है । इन क्लोजरों में लगे पौधे सात साल बाद फल देंगे और इससे होने वाली आय से समूह के लोग कुछ पैसा अपने जीवनयापन करने के लिए बराबर बराबर ले लेंगे । बाकी पैसे क्लोजर में फिर से लगा दिए जाएंगे । वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति ने बताया कि हमने पंद्रह सदस्यों का एक समूह बना रखा है । इसका बैंक में खाता है, और उसमें समूह का पैसा जमा है । क्लोजर में हमने मजदूरी की और न्यूनतम मजदूरी में से 23 रुपए प्रति मजदूर ने पैसा कटवाया । अब यहाँ पेड़ पौधों की सुरक्षा के लिए समूह से दो व्यक्ति प्रतिदिन रखवाली करते है । क्लोजर में आधा दर्जन से अधिक प्रजातियों के पेड़ है, जिनमे औषधीय प्लांट व फोरेक्ट प्लांट शामिल है । समिति सदस्य कमला व मुन्नी ने बताया कि हजारों पौधे लगाने के बाद सुरक्षा की चुनोती को ग्रामीणों के सहयोग से अंजाम दिया गया । इन क्लोज़रो में बहुत बड़ी बड़ी घास उग रही है । बड़ा होने पर इसे काट कर बेच दिया जाता है । और इसकी आय से जीवनयापन में काम लिया जाता था । अभी भी यह क्लोजर है । और समूह के लोग बराबर निगरानी कर रहे है । चारदीवारी भी है । समूह के लोगो ने बताया कि सरकार इनको पुनः जीवित कर सहयोग कर दे तो आर्थिक स्तिथि वापस सुधर सकती है । अभी यह क्लोजर जीवित है । मगर इनमें फलदार पौधों की आवश्यकता है । उंन्होने इनको पुनः जीवित करने की मांग सरकार से की है । इससे सहरिया समुदाय की आर्थिक स्तिथि में बदलाव आ सकता है । आज भी यह समुदाय जंगल पर ही आधारित है । इनको संबल देने की आवश्यकता है । इन क्लोजरों के माध्यम लघु वन उपज से इनके परिवार आसानी से चल सकते है । समूह के लोग इसमें बराबर बराबर भागीदारी निभा रहे है । मामोनी स्थित संकल्प सोसायटी के सचिव ने बताया कि मडी सामरसिंगा, खेड़ला,बिलासगढ़, हाटरी खेड़ा व अचारपुरा का क्लोजर संकल्प संस्था मामोनी व ग्रामीणों के सहयोग से सरकारी प्रयास साकार होने के मामले में अपने आप मिसाल है । इसी तरह नाहरगढ़ वन क्षेत्र के गांव महोदरी नाथन ग्राम पंचायत सिमलोद में है । इस गांव में वर्षों से नाथ समाज के लोग निवासरत है । इनकी समाज के करीब 50 परिवार है । गांव के बुजुर्ग गोपालनाथ ने बताया कि समाज की 50 महिलाओं ने वन साझा प्रबंधन समिति महोदरी नाथन के नाम से एक समूह बनाकर करीब 500-600 बीघा वन भूमि पर करीब 7-8 वर्ष से एक क्लोजर स्थापित कर इसमें 60-70 हजार पौधे लगाए है । जिसमें आंवला, अमरूद, महुवा, सागवान, सहित कई पुरषो ने मिलकर गड्डों की खुदाई की,और फिर पौधे लगाए तथा चारो और पत्थर की चारदीवारी करके इसमें दो चौकीदारों परसराम व मांगीलाल को 4000 रुपए मासिक वेतन पर रखे थे । ताकि वनों की सुरक्षा हो और इसकी आय से समूह चलता रहे और वन भी सुरक्षित रहे । यह लोग इसको बचाने के लिए रात्रि के समय आठ व्यक्तियों का एक गुरूप प्रतिदिन पहरा देता था । इस तरह कड़ी मेहनत करके अब तक भू माफियो से बचाते आ रहे है ।

एक्सपर्ट व्यू

संकल्प सोसायटी के सामाजिक कार्यकर्ता रमेश सेन व चंदालाल भार्गव का कहना है कि केंद्र सरकार की वन क्षेत्र में क्लोजर विकसित करने की योजना से में काफी लंबे समय तक जुड़ा रहा । इस काम मे संकल्प सोसायटी व जाग्रत महिला संगठन के सदस्यों ने काफी मेहनत की थी । खेड़ला, मडी सामरसिंगा, बिलासगढ़, खेड़ला, हाटरीखेडा, अचारपुरा के क्लोजरों में काम किया था । सहरिया समुदाय के स्वयं सहायता समूहों ने क्षेत्र में 6 क्लोजर विकसित करने में खासी मशक्कत की थी । इसका लाभ मिलता इससे पहले ही केंद्र सरकार ने योजना से हाथ खींच लिए । अब भी 6 क्लोजर बने हुए है । पूर्व की सुरक्षा प्रबंध समितियों को पुनर्जीवित कर क्लोजरों से सहरिया परिवारों को जोड़ा जा सकता है । सभी क्लोजरों मे पुनः बहुमूल्य औषधीय पौधे लगाकर इनको विकसित किया जा सकता है । क्लोजरों में पौधों के अलावा उच्च क्वालिटी की घास यहां प्रकृति प्रदत्त है । क्लोजरों कि सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध कर सहरियाओं को संबल दिया जा सकता है, लेकिन सरकार को यह मदद कम से कम दस साल तक उपलब्ध करानी होगी । इसके बाद हजारों आदिवासी सहरिया परिवारों के जीवनयापन के ठोस प्रबंध होने के साथ जंगल भी सुरक्षित हो सकेगा ।

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