एक तथाकथित मास्टर माइंड ने बिगाड़ा तेजा मेले का सौहार्द

चिप्पी कांड ने दोनों राजनैतिक पक्षों से कराया मेले में आयोजित कार्यक्रमों का बहिष्कार, क्षेत्र में जोरदार बना चर्चा का विषय
राज्य में विपक्ष की सत्ता के बावजूद अपनी ही पार्टी के पालिका बोर्ड द्वारा तेजा मेले का बहिष्कार कर भाजपा नेता आये कटघरे में, कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं का न आना भी खूब खला लोगों को

“मेला दिलों का आता है एक बार आकर चला जाता है, आते हैं मुसाफिर जाते हैं मुसाफिर, जाना ही सबको क्यों आते हैं मुसाफिर, मेला दिलों का.. हंसले, गाले ये दिन न मिलेंगे कल, थोड़ी खुशियां हैं थोड़े से ये पल ! आज जब ब्लॉग लिखने बैठा तो अचानक “मेला” फ़िल्म का यह गाना सुनाई दिया और मेरी कलम केकड़ी में आयोजित तेजा मेले के आयोजन पर बरबस ही चलने लगी। इस बार नगरपालिका द्वारा आयोजित तेजा मेला ऐतिहासिक मेला कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। तेजा मेला तो नगरपालिका वर्ष 1951 से भराती आई है, मगर इस बार 8 दिन के इस मेले में जिस प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन हुआ शायद इससे पहले इतना शानदार कभी हुआ होगा। शहरवासियों व ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए आयोजित इस तेजा मेले में जिस प्रकार इस बार दर्शकों, श्रोताओं का सैलाब उमड़ा शायद पहले कभी उमड़ा होगा। विशेषतौर पर महिलाओं, बच्चों व युवाओं ने मेले पर आयोजित कार्यक्रमों का जमकर लुत्फ़ उठाया। बरसात के बीच कबड्डी खेल प्रतियोगिता का भी शानदार आयोजन भी लोगों की जुबान पर रहा, क्षेत्र की 36 टीमों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। बरसात की वजह से आयोजक मण्डल ने टीन शेड के नीचे नेट बिछाकर मैच करवाये। हालांकि इस बार भी तेजा मेले पर राजनैतिक दलों की आपसी द्वेषता व प्रतिस्पर्धा की दूषित परम्परा ने अपना शिकार बनाने की कुचेष्टा ने कोई कमी नहीं रखी, मगर होनी को कौन टाल सकता है। पक्ष-विपक्ष के आमंत्रित अतिथियों के घोषित-अघोषित बहिष्कार को दरकिनार करते हुए आयोजकों ने बिना विचलित हुए बरसों से चली आ रही तेजा मेले के सफल संचालन की मंशा को बरकरार रखते हुए आमजन के मनोरंजन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। आमजन का कहना है कि कई वर्षों तक याद किया जाएगा इस मेले को। यह मेला अपनी अमिट छाप छोड़ गया है यादगार मेले के रूप में। कहते हैं न कि चांद में भी दाग होता है, शायद वो दाग इतने धुंधले होते हैं कि चांद की रोशनी के सामने वो दिखाई नहीं देते। चांद के बदनुमा दाग का उल्लेख मैंने यहां इसलिए किया है कि भाजपा के कुछ स्थानीय, जिला व प्रदेश के नेताओं ने मेले का अघोषित बहिष्कार कर अपने अनुशासित होने का परिचय दिया है। हालांकि में मानता हूं कि आमंत्रण पत्र पर चिप्पी कांड ने कइयों का दिल दुखाया है, तोड़ा भी है मगर इसके पीछे की मंशा व षड़यंत्र को शायद किसी ने न तो समझा और ना ही समझने की कोशिश की। इस चिप्पी कांड का जो तथाकथित मास्टर माइंड मास्टर है उसने जब-जब भी जहां जहां भी दखल दिया है सामने वाले को नीचा देखना पड़ा है। चाहे बात मेले की हो, चाहे अस्पताल की हो या फिर चुनाव की हो क्यों न हो। जहां-जहां इस तथाकथित मास्टर माइंड ने दखल दिया है वहां-वहां विवादों की नोबत आई है। इस तथाकथित मास्टर माइंड के लिए अब ये प्रचलित हो गया है कि ये जिसके लिए भी काम करता है उसकी नैय्या डूबती ही है, इससे पिंड छुड़ाना आसान नहीं है क्योंकि यह जिस किसी पिंडी पकड़ता है उसे अंजाम तक पहुंचाता है और यहां भी यही हुआ। इस मास्टर माइंड के झांसे व सरकारी नुमाइंदों के दबाव में आकर आयोजकों से चूक हो गई और दोनों दलों के नेता नाराज हो गए। एक पक्ष को मनाने के चक्कर मे दूसरा पक्ष रूठा ओर दूसरे को मनाने के चक्कर पता चला दोनों ही पक्ष रुठ गए। किसी ने इसे राजनीतिक अखाड़ा माना तो किसी ने आयोजकों का मजाक उड़ाया। नतीजा ये हुआ कि जमीन से जुड़े नेताओं के अलावा सभी आमंत्रित राजनेताओं ने मेले से दूरी बनाए रखी। नेताओं के बहिष्कार के बावजूद भाजपा विधायक अनिता भदेल, भाजपा की पूर्व प्रधान रिंकू कंवर राठौड़, सरवाड़ पालिकाध्यक्ष विजय लड्ढा, सरवाड़ प्रधान किशनलाल बैरवा, पूर्व पालिकाध्यक्ष लाड देवी साहू, शहर मण्डल अध्यक्ष रामनिवास तेली, जिला मंत्री सत्यनारायण चौधरी, किसान नेता रामदेव माली, युवा मोर्चा अध्यक्ष राजेन्द्र चौधरी, शहर मण्डल महामंत्री अनिल राठी, पालिका के भाजपा पार्षदों, देहात मंडलो के अध्यक्षों, महिला मोर्चा की पदाधिकारियों व अन्य क्षेत्र के कई भाजपाइयों सहित कांग्रेस नेता पूर्व प्रधान भूपेंद्र सिंह शक्तावत ने आतिथ्य सम्मान का ख्याल रखते हुए इस धार्मिक मेले के कार्यक्रमों में शिरकत करने की दिलेरी दिखाई। मेला कमेटी के अध्यक्ष सुरेश चौधरी ने बताया कि मेले में सभी आमंत्रित अतिथियों से आमंत्रण पत्र में नाम छपवाने से पहले स्वीकृति ली गई थी। वहीं जानकारी मिली है कि सभी भाजपा व कांग्रेस के आमंत्रित अतिथियों को पालिकाध्यक्ष अनिल मित्तल, मेला कमेटी ने फोन पर भी मेले में पधारने का आग्रह किया था। साथ ही संगठन स्तर पर भाजपा नेताओं को मण्डल अध्यक्ष रामनिवास तेली ने भी फोन कर मेले में आने का आग्रह किया था। मेले में नहीं आने का एक बहाना इन नेताओं की व्यस्तता हो सकता है, लेकिन राज्य में सत्ता जब कांग्रेस की हो और नगर पालिका में बोर्ड भाजपा का हो तो ऐसे में भाजपा नेताओं की नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि वे अपने व्यस्तम कार्यक्रमों में से वक्त निकालकर केवल अपने कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई के लिए ही आते। मगर यहां तो उल्टा देखने को मिला। सूत्रों के मुताबिक चंद प्रतिस्पर्धा वाले भाजपा नेता आमंत्रित भाजपा नेताओं को फोन कर-करके मेले में नहीं आने की दुहाई देते रहे और उन नेताओं ने भी यहां गुटबाजी को हवा दी। ऐसे नेताओं को भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को सबक सिखाना चाहिए। बरसों संगठन से जुड़े जिम्मेदार पदाधिकारी राजस्थान भाजपा के प्रदेश महामंत्री सतीश पूनियां, जिलाध्यक्ष बी.पी. सारस्वत, सांसद भागीरथ चौधरी, जिला प्रमुख वंदना नोगिया, राष्ट्रीय खो-खो संघ के उपाध्यक्ष भंवर सिंह पलाड़ा, विधायक वासुदेव देवनानी, शंकर सिंह रावत, कन्हैया लाल चौधरी, सुरेश रावत, रामस्वरूप लाम्बा, पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया, गोपाल धोबी व शत्रुघ्न गौतम आदि ने भी इस धार्मिक मेले के आयोजन में न आकर गुटबाजी को सह दी है। और तो ओर पूर्व विधायक शत्रुघ्न गौतम का उनके कई चाहने वाले मेले के कार्यक्रम में आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे लेकिन वे भी नहीं आये, जबकि यह कहा जा रहा था भले ही वे विधानसभा व लोकसभा चुनाव में नहीं आये, लोकसभा चुनाव में वोट डालने भी नहीं आ सके मगर मेले में जरूर आएंगे उनकी लोकदेवता तेजाजी के प्रति आस्था किसी से छिपी नहीं, लेकिन उनके नहीं आने से उनके चाहने वालों को बेहद निराशा हुई, अब न जाने वो कब आएंगे ! भाजपा नेताओं के इस मेले के बहिष्कार को लेकर यह माना जा रहा है कि केकड़ी में भाजपा अब दो धड़ों में बंट गई है। अब देखना ये है कि भविष्य में भाजपा हारे हुए घोड़ों पर दांव खेलेगी या फिर कोई तेजतर्रार घोड़ा इस रेस के मैदान में दौड़ेगा। कुल मिलाकर भाजपाईयों का यह प्रदर्शन यहां भाजपा के दो गुटों में बंटी होने के स्पष्ट संकेत दे गया है। जहां आयोजक मण्डल के भाजपाई अतिथियों को आमंत्रण देकर मेले के आयोजन को सफल बनाने के प्रयासों में जुटे नजर आए वहीं दूसरे गुट के भाजपाई आने वाले अतिथियों को भर्मित कर उन्हें मेले में आने से रोकने के प्रयासों में जुटे नजर आये। खैर यह तो बात हुई भाजपा की अब हम कांग्रेस की बात करते हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस के आमंत्रित नेताओं ने भी मेले से दूरी बनाए रखी जबकि उनके ही चहेते तथाकथित मास्टर माइंड की वजह से यह चिपकी कांड की घटना घटित हुई, उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता। मेले के आयोजन में न तो क्षेत्रीय विधायक व राज्य के चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा ही आये और ना ही मसूदा विधायक राकेश पारीक व कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक सुरेश टांक ही आये। कांग्रेस के कई स्थानीय पदाधिकारियों ने तो खुलेआम मेले का बहिष्कार किया। और तो ओर धार्मिक आस्था से जुड़े तेजा मेले के प्रमुख उत्सव पगड़ी बंधन समारोह में भी मुख्य अतिथि चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा ने शिरकत नहीं की। हो सकता है कि वे प्रदेश के विभिन्न कार्यक्रमों या सरकारी कामकाज में व्यस्त होंगे मगर ऐसी भी क्या व्यस्तता जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के सबसे बड़े धार्मिक मेले में जिसमें हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है, ऐसे आयोजन में भी शामिल न हो सके। खैर अपनी-अपनी व्यस्तता या राजनीति है। मगर यह वक्त दलगत राजनीति से ऊपर उठकर द्वेषता व प्रतिस्पर्धा को भुलाने का था वो भी एक धार्मिक आस्था से जुड़े आयोजन के दौरान ! कुल मिलाकर राजनेताओं के बहिष्कार के बावजूद तेजाजी की असीम कृपा से मेले का आयोजन भव्य व शानदार हुआ, जिसे शायद कई वर्षों तक याद रखा जाएगा।

तिलक माथुर 9251022331

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