पुष्कर मेला, परेशानी का मेला

*मेले के नाम पर मात्र खाना पूर्ति*

नाथू शर्मा
ख्याति प्राप्त पुष्कर मेला अफसरों की मौज मस्ती का मेला बन गया है। व्यवस्था के नाम पर स्थानीय निवासियों ओर दुकानदारों को परेशान करने के अलावा प्रशासन कुछ नही करता।
पुष्कर के नागरिक मूलभूत सुविधा के मोहताज है। मेले के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है।
पुष्कर में हर जगह सड़के, नालियां टूटी फूटी है।
पानी, बिजली की किल्लत है। मेला क्षेत्र के गंदगी का अंबार है।
नये अफसर नए नियम। वैसे भी पुष्कर मेला भगवान भरोषे भरता आया है। मेले में दुनिया भर का प्रशासनिक तामझाम लगा दिया जाता है। जबकि भादवे के रामदेव मेले मेले में लाखों जातरू बिना किसी इंतजाम के पुष्कर यात्रा कर जाते है। मेले में खर्च करने के लिए धन राशि नही, सरकार अतिरिक्त बजट नही देती। प्रशासन मात्र लीपा पोती कर देता है।
मेला धार्मिक के साथ साथ पशु मेला भी है। मेले में ऊंटों के अलावा उम्दा किस्म के अश्व वंश आते है। पशुपालकों की सुविधा की तरफ किसी ने आज तक ध्यान नही दिया।
यही कारण है कि मेला खत्म होने के कगार पर है। मेले में गरीब लोग आकर दुकानें लगाते है उन्हें खदेड़ दिया जाता है। जबकि मेले की रौनक वो ही है। शुद्ध ग्रामीण मेले का स्वरूप बदलता जा रहा है।
प्रशासनिक अधिकारी परिवार के साथ मेले की मौज लेते है। यही है पुष्कर का प्रसिद्ध मेला।

नाथू शर्मा, पुष्कर

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